Cricket Tales - आईपीएल मीडिया अधिकार करोड़ों में बिकने की खबर के सामने बीसीसीआई के पुराने क्रिकेटरों (पुरुष और महिला दोनों) और अंपायरों की मासिक पेंशन में बढ़ोतरी की खबर को वह चर्चा मिली ही नहीं, जो किसी और दिन मिलती। हालांकि प्रथम श्रेणी खिलाड़ियों (15,000 से 30,000 रुपये), टेस्ट खिलाड़ियों (पुरुष - 37,500 से 60,000 रुपये और 50,000 से 70,000 रुपये तथा महिला- 30,000 से 52,500 रुपये) और 2003 से पहले संन्यास लेने वाले वाले प्रथम श्रेणी क्रिकेटरों (22,500 से 45,000 रुपये) को अच्छी बढ़त दी पर मीडिया अधिकार की रकम के सामने ये गिनती फीकी ही तो नजर आएंगी !
अगर ये गिनती फीकी नजर आ रही हैं तब तो पेंशन स्कीम की शुरुआत पर मिली पेंशन की रकम सुन कर आप हैरान ही रह जाएंगे। आज किसी को याद भी नहीं होगा कि किन हालात में पेंशन स्कीम शुरू हुई, पहला चैक किस रकम का था और इसका स्वागत किस तरह से किया गया? बोर्ड भी क्रिकेटरों की भलाई चाहता था पर पैसा ही नहीं था तो पुराने क्रिकेटरों की मदद कहां से करते?
पैसा आना शुरू हुआ तो उसे बांटने के लिए दिल नहीं था। यहां तक कि जरूरतमंद खिलाड़ियों की भी मदद नहीं की बोर्ड ने। जब पुराने कप्तान जीएस रामचंद इलाज के लिए बोर्ड से मदद की 'भीख' मांग रहे थे तब बोर्ड ने सिर्फ 2 लाख रुपये दिए और उन्हें देने में भी इतनी देर कर दी कि कोई फायदा ही नहीं हुआ। कपिल देव ने अपने एक इंटरव्यू में टीम इंडिया के मैनेजर और पुराने क्रिकेटर चंदू बोर्डे की हालत बयान की थी- वे अपने डेली अलाउंस को लेने के लिए बोर्ड के ट्रेजरर का चार घंटे इंतजार करते रहे क्योंकि उनके पास घर जाने के लिए भी पैसे नहीं थे। मुंबई-पुणे हाईवे पर एक टेस्ट क्रिकेटर के भिखारी की हालत में घूमने की चर्चा करना भी अच्छा नहीं लगता। ऐसी ढेरों मिसाल हैं और चारों तरफ से एक ही आवाज थी कि बोर्ड पुराने क्रिकेटरों की मदद करे।