आज टीम इंडिया के सीनियर क्रिकेटर भी, बीसीसीआई की किसी भी पॉलिसी/निर्देश को मानने से इनकार/विरोध नहीं करते। वजह- बीसीसीआई के पास आईपीएल है और कोई खिलाड़ी नहीं चाहेगा कि उसे आईपीएल के एक भी सीजन में 'न खेलने' की सजा मिले। इसके उलट 2002 चैंपियंस ट्रॉफी ने इसी भारत में, प्लेयर पॉवर का ऐसा अनोखा नजारा देखा गया था कि बीसीसीआई ने सिलेक्टर्स को कह दिया था कि टीम इंडिया की 'सेकंड इलेवन' चुनने की तैयारी करें और खिलाड़ी शॉर्टलिस्ट भी हो गए थे। क्या हुआ था तब और ऐसी नौबत क्यों आई?
12 सितंबर को चैंपियंस ट्रॉफी का पहला मैच था कोलंबो में और इससे 20 दिन पहले तक ये लगभग तय था कि टीम इंडिया के ज्यादातर खिलाड़ी, जिनमें सचिन तेंदुलकर और सौरव गांगुली भी थे, चैंपियंस ट्रॉफी में नहीं खेलेंगे। वजह? खिलाड़ियों ने ख़ास चैंपियंस ट्रॉफी के लिए बनाए, बीसीसीआई के कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों को मानने से इनकार कर दिया। 20 अगस्त को सिलेक्टर्स को बंगलौर में मीटिंग का आर्डर हुआ ताकि टूर्नामेंट के लिए 14 खिलाड़ियों की नई टीम चुनें। सिलेक्टर्स ने समझदारी दिखाकर नई टीम नहीं चुनी पर टूर्नामेट के लिए संभावित खिलाड़ियों का पूल 14 से बढ़ाकर 25 कर दिया।
ऐसा क्या था इस कॉन्ट्रैक्ट में कि नौबत यहां तक पहुंच गई थी? असल में कॉन्ट्रैक्ट आईसीसी का था जिसे बीसीसीआई ने मान लिया और आईसीसी ने हर खेलने वाली टीम के बोर्ड से कहा था, वही खिलाड़ी खेलने भेजें जो कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर करें। विवाद था कॉन्ट्रैक्ट में लिखे एम्बुश मार्किटिंग क्लॉज (Ambush Marketing Clause) पर। क्या लिखा था इसमें? इस में लिखा था कि चैंपियंस ट्रॉफी के ऑफिशियल स्पांसर के साथ टकराव वाले किसी प्रॉडक्ट के लिए, खिलाड़ी टूर्नामेंट शुरू होने से 30 दिन पहले से टूर्नामेंट के 30 दिन बाद तक अपने उसी प्रॉडक्ट के व्यक्तिगत कॉन्ट्रैक्ट के बावजूद, अपने स्पांसर के प्रॉडक्ट के एड/प्रमोशन नहीं करेंगे। इतना ही नहीं, आईसीसी स्पांसर टूर्नामेंट के 6 महीने बाद तक अपने प्रॉडक्ट के प्रमोशन में, इन खिलाड़ियों की, टूर्नामेंट के दौरान की पिक्चर, का इस्तेमाल कर सकते थे।आईसीसी ने ये शर्त साथ ही अगले वनडे वर्ल्ड कप पर भी लगा दी थी पर चैंपियंस ट्रॉफी से ही झगड़ा शुरू हो गया।