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बिहार के शीतलपुर के प्रत्येक घर में है फुटबॉलर, बन गया फुटबॉल गांव

आज पूरा विश्व भले ही फीफा वल्र्ड कप को लेकर दिवाना बना है और खिलाड़ियों में वल्र्ड कप जीतने का जुनून भी दिख रहा है, लेकिन ऐसा नहीं है कि फुटबॉल के प्रति जोश और जुनून सिर्फ यहीं दिख रहा है। बिहार के मुंगेर जिला के एक गांव में भी फुटबॉल को लेकर जोश और जुनून कम नही है।

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IANS News
By IANS News December 18, 2022 • 13:34 PM
Footballer is in every house of Bihar's Sheetalpur, has become a 'football village'.
Footballer is in every house of Bihar's Sheetalpur, has become a 'football village'. (Image Source: IANS)

आज पूरा विश्व भले ही फीफा वल्र्ड कप को लेकर दिवाना बना है और खिलाड़ियों में वल्र्ड कप जीतने का जुनून भी दिख रहा है, लेकिन ऐसा नहीं है कि फुटबॉल के प्रति जोश और जुनून सिर्फ यहीं दिख रहा है। बिहार के मुंगेर जिला के एक गांव में भी फुटबॉल को लेकर जोश और जुनून कम नही है। फुटबॉल के प्रति इस गांव की दीवानगी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस गांव के प्रत्येक घर में एक फुटबॉलर है, जो सुबह होते मैदान में पहुंच जाते है और घंटों पसीना बहाते हैं।

मुंगेर जिले के सदर प्रखंड क्षेत्र का शीतलपुर ऐसा गांव है जहाँ 10 वर्ष के बच्चे से लेकर 35 वर्ष उम्र के खिलाड़ी दिन-रात मैदान में मेहनत कर पसीना बहा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि इस गांव के फुटबॉलर ने सफलता नहीं पाई है। यहां के कई खिलाड़ी बिहार टीम की कप्तानी तक कर चुके हैं।

फुटबॉल के प्रति जोश, जुनून और दीवानगी का आलम यह है कि इस गांव में तीन-तीन क्लब हैं, जो खिलाड़ियों को आगे बढ़ाने में मदद भी करता है। युवा इन क्लबों से जुड़ जाते हैं। इस गांव के लोगों में फुटबॉल के प्रति दीवानगी के कारण इस गांव की पहचान भी फुटबॉलर गांव के रूप में होती है। इस गांव के 12 से अधिक ऐसे खिलाड़ी है जो राज्य और देश स्तर तक अपनी पहचान स्थापित कर चुके हैं।

ग्रामीण बताते हैं, यह कोई आज की बात नहीं है। फुटबॉल अब यहां एक प्रचलन बन गया है। बताया जाता है कि वर्ष 1950 से ही इस गांव में फुटबॉल खेला जाता है। हालांकि तब इस गांव के फुटबॉल खिलाड़ी अपनी पहचान स्थापित करने में सफलता नहीं पा सके। लेकिन, 1968 में रविंद्र कुमार सिंह को विश्वविद्यालय स्तर पर मैच के लिए टीम में चयन हुआ। सिंह फिलहाल मुंगेर जिला फुटबॉल संघ के सचिव भी हैं।

सिंह को भले फुटबॉल में उतनी सफलता नहीं मिली, लेकिन उन्होंने अपने पुत्र को इस खेल में प्रशिक्षित किया और उन्होंने राज्य स्तर पर अपनी पहचान बनाई।

सिंह के बड़े पुत्र संजीव कुमार सिंह आठ बार संतोष ट्रॉफी खेल चुके हैं और भाग लेने वाली एक टीम की कप्तानी भी की है। भारतीय स्टेट बैंक की टीम की ओर से वे नेपाल में भी खेलने गये।

संजीव ने 1999 में ईस्ट बंगाल का भी प्रतिनिधित्व किया जबकि उनके छोटे भाई भवेश कुमार उर्फ बंटी जूनियर और सीनियर बिहार टीम के लिए कप्तानी की। भवेश एनआइएस कोच भी है। भवेश आज गांव के बच्चो को फुटबॉल का प्रशिक्षण देते हैं।

इसी गांव के अमित कुमार सिंह ने भी बिहार टीम को जूनियर व सीनियर में कप्तानी कर चुके हैं।

इस गांव के रहने वाले मनोहर सिंह को भी अच्छा फुटबॉल खिलाड़ी माना जाता है। सतीश कुमार, निहार नंदन सिंह, शुभम कुमार, रामदेव कुमार, मनमीत कुमार भी फुटबॉल खिलाड़ी की बदौलत गांव का नाम रौशन कर चुके हैं।

भवेश बताते हैं कि इस गांव के बच्चों में फुटबॉल के प्रति रुचि पैदा की जाती है। शीतलपुर गांव में प्रत्येक आयु वर्ग के लिए फुटबॉल क्लब संचालित हो रहा है। यहां तीन-तीन क्लब हैं।

शीतलपुर स्पोर्ट क्लब, आशीर्वाद एकडमी अंडर-20 एवं आशीर्वाद एकैडमी जूनियर अंडर- 14 में आए खिलाड़ियों को भवेश खुद प्रशिक्षण देते हैं। शीतलपुर स्पोर्ट्स क्लब वर्ष 1960 से ही इस गांव में संचालित हो रहा है। यहां से प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले नौ खिलाड़ी आज बीआरसी दानापुर में आर्मी में नौकरी कर रहे।

भवेश बताते हैं कि इस गांव के बच्चों में फुटबॉल के प्रति रुचि पैदा की जाती है। शीतलपुर गांव में प्रत्येक आयु वर्ग के लिए फुटबॉल क्लब संचालित हो रहा है। यहां तीन-तीन क्लब हैं।

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