भारतीय महिला कुश्ती के उत्थान में फोगाट बहनों का बड़ा योगदान है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में दमदार प्रदर्शन करते हुए इन्होंने भारतीय कुश्ती को वैश्विक ऊंचाई दी है। गीता फोगाट का नाम इसमें बेहद प्रमुख है। गीता ने ही बड़े मंचों पर भारतीय महिला पहलवानों की सफलता की यात्रा शुरू की।
गीता फोगाट का जन्म 15 दिसंबर 1988 को बलाली गांव, चरखी दादरी, हरियाणा में हुआ था। फोगाट को कुश्ती विरासत मे मिली थी। उनके पिता और दिग्गज कुश्ती कोच महावीर सिंह फोगाट ने गीता को कुश्ती के दाव-पेच सिखाए। गीता ने करीब 8 साल की उम्र से कुश्ती का अभ्यास शुरू कर दिया था। पहलवान बनने की प्रकिया आसान नहीं होती। महिलाओं के लिए यह और भी आसान नहीं है। महिलाओं के सामने कुश्ती की अपनी कठिन मांग के साथ-साथ समस्या के रूप में सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाएं भी होती हैं। गीता को भी इन तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ा। उनके पिता महावीर फोगाट को भी गीता के साथ उनकी अन्य बहनों को पहलवानी के लिए प्रेरित करने के लिए विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन उनके पिता ने तमाम विरोध के बावजूद अपनी बेटियों को पहलवना बनाने का सपना नहीं छोड़ा।
सुबह 4 बजे उठना, मिट्टी के अखाड़े में अभ्यास, बेहद सख्त आहार, और लड़कों के साथ मुकाबला गीता के बचपन और युवावस्था की दिनचर्या रही। इस कठिन दिनचर्या की वजह से उनका बचपन सामान्य बच्चों की तरह रोमांचक नहीं रहा। देश के लिए कुश्ती में पदक जीतने के लक्ष्य के पीछे गीता ने सबकुछ त्याग दिया, जिसका परिणाम भी उन्हें मिला।