साल 2014 में शुरू हुई प्रो कबड्डी लीग (पीकेएल) ने कबड्डी के देशी खेल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मशहूर बनाने में अहम भूमिका निभाई है। इस खेल का समृद्ध इतिहास करीब 4 हजार साल का रहा है। भारत में इस खेल ने ग्रामीण लोगों के बीच अधिक लोकप्रियता बटोरी है। यही वजह रही कि आज भी इस खेल में गांव की मिट्टी से निकले खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का परचम बुलंद कर रहे हैं।
हालांकि, कुछ लोग इस खेल को अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के चक्रव्यूह में प्रवेश करने से जोड़ते हैं, जिन्होंने चक्रव्यूह को जरूर भेदा, लेकिन उससे बाहर नहीं निकल सके। ठीक ऐसा ही होता है, जब एक रेडर विरोधी टीम के पाले में जाकर पकड़ा जाता है।
बर्लिन ओलंपिक 1936 में कबड्डी को प्रदर्शनी खेल के रूप में शामिल किया गया था। साल 1951 में इसे एशियन गेम्स में प्रदर्शनी के तौर पर शामिल किया गया। आखिरकार, साल 1990 में एशियन गेम्स में इस खेल को स्थाई रूप से मेडल गेम के रूप में जगह मिली।