'सेपक टाकरा' दक्षिण-पूर्व एशिया का एक ऐसा रोमांचक और कलात्मक खेल है, जिसमें वॉलीबॉल और फुटबॉल का अनोखा मिश्रण देखने को मिलता है। फुर्ती, संतुलन, ताकत और शानदार एथलेटिक कौशल के इस खेल में खिलाड़ी हाथों का उपयोग किए बिना पैर, घुटने, छाती और सिर से गेंद को नेट के एक पार से दूसरे पार भेजते हैं।
सेपक टाकरा मलेशिया, थाईलैंड, इंडोनेशिया और फिलीपींस में बेहद लोकप्रिय है, जिसे भारत ने भी अपनाया। इसे एशियन गेम्स में आधिकारिक खेल का दर्जा प्राप्त है। धीरे-धीरे विश्व स्तर पर भी यह खेल अपनी पहचान बना रहा है। दक्षिण पूर्व एशिया के बाहर, यह खेल यूएसए और कनाडा समेत अन्य पश्चिमी देशों में भी लोकप्रिय है।
14वीं शताब्दी के आस-पास मलय समुदाय के मछुआरे जब मछली पकड़कर वापस लौटते, तो मनोरंजन के लिए पत्तों की गेंद बनाकर उससे खेलते थे। कुछ इसी तरह थाईलैंड और आस-पास के देशों के लोग भी अपना मनोरंजन करते। धीरे-धीरे गेंद बनाने के लिए पत्तों के बजाय रतन की पट्टियों का इस्तेमाल किया जाने लगा, जिसके बाद इसके लिए सिंथेटिक 'फाइबर' या सिंथेटिक 'रबर' का इस्तेमाल होने लगा। 1940 के दशक में पहली बार इस खेल से जुड़े औपचारिक नियम भी पेश किए गए।