Cricket Tales - जब पिछली बार टीम इंडिया ने डोमिनिका में टेस्ट खेला था तो क्या किया था?

Updated: Tue, Jul 11 2023 13:12 IST
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विंडसर पार्क, डोमिनिका का सबसे बड़ा स्टेडियम है। टीम इंडिया यहां मौजूदा सीरीज का पहला टेस्ट खेल रही है। जैसे ही विराट कोहली टेस्ट के लिए वहां पहुंचे तो ये भूले नहीं कि भारत ने 2011 में भी यहां टेस्ट खेला था। संयोग से तब टीम में, मौजूदा चीफ कोच राहुल द्रविड़ भी थे। रिकॉर्ड देखें तो टेस्ट ड्रा रहा और इसी के साथ भारत ने सीरीज 1-0 से जीत ली।

Cricket Tales - जब पिछली बार टीम इंडिया ने डोमिनिका में टेस्ट खेला था तो क्या किया था ?

आज के दौर में सिर्फ इंग्लैंड नहीं- और टीम भी ये दिखा रही है कि टेस्ट कैसे जीतते हैं? भारत का 2011 का डोमिनिका टेस्ट अनोखा था- इस बात के लिए स्टडी किया जाता है कि कैसे कोई टीम, जीत की स्थिति में होने के बावजूद टेस्ट नहीं जीतती? ये किसी साधारण टीम ने नहीं, एमएस धोनी जैसे तेज तर्रार कप्तान की उस टीम ने किया जो तब टेस्ट रैंकिंग में नंबर 1 थी। स्कोर थे : वेस्टइंडीज 204 एवं 322 तथा भारत 347 एवं 94-3 और ये स्कोर नहीं बताते कि असल में हुआ क्या था?

भारत को टेस्ट में जीत के लिए, पांचवें दिन- 47 ओवर में 180 रन की जरूरत थी। 32 ओवर के बाद स्कोर 94-3 था और विंडसर पार्क की पिच अभी ही खराब नहीं थी। तब भी 15 मेंडेटरी ओवर की शुरुआत से ठीक पहले धोनी ने टेस्ट ड्रा का ऑफर दिया और कप्तान डेरेन सैमी ने ऑफर मानने में देर नहीं लगाई। राहुल द्रविड़ 34* और वीवीएस लक्ष्मण 3* पर क्रीज पर थे। क्या ये सही था?

हर कोई हैरान था कि 86 रन की जरूरत जीत के लिए और हाथ में 7 विकेट- तब भी धोनी ने ये क्या कर दिया? ऐसा 'डरपोक' साबित करने वाला फैसला कैसे ले गए वे? ऐसा नहीं है कि कभी जीत के बारे में नहीं सोचा।

शुरुआत बहुत खराब रही- अभिनव मुकुंद (0) पारी की पहली ही गेंद पर आउट। मुरली विजय (45) और द्रविड़ ने दूसरे विकेट के लिए 73 रन जोड़े। आख़िरी सैशन में पहले ड्रिंक्स ब्रेक पर स्कोर 64 रन था और 28 ओवर में 116 रन की जरूरत थी। क्या ये रन बनाना मुश्किल था?

यहीं से वेस्टइंडीज ने स्ट्रेटजी बदली- फील्डर बाउंड्री तक फैला दिए और बिशू ने अपनी लेग स्पिन गेंद, लेग स्टंप से बाहर करना शुरू कर दिया। विजय और द्रविड़ बंध गए और स्कोरिंग मुश्किल हो गई। इसी दबाव में विजय आउट हो गए- 78 गेंद, 4 चौके और 45 रन। अब सुरेश रैना के आने का मतलब तथा कि अभी भी चेज का पक्का इरादा था। रैना 8 रन बनाने में 18 गेंद खर्च कर गए और इसने समीकरण बिगाड़ दिया। जब अगले बल्लेबाज के तौर पर लक्ष्मण बैटिंग करने आए तो समझ में आ गया था कि अब इरादा कुछ और है। अब 18 ओवर में 94 रन की जरूरत थी। क्या अभी भी टेस्ट नहीं जीत सकते थे?

15 मेंडेटरी ओवर में 86 रन बनाने थे- हालांकि तेज रन की जरूरत थी पर टीम इंडिया नंबर 1 थी और विराट कोहली अभी पवेलियन में थे। दर्शक अब दिलचस्प एक्शन देखने के लिए बेताब थे। धोनी ने यहीं ड्रा का ऑफर दे दिया। असल में धोनी को सिर्फ 1978 का कराची टेस्ट याद रखना चाहिए था। पाकिस्तान 1-0 से आगे था भारत के विरुद्ध- तब भी जीत की बेताबी ऐसी थी कि आखिरी दिन 100 मिनट में जीत के लिए 163 रन बनाए थे। पाकिस्तान ने 24.5 ओवर में दो विकेट के नुकसान पर स्कोर हासिल कर लिया था। डोमिनिका में धोनी ने दिखाया ही नहीं कि चैंपियन कैसे खेल खेलते हैं ?

पवेलियन लौट कर द्रविड़ और वीवीएस ने कहा कि रन बनाना बड़ा मुश्किल हो गया था। कोई भी इस बात से सहमत नहीं था और नए-नए लोकप्रिय हो रहे सोशल मीडिया पर किसी के पास टीम इंडिया की क्रिकेट के लिए तारीफ़ में कुछ नहीं था। टेस्ट के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुद टीम कोच डंकन फ्लेचर आए। जब बार-बार उनसे इसी पर सवाल पूछे गए तो दो मिनट में ही फ्लेचर को गुस्सा आ गया। वे बोले- 'उस पिच पर रन बनाना मुश्किल था। जब जरूरी रन रेट 4-5 हो गया तो वास्तव में प्रति ओवर 3 रन भी नहीं बन रहे थे।

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रैना ने 18 गेंद में 8 रन बनाए और यहीं समझ में आ गया था कि तेजी से रन बनाने में दिक्कत थी। वीवीएस तो टेस्ट बचाने वाले बल्लेबाज थे तो उनसे पहले विराट को क्यों नहीं भेजा? ठीक है उस सीरीज में विराट ने इससे पहले कुछ खास नहीं किया था पर क्या मालूम यही बात विराट के लिए प्रेरणा बनती? टीम इंडिया इसी में खुश थी कि टॉप 4 खिलाड़ियों- सहवाग, गंभीर, तेंदुलकर और जहीर के बिना सीरीज खेले और जीते।

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