Cricket Tales - जब इंग्लैंड टीम पर लगा था गेंद पर वैसलीन लगाने का आरोप
Cricket Tales | क्रिकेट के अनसुने दिलचस्प किस्से - भारत-ऑस्ट्रेलिया 2023 सीरीज के नागपुर में पहले टेस्ट के दौरान उंगली पर मरहम लगाने के लिए रवींद्र जडेजा का नाम खूब चर्चा में रहा- इसे ऑस्ट्रेलिया की तरफ से बॉल टेंपरिंग का केस बनाने की पूरी कोशिश की गई पर आईसीसी ने जडेजा पर, अंपायरों को इस बारे में न बताने के लिए तो जुर्माना लगाया (मैच फीस का 25%) पर गेंद से छेड़छाड़ के मामले में क्लीन चिट दे दी। आईसीसी की रिपोर्ट में लिखा है- क्रीम को गेंद पर आर्टिफिशियल सब्सटेंस के तौर पर नहीं लगाया था और इसने गेंद की कंडीशन में बदलाव नहीं किया। जडेजा ने अपनी गलती मानी और ये मामला यहीं खत्म।
इस चर्चा में, भारतीय क्रिकेट में ऐसे ही गेंद पर आर्टिफिशियल सब्सटेंस के तौर पर क्रीम लगाने के आरोप का एक किस्सा याद आ गया और सच ये कि वह मामला आज तक खत्म नहीं हुआ है- किसी ने गलती नहीं मानी, किसी ने क्लीन चिट नहीं दी पर सजा उसे मिली जिसने इस बारे में बताया।
सीरीज थी : 1976-77 की भारत-इंग्लैंड
गेंदबाज जिस पर आरोप लगा : जॉन लीवर
क्रीम जो लगाई : वैसलीन
अब चलते हैं उस सीरीज पर। जॉन लीवर नए गेंदबाज थे और दिल्ली में पहले टेस्ट में डेब्यू किया। उनकी गेंद को गजब का स्विंग मिला और भारत के बल्लेबाज हैरान थे। नतीजा-10 विकेट (7-46 और 3-24) तथा इंग्लैंड की एक पारी और 25 रन की जीत। कलकत्ता में दूसरा टेस्ट- 2 विकेट लिए और इंग्लैंड की 10 विकेट से जीत। मद्रास में वह तीसरा टेस्ट- 7 विकेट (पहली पारी में 5-59) और टोनी ग्रेग की इंग्लैंड टीम को 200 रन से जीत मिली। एसेक्स काउंटी टीम के लीवर का रन-टू-विकेट और क्लासिकल साइड-ऑन, खब्बू एक्शन और भारत की पिचों पर भी उनकी गेंद काफी स्विंग कर रही थी। जॉन 'जेके' लीवर की गेंदबाजी ने टीम इंडिया के कैंप में हड़कंप मचा दिया था।
अब चलते हैं इसी मद्रास टेस्ट में- टेस्ट का तीसरा दिन। क्या हुआ ये सीधे ग्राउंड अंपायर में से एक रूबन (दूसरे अंपायर: एमएस शिवशंकरैया) के शब्दों में- 'मैंने गेंदबाज के रन-अप पर एक जालीदार पट्टी पड़ी देखी, उठाया तो देखा कि उस पर एक चिपचिपा पदार्थ लगा था। जब इस बारे में टोनी ग्रेग को बताया तो वे बोले कि यह वैसलीन है जिसे गेंदबाजों ने पसीने को अपनी आंखों में जाने से रोकने के लिए इस्तेमाल किया।'
अपनी बात साफ़-साफ़ कहने के लिए मशहूर थे भारत के कप्तान बिशन बेदी और 'विवाद' शब्द से तो मानो उनकी दोस्ती थी। उन्होंने सीधे इंग्लैंड की नई गेंद की जोड़ी लीवर और बॉब विलिस पर बॉल टेंपरिंग (गेंद से छेड़छाड़) का आरोप लगा दिया। इंटरनेशनल क्रिकेट में पहली बार इस तरह का आरोप लगा था और पूरी क्रिकेट की दुनिया में इस पर सनसनी फैल गई। इंग्लैंड ने आरोप को गलत बताया। वह पट्टी, जो रुबन ने उठाई थी- उसे जांच के लिए मद्रास की एक फोरेंसिक लैब को भेज दिया। लैब ने क्या रिपोर्ट दी- कोई नहीं जानता। बीसीसीआई ने कभी इस बारे में कुछ नहीं बताया। कई साल बाद अंपायर रूबन ने एक इंटरव्यू में कहा- 'मैं मानता हूं कि ऐसा नहीं होना चाहिए था, लेकिन हुआ, और हम इसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं कर सकते थे।'
लीवर ने सीरीज में 14.61 की औसत से 26 विकेट लिए। कुल 21 टेस्ट खेले पर ख़ास बात ये है कि जिस गेंदबाज ने अपनी डेब्यू टेस्ट सीरीज में 5 टेस्ट में 26 विकेट लिए- उसे अगले 10 साल मैं सिर्फ 16 टेस्ट और खिलाए और इनमें उन्हें 47 विकेट मिले- 33.42 की महंगी औसत पर। वे 1981-82 की सीरीज के लिए भारत भी आए पर दो ही टेस्ट खेले (7 विकेट)। 23 साल के फर्स्ट क्लास क्रिकेट करियर में 1,722 विकेट लिए।
टोनी ग्रेग ने भी कई साल बाद कहा- 'इसमें गेंदबाज ने कुछ गलत नहीं किया था और न ही गेंद चमकाने के लिए किसी अवैध पदार्थ का इस्तेमाल किया। ये एक ऑन-फील्ड फैसला था- पसीने के नमक को आंखों में आने से रोकने के लिए। ये हमारे फिजियोथेरेपिस्ट की सलाह थी और कहा था कि वही करना चाहिए जो मैराथन रनर करते हैं, यानि कि गेंदबाजों की भौंहों पर वैसलीन वाली जाली लगा दी (put some Vaseline-impregnated gauze onto the eyebrows of the bowlers)।' ऐसा करने से, पसीने को आंखों में जाने से रोक दिया और वह नीचे की ओर बह गया।
खास बात ये है कि इस इंटरव्यू में टोनी ने ये माना कि ऐसा करना बहुत ही मूर्खतापूर्ण काम था और उनके फिजियोथेरेपिस्ट ने अनजाने में ये गलती की पर किसी भी तरह से बिशन बेदी और उनकी टीम की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश नहीं कर रहे थे।
टोनी ने, बहरहाल बात को यहीं खत्म नहीं किया और बिशन बेदी को निशाना बनाते हुए कहा- 'उस समय वे काफी दबाव में थे क्योंकि टीम 2-0 से पीछे थी और उस टेस्ट के बाद, तीन-डाउन। इस बात की काफी अटकलें थीं कि वे कप्तानी गवाएंगे। इसलिए, लगता है वे हार का कोई बहाना ढूंढ रहे थे।'
आज क्रिकेट में जो पॉवर समीकरण है और बीसीसीआई का दबदबा है- उन सालों में ऐसा नहीं था। इंग्लैंड क्रिकेट में एक बड़ी 'पॉवर' था- आईसीसी में उनके पास वीटो अधिकार था। इंग्लैंड वाले ये झेल ही नहीं पाए कि भारत के कप्तान की इतनी हिम्मत कि इतना साफ़-साफ़ बॉल टेंपरिंग का आरोप लगा दे? मजे की बात ये है कि बीसीसीआई ने भी अपने कप्तान का कभी साथ नहीं दिया। बेदी के सपोर्ट में (यानि कि इंग्लैंड ने जो किया उसे गलत बताते हुए) एक स्टेटमेंट तक नहीं दी। कभी नहीं बताया कि लैब से क्या रिपोर्ट आई? उस गेंद को कब्जे में ले कर उसकी जांच क्यों नहीं की गई? वह गेंद कहां है? इन सवालों का कोई जवाब नहीं है।
भारत ने सीरीज का बंगलौर में चौथा टेस्ट जीता लेकिन सीरीज 3-1 से हार गए। बेदी ने इस सीरीज में 25 विकेट लिए और इसी दौरान 200 टेस्ट विकेट लेने वाले पहले भारतीय बने। बेदी इसके बाद भी भारत के कप्तान बने रहे पर इंग्लैंड ने उन्हें अपने ढंग से 'सजा' दी। उन सालों में, इंग्लैंड में काउंटी क्रिकेट खेलने का कॉन्ट्रैक्ट मिलना बहुत बड़ी बात होती थी और बेदी तो पिछले कई साल से बड़े अच्छे रिकॉर्ड के साथ नॉर्थम्पटनशायर के लिए खेल रहे थे। इस लीवर किस्से के बाद, काउंटी ने बेदी को उनके हक के बावजूद, बेनिफिट ईयर देने से इंकार कर दिया। इतना ही नहीं, उनका काउंटी कॉन्ट्रैक्ट बीच में तोड़ दिया। बेदी जब इसके विरुद्ध कोर्ट गए तो इंग्लैंड में किसी ने उन की मदद नहीं की और वे गवाह तक नहीं जुटा पाए। ये सभी अपने आप में अलग स्टोरी हैं।
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इस काउंटी के लिए बेदी ने फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 394 विकेट लिए जिनमें 23 बार 5 विकेट का रिकॉर्ड बनाया- ये दोनों गिनती, आज तक किसी भी भारतीय गेंदबाज का इंग्लिश काउंटी क्रिकेट में रिकॉर्ड हैं।