जौहरी ने BCCI का किया नुकसान, सीओए को उन्हें बचाना नहीं चाहिए था : डायना इडुल्जी

Updated: Sat, Jul 11 2020 20:36 IST
IANS

नई दिल्ली, 11 जुलाई| बीसीसीआई का कामकाज संभालते वक्त प्रशासकों की समिति (सीओए) के अध्यक्ष विनोद राय ने कहा था कि सभी मामलों में समिति की सदस्य और पूर्व महिला क्रिकेटर डायना इडुल्जी से राय ली जाएगी, लेकिन जैसे ही इडुल्जी ने पूर्व सीईओ राहुल जौहरी को मनमानी करने से रोकने की कोशिश की चीजें बदलने लगीं।

जौहरी के इस्तीफे को बीसीसीआई ने मंजूर कर लिया है और गुरुवार को उन्हें जाने को कह दिया है। इडुल्जी ने कहा है कि सीओए को इस मामले को बेहतर तरीके से निपटाना चाहिए था। उन्होंने साथ ही कहा है कि जौहरी की हरकतों ने भारतीय क्रिकेट और बोर्ड की छवि को नुकसान पहुंचाया है।

आईएएनएस से बात करते हुए इडुल्जी ने जौहरी के ऊपर लगे यौन शोषण के आरोपों के बाद भी उन्हें पद पर बने रहने पर हैरानी जताई। साथ ही कहा कि हाल ही में वित्तीय जानकारी जो लीक की गई है वो नई नहीं हैं।

इडुल्जी ने कहा है कि जौहरी पर लगे यौन शोषण के आरोपों के बाद उन्हें पद पर बने नहीं रहना चाहिए था।

उन्होंने कहा, "जब यह मामला अक्टूबर 2018 में सामने आया, मेरे लिए यह हैरानी वाली बात नहीं थी क्योंकि पहले का इतिहास भी था जिसके बारे में हम जानते थे। अगर यह मेरे लिए नहीं है, तो शिकायतकर्ता को जौहरी की तरफ से माफीनामा नहीं मिलना चाहिए था। शिकायतकर्ता पर मामले को खत्म करने का दबाव डाला गया। जिस तरह से चीजें चलीं, मुझे लगा कि चीजों को छुपाने की कोशिश की जा रही है। चेयरमैन और मेरे मतभेद थे और मैंने साफ कर दिया था कि सीओए में महिला सदस्य होने के तौर पर मैं ऐसी इंसान नहीं हूं जो अपने कमरे में बैठी रहे।"

उन्होंने कहा, "जब स्वतंत्र समिति बनी थी वो भी सही तरीके से नहीं बनी थी और मैंने इस पर आपत्ति जताई थी, लेकिन हर कदम पर मेरी अवेहलना कर दी गई। मुझे वो चर्चा याद है जिसमें कहा गया था कि जौहरी से इस्तीफा मांगा जाएगा। मैंने राय से जौहरी के अनुबंध के क्लॉज की बात की जो बीसीसीआई के लिए सही नहीं था। हालांकि राय ने एक दिन बाद आम सहमति से लिए गए फैसले को बदल दिया। मैंने स्वतंत्र समिति के गठन पर आपत्ति जताई क्योंकि एक शख्स के साथ हितों के टकराव का मुद्दा था।"

इडुल्जी से जब पूछा गया कि क्या वे जौहरी के क्लीनचिट दिए जाने से हैरान थीं? उन्होंने कहा- नहीं।

उन्होंने कहा, "जिस तरह से स्वतंत्र समिति काम कर रही थी, उससे साफ पता चल गया था कि वह बच निकलेंगे। जिस महिला को निकाला गया था वो जांच करना चाहती थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। रिपोर्ट उन्हें दी नहीं गईं। बिना बयान के क्या वो लोग शिकायत के लिए कोर्ट जा सकते थे?"

उन्होंने कहा, "यह हैरान करने वाला था क्योंकि मैंने साफ कर दिया था कि उन्हें जान लेना चाहिए कि क्या गलत है। मैंने जो कुछ भी किया वह अनदेखा कर दिया गया और उन्हें क्लीन चिट दे दी गई। हैरानी वाली बात यह थी कि जब क्लीन चिट दी गई तब जौहरी और उनकी पत्नी बीसीसीआई मुख्यालय में थे। उन्हें ऑफिस में तब तक नहीं होना चाहिए था जब तक उन्हें पता चले कि उन्हें क्लीन चिट मिल गई है। सीएफओ ने गुलदस्ता देकर उनका स्वागत किया और केक भी काटा गया। सीईओ को एक ईमेल भेजा गया कि उन्हें अपना काम शुरू करना चाहिए, लेकिन मैंने इसका विरोध किया।"

उन्होंने कहा, "इसके बाद उन्हें जेंडर सैनीटाइजेशन के लिए भेजा गया और वहां से भी कुछ नहीं निकला। हमें किसी तरह की रिपोर्ट नहीं भेजी गई। कोई जवाब नहीं दिए गए।"

इडुल्जी को जो सबसे ज्यादा दुख पहुंचा वो इस बात से कि जौहरी ने अधिकारियों के बीच में मतभेद पैदा करने की कोशिश की।

उन्होंने कहा, "वह हमेशा अधिकारियों को सीओए से दूर रखते थे और उनकी रणनीति शुरू में ही खराब हो गई क्योंकि मैं उनके कामकाज करने का तरीका देख रही थी। उनका मानना था कि अगर वह मतभेद पैदा कर सकते हैं तो वह आगे बढ़ेंगे। वह एक दूसरे को एक दूसरे के खिलाफ लड़वा रहे थे। जब लिमए और गुहा थे तो वे आसानी से कुछ नहीं कर पा रहे थे। लेकिन जैसे ही यह लोग चले गए तो उन्हें समर्थन मिल गया। यौन शोषण के आरोपों के बाद उन्हें काम करने देना सीओए की गलती रही। एक सदस्य की जांच काफी खतरनाक थी और अगर बाकी के दो लोगों ने उन्हें क्लीन चिट दे दी थी तो भी उन्हें जाने के लिए कह देना चाहिए था।"

उन्होंने कहा, "अगर उन्हें क्लीनचिट मिल गई थी तो क्यों उन्हें जेंडर सैनीटाइजेशन के लिए क्यों कहा गया। यह साफ इशारा करता है कि उन्हें क्लीन चिट देने के लिए चीजें दबा दी गईं।"

चयन प्रक्रिया में जौहरी की संलिप्तता को लेकर इडुल्जी ने कहा कि उन्होंने मुख्य कोच के चयन में भी टांग अड़ाई और महिला टीम के कोच के चयन में भी।

उन्होंने कहा, "एक महिला होते हुए मैं उन्हें कह रही थी कि यह सही है और यह नहीं, इससे उनके पुरुष अहम को चोट पहुंची। उनकी अकड़ ने भारतीय क्रिकेट को नुकसान पहुंचाया। मैं हमेशा से कहती आ रही हूं कि बीसीसीआई की छवि उनके कारण खराब हुई। गुलाबी गेंद टेस्ट मैच के मुद्दे को ही ले लीजिए। जौहरी ने राय को बरगला दिया क्योंकि वो लोग ही इस पर चर्चा कर रहे थे। एक बार चुनाव हुए, अधिकारियों ने गुलाबी गेंद से मैच कराया। अनिल कुंबले का मुद्दा भी सही तरीके से नहीं संभाला गया। जौहरी कुबंले के खिलाफ मैसेज दिखा रहे थे। आपको ऐसा करने की क्या जरूत है।"

उन्होंने कहा, "महिला टीम कोच की नियुक्ति में भी, वह जिस तरह से खेल रही हैं मैं उससे बेहद खुश हूं, लेकिन नियुक्ति को लेकर नियमों का पालन नहीं किया गया। यह प्रक्रिया की बात है न की अपनी मरजी की। इसलिए रिफॉर्म लाए गए थे। जहां तक कि रमेश पवार के मामले में भी दोनों कप्तानों ने मेरी गैरमौजूदगी में बात कर ली। ऐसा क्यों हुआ? हरमनप्रीत ने बैठक से बाहर निकल कर बयान दे दिया और वह बैठक में जो चर्चा हुई थी उससे अलग था।"

जौहरी की वेतन बढ़ोत्तरी पर उन्होंने कहा, "जौहरी के वेतन में की गई बढ़ोत्तरी के बारे में नहीं भूलना चाहिए। यह मामला लंबे समय से लटका था और इस मामले में पूर्व एमिकस के साथ कई बैठकें हुईं। मैंने भी सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज से बात की थी। उनसे और एमिकस से बात करने के बाद यह मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया लेकिन जब सीओए में तीसरे सदस्य ने कदम रखा चीजें बदल गईं।"

उन्होंने कहा, "जौहरी ने ईमेल लिखा और मुद्दे को दोबारा खेल दिया। मैंने अपना रुख बरकरार रखा, लेकिन बात को नकार दिया और सीएफओ को उन्हें पूरी रकम तुरंत देने के आदेश दिए गए। बीसीसीआई के मौजूदा अधिकारियों को इस पर ध्यान देना चाहिए। मैं अभी भी अपने रुख पर कायम हूं कि उन्हें वेतन में बढ़ोत्तरी नहीं दी जानी चाहिए थी।"

उन्होंने कहा, "जिस तरह से जौहरी सभी चीजों से बच निकले वह हैरानी वाला है। उनका व्यवहार काफी खराब था। वह कुछ लोगों को अपने पांव की जूती समझते थे। उन्हें अपने साथियों से भी बात करने की तमीज नहीं थी। सीओए ने जिस तरह उन्हें बचाया वो शर्मनाक है। आप अधिकारियों को इस तरह से अलग नहीं कर सकते जिस तरह से वे किए गए। वे लोग सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक काम कर रहे हैं। वह काफी इनसिक्योर इंसान थे। जो भी उनसे बेहतर या काबिल होता वह उसे हटाने की कोशिश करते।"

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