कश्मीरी युवा ने दोनों हाथ गंवाकर भी क्रिकेटर बनने के सपने को सच किया
श्रीनगर, 21 फरवरी | दक्षिण कश्मीर के बिजबेहारा के निवासी आमिर हुसैन (20) ने आठ साल की उम्र में अपने दोनों हाथ गंवा दिए थे। सचिन तेंदुलकर के इस प्रशंसक ने इसके बावजूद किसी का आसरा नहीं लिया और क्रिकेट खिलाड़ी बनने के अपने सपने को सच करते हुए एक कप्तान के तौर पर राज्य का प्रतिनिधित्व किया।
एक मशीन की चपेट में आकर अपने दोनों हाथ गंवाने वाले हुसैन ने तमाम मुश्किलों के बावजूद बल्लेबाजी, गेंदबाजी और क्षेत्ररक्षण की बेहतरीन कला सीखी और वह आज की तारीख में राज्य की पैरा क्रिकेट टीम के कप्तान हैं।
हुसैन बिजबेहारा के करीब स्थित वाघामा गांव के निवासी हैं। यह स्थान झेलम नदीं के किनारे है और कश्मीर विलो बल्ले बनाने के लिए मशहूर है। यहां के युवा जब भी मौका मिलता है, गेंद और बल्ला लेकर मैदान का रुख करते हैं।
जम्मू एवं कश्मीर के पहले अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी परवेज रसूल भी बिजबेहारा से ताल्लुक रखते हैं।
हुसैन बचपन से ही क्रिकेट खिलाड़ी बनना चाहते थे लेकिन विलो कटिंग यूनिट के पास एक आरा मशीन की चपेट में आकर अपने दोनों हाथ गंवाने के बाद उनके इस सपने पर ग्रहण लग गया। हुसैन ने इसके बावजूद हार नहीं मानी और तमाम मुश्किलों से लड़ते हुए अपने सपने को सच किया।
हुसैन के परिजनों-बशीर अहमद लोन और राजा बेगम के लिए यह बेहद दर्दनाक घटना थी। लोन खेतों में काम करते हैं। लोन ने अपने बच्चे को बचाने के लिए पूरी सम्पत्ति बेच दी। ऐसा नहीं था कि हुसैन लोन परिवार के इकलौते वारिस थे। हुसैन के अलावा लोन के चार बच्चे और हैं।
हाथ गंवाने की घटना के बाद हुसैन लगभग तीन साल तक अस्पताल में रहे। धीरे-धीरे हुसैन ने एक विक्लांग की जिंदगी जीनी शुरू की। हुसैन की दादी ने जिंदगी के नए हिस्से में उनकी हरसम्भव मदद की। इस दौरान हुसैन बेहद दर्दनाक और कठिन सुधार कार्यक्रम से गुजरे।
हुसैन ने वक्त के साथ जीवन जीने के गुर सीख लिए। वह पैरों की मदद से चीजों को उठाना सीख गए और कुछ समय बाद वह अपने होठों से पानी से भरी बाल्टी भी उठाने लगे। पैरों की मदद से वह स्नान भी कर लेते और बालों को संवार भी लेते।
हुसैन ने आईएएनएस से कहा, "अपने काम अपनी बदौलत करने की कला सीखने में मुझे दो साल लगे। अब मैं अपने सभी काम बिना किसी मदद के कर लेता हूं।"
इसी दौरान हुसैन ने पैरों से कलम पकड़ने की कला सीखी और पेंटिंग भी करने लगे। हुसैन ने कहा, "शुरुआत में मुझे लिखने में काफी दिक्कत होती थी लेकिन चूंकी मेरे पास कोई और चारा नही था, मैंने खुद को साबित करने की ठान ली।"
तमाम मुश्किलों के बीच हुसैन ने अपनी रुकी हुई पढ़ाई फिर से शुरू की और 10वीं तथा 12वीं की पढ़ाई पूरी की। हुसैन ने अपने सामने आने वाली हर एक मुश्किल को चुनौती की तरह लिया। इसी क्रम में हुसैन ने बतखों को तैरते देखकर उनसे पैरों से तैरने की कला सीखी।
इन सबके बीच हुसैन की एक क्रिकेटर बनने की हसरत मरी नहीं थी। हुसैन ने अपने गले और कंधे के बीच बल्ला पकड़ने की कला विकसित की। इससे हुसैन को गेंदबाजों का सामना करने में आसानी होने लगी।
वक्त बीतने के साथ हुसैन ने अपने पैरों के अंगूठे से गेंद पकड़ने और उनकी मदद से लेग स्पिन कराने की कला सीख ली। इस क्रम में वह अपने पैरों को कमर की मदद से झटका देते हैं।
जहां तक फील्डिंग की बात है तो वह पैरों की मदद से ही गेंद को पकड़ते हैं और कैच भी लपकते हैं।
बल्लेबाजी और गेंदबाजी की अपनी शानदार काबिलियत के कराण हुसैन को 2013 में राज्य की पैरा क्रिकेट टीम का सदस्य चुना गया और फिर वह कप्तान भी बना दिए गए।
साल 2014 में कश्मीर घाटी में आई विनाशकारी बाढ़ ने हुसैन को एक साल तक क्रिकेट से दूर रखा लेकिन राज्य टीम प्रबंधन ने उन्हें ज्यादा दिनों तक खेल से दूर नहीं रहने दिया।
हुसैन ने 2015 में लखनऊ में आयोजित अंतर-राज्यीय पैरा क्रिकेट टूर्नामेंट में अपने राज्य की टीम की कप्तानी की। राज्य ने मणिपुर के खिलाफ जीत हासिल की। टूर्नामेंट में हिस्सा लेने आए हर किसी ने हुसैन के प्रदर्शन और उनके जज्बे की तारीफ की।
जम्मू, दिल्ली और लखनऊ में खेलने के बाद अब हुसैन विदेश जाकर भारत का प्रतिनिधत्व करना चाहते हैं।
सामान्य जिंदगी हासिल करने के लिए हुसैन ने जिन हालातों का सामना किया और जिस तरह से उन पर जीत हासिल करते हुए अपने सपनों को साकार किया है, निश्चित तौर पर वह राज्य तथा पूरे देश के लोगों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बन गए हैं।
एजेंसी