नई दिल्ली, 17 अक्टूबर| क्रिकेट के प्रशासन में सुधार को लेकर गठित लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करने में हीला-हवाली के चलते सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को एकबार फिर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को लताड़ लगाई। बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर भी सोमवार को आईसीसी से सिफारिशी चिट्ठी मांगने को लेकर देश की शीर्ष अदालत को सफाई देते रहे।
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अनुराग ने सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान इस आरोप से इनकार किया कि बोर्ड ने नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) का प्रतिनिधि नियुक्त किए जाने पर अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परीषद (आईसीसी) से इसे बोर्ड के काम में सरकारी दखल बताने वाली चिट्ठी भेजने के लिए कहा था।
लोढ़ा समिति ने बोर्ड में सीएजी के प्रतिनिधि को शामिल करने की सिफारिश की है। आईसीसी से सिफारिशी चिट्ठी मांगने की बात से इनकार करते हुए अनुराग ने प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की पीठ से कहा कि उन्होंने आईसीसी के चेयरमैन और बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष शशांक मनोहर से सीएजी प्रतिनिधि की मौजूदगी के बारे में सिर्फ स्पष्टीकरण मांगा था।
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बीसीसीआई के महाप्रबंधक (प्रशासन एवं खेल विकास) रत्नाकर शिवराम शेट्टी ने अपने हलफनामे में कहा है कि आईसीसी से इस तरह की कोई मांग नहीं की गई।
अनुराग ठाकुर और शेट्टी दोनों ने अदालत के सात अक्टूबर को दिए गए निर्देश पर अपने-अपने हलफनामे दायर किए और अपना पक्ष रखा।
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अदालत लोढ़ा समिति द्वारा दायर की गई उस अर्जी पर सुनवाई कर रही है जिसमें बीसीसीआई में प्रशासनिक सुधार से संबंधित गतिविधियों पर नजर बनाए रखने के लिए अलग से एक समिति गठित करने की मांग की गई है। लोढ़ा समिति ने अदालत से कहा है कि बीसीसीआई जानबूझकर अदालत के आदेश की अनदेखी कर रही है।
अदालत ने सोमवार को मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रखा। संभावना है कि न्यायालय मंगलवार को अपना फैसला सुनाएगा।
अनुराग ठाकुर, शेट्टी और आईसीसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डेविड रिचर्डसन द्वारा मीडिया में दिए गए बयानों में टकराव पर अदालत ने अनुराग से कहा, "अगर आपने हलफनामे में झूठ कहा होगा तो यह झूठी गवाही मानी जाएगी और फिर हम आपके हलफनामे की तह तक जाएंगे।"
रिचर्डसन के मीडिया में दिए गए बयानों के मुताबिक बीसीसीआई ने आईसीसी से इस संबंध में पत्र मांगा था।
शेट्टी की इस बात का संज्ञान लेते हुए कि ऐसा कोई पत्र मांगा ही नहीं गया, प्रधान न्यायाधीश ने कहा, "क्या आप रिचर्डसन पर यह आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने झूठा बयान दिया है?"
अदालत से कहा गया कि शशांक मनोहर ने बोर्ड में सीएजी के प्रतिनिधि की नियुक्ति का यह कहते हुए विरोध किया था कि इसे बीसीसीआई के कामकाज में सरकारी दखल की तरह लिया जाएगा और इस वजह से बोर्ड को आईसीसी की सदस्यता गंवानी पड़ सकती है।
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लेकिन, जब ठाकुर ने शशांक मनोहर से इस बारे में 'स्पष्टीकरण' मांगा तो मनोहर ने कहा कि उन्होंने कहा था कि मामला शीर्ष अदालत में होने के दौरान बीसीसीआई में सीएजी प्रतिनिधि की मंौजूदगी सरकारी दखलंदाजी के समान होगी, लेकिन इस बारे में होने वाले किसी भी फैसले पर अमल किया जाएगा।
बीसीसीआई की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को अपनाने के लिए और समय की मांग करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत ने बोर्ड को इसके लिए एक साल का समय दिया था, लेकिन लोढ़ा समिति ने इसे घटाकर छह महीने कर दिया।
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सिब्बल ने कहा कि बीसीसीआई कुछ दिनों में हलफनामा दाखिल कर अदालत को बताएगी कि लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए बोर्ड ने अब तक क्या किया है और आगे क्या करने वाली है और किन सिफारिशों पर अमल नहीं हो सकता।