बीसीसीआई के कामकाज में हिस्सा ले सकते हैं राजनेता : सर्वोच्च न्यायालय
नई दिल्ली, 30 जून (CRICKETNMORE): देश के सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि उसकी मंशा भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) की स्वायत्तता में दखल देने की नहीं है, बल्कि वह सिर्फ यह चाहता है कि उसकी गातिविधियां ऐसी हों जिससे देश में खेल का विकास हो। अदालत ने इस बात को साफ किया कि वह नेताओं के बीसीसीआई के कामकाज में हिस्सा लेने के खिलाफ नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह जानना चाहती है कि देश की शीर्ष क्रिकेट संस्था ने अपने लेखा परीक्षकों से राज्य क्रिकेट संघों को दिए जा रहे पैसे का ऑडिट करने को कहा है या नहीं।
अदालत ने बीसीसीसीआई और उसके सदस्य संघों द्वारा लोढ़ा समिति की कुछ सिफारिशों को लागू करने के खिलाफ की गई अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है।
बीसीसीआई लोढ़ा समिति द्वारा एक राज्य एक वोट, अधिकारियों के कार्यकाल को सीमित करने और बीसीसीआई बोर्ड में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) का प्रतिनिधि शामिल करने की सिफारिशों के खिलाफ है।
शीर्ष अदालत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी.एस ठाकुर और न्यायमूर्ति फकीर मोहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, "हम बीसीसीआई के फैसले की समीक्षा नहीं कर रहे हैं। जैसे, अगर वह टीम का चयन करते हैं तो उसमें तेज गेंदबाज और स्पिनर होना चाहिए या नहीं, हम इसमें दखल नहीं दे सकते।"
अपने जवाब में बीसीसीआई ने अदालत में कहा कि उसे किस तरह अपना कामकाज करना चाहिए, इसको लेकर कोई उसे निर्देश नहीं दे सकता।
बीसीसीआई ने कहा कि अगर अदालत बोर्ड के अस्तित्व, संविधान, सदस्यता और सदस्यों की योग्यता में दखल देती है तो यही बात उसे देश के 64 राष्ट्रीय खेल संघों पर भी लागू करनी चाहिए।
बीसीसीआई की तरफ से दलील पेश कर रहे वरिष्ठ वकील के.के. वेणुगोपाल ने अदालत में कहा, "अगर कोई नौकरशाह या राजनेता नियमों के मुताबिक चुन कर आता है, तो इसमें कोई बंधन नहीं हो सकता।"
इस पर अदालत ने कहा, "नेता अपनी व्यक्तिगत काबिलियत के बलबूते बोर्ड में हो सकते हैं।"
वेणुगोपाल ने कहा कि देश की शीर्ष क्रिकेट संस्था को विशाल अनुभव के धनी, सर्वश्रेष्ठ लोगों की जरूरत है।
अदालत ने बीसीसीआई को नहीं बख्शते हुए कहा कि उसके राज्य संघों को उन्हें दिए गए पैसों के उपयोग का प्रमाण देना होगा।
बीसीसीआई ने राज्य संघों से पैसों के उपयोग को लेकर सारी जानकारी देने को कहा था। इस पर अदालत ने बीसीसीआई से सवाल पूछा, "आपको इससे पहले इसकी जरूरत क्यों नहीं महसूस हुई?"
वेणुगोपाल ने अदालत को बताया कि पैसों के गलत उपयोग को रोकने के लिए बीसीसीआई ने आगे फंड देना बंद कर दिया है। इस पर अदालत ने पूछा, "आपने खेल के लिए दी जा रही मदद क्यों बंद कर दी? क्योंकि, कुछ चोरों ने पैसों का गलत उपयोग किया है? मदद रोकना समस्या का समाधान नहीं है।"
अदालत ने वेणुगोपाल से पूछा, "क्या आपने अपने लेखा परीक्षकों से राज्य संघों को बीसीसीआई द्वारा दिए जा रहे फंड को ऑडिट करने को कहा है?"
वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने बीसीसीआई के कुछ कदमों का स्वागत किया।
अदालत ने गोपाल को इस मामले के लिए न्यायामित्र नियुक्त किया है।
गोपाल ने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि एक राज्य क्रिकेट संघ ने ड्राइवर, ड्राइवर की बेटी और उसके अन्य परिवार वालों को संघ का सदस्य बताया है।
उन्होंने कहा कि एक बार जब यह बता दिया गया है कि बीसीसीआई सार्वजनिक कार्यो का निर्वहन कर रही है, ऐसे में उसे नियमों के मुताबिक चलना चाहिए और अपने काम में पारदर्शिता रखनी चाहिए।
बिहार क्रिकेट संघ की तरफ से दलील पेश कर रहीं वरिष्ठ वकील नलिनी चिदम्बरम ने कहा कि एक तरफ बीसीसीआई ने अदालत को बताया है कि वह अपने काम के तरीकों में सुधार कर रही है, वहीं इसके अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने कहा है कि अगर लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू कर दिया गया तो वह बीसीसीआई को 20 साल पीछे ले जाएगी।
नलिनी चिदम्बरम ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हो जाती है तो वह बीसीसीआई में किसी पद पर नहीं बैठ सकता। अगर बोर्ड अधिकारी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल होती है तो यह गंभीर मुद्दा है। नलिनी, ठाकुर के खिलाफ धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम मामले में दायर की गई चार्जशीट के संदर्भ में यह तर्क दे रही थीं।
एजेंसी