1987 वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में भारत की वो हार, जिसका दर्द अभी तक चुभता है 

Updated: Tue, Nov 07 2023 16:21 IST
Image Source: Twitter

वर्ल्ड कप 2023 में टीम के जीत के अभियान के दौरान हार की बात शायद सही चर्चा न लगे पर हार को कभी न भूलें तो ही अच्छा रहता है। वर्ल्ड कप में. भारत को मिली किस हार पर सबसे ज्यादा दुःख हुआ था? वैसे तो पहले दोनों वर्ल्ड कप में कई मैच हारे पर तब वास्तव में जीत की उम्मीद के साथ खेले कहां थे? 1983 वर्ल्ड कप ने जीतने की आदत डाली और जब 1987 वर्ल्ड कप में सेमीफाइनल का मुकाम आया तो संयोग ये था कि दोनों मेजबान अलग-अलग सेमीफाइनल खेल रहे थे और ये लगभग तय ही मान लिया था कि ईडन गार्डंस में भारत-पाकिस्तान फाइनल देखेंगे हजारों दर्शक। 

किस्मत को कुछ और ही मंजूर था- एक तरफ ऑस्ट्रेलिया ने पाकिस्तान को हराया तो दूसरी तरफ इंग्लैंड ने भारत को। लगातार दूसरा वर्ल्ड कप जीतने का भारत का सपना एकदम टूट गया और करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों की उम्मीद टूट गई। उसके बाद से भी भारत वर्ल्ड कप में मैच हार चुका है पर उस सेमीफाइनल की हार का दर्द वे अभी भी महसूस करते हैं जो उस मैच से जुड़े थे। इंग्लैंड के 254-6 के जवाब में भारत की टीम 219 रन बनाकर आउट हुई और 35 रन से हारे। 

इस हार के लिए जिम्मेदार एक फैक्टर चुनने की बात आए तो क्रिकेट पंडित आम तौर पर ग्राहम गूच (136 गेंद में 115) की इनिंग को चुनते हैं- सब मानते हैं कि गूच ने स्वीप लगाकर भारत को 1987 वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में हरा दिया। मजे की बात ये है कि खुद गूच भी यही मानते हैं और आज भी उन्हें सबसे ज्यादा हैरानी इस बात पर है कि उनके लगातार स्वीप के बावजूद कपिल देव ने फ़ील्ड नहीं बदली। 

टूर्नामेंट में कपिल देव के मास्टर कार्ड थे मनिंदर सिंह (मैच में 3-54) और वे भी कहते हैं कि ग्राहम गूच का स्वीप करना और भारत का आख़िरी 10 ओवरों में 45 रन बनाने में नाकामयाब रहना इसके लिए जिम्मेदार था। वे तो 1987 की टीम को भारत की अब तक की सर्वश्रेष्ठ वर्ल्ड कप टीम मानते हैं और इसलिए हार पर सबसे ज्यादा दर्द हुआ- उन्हें ये दर्द आज तक महसूस होता है।  

उस सेमीफाइनल से पहले भारत ने 1983 वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में इंग्लैंड पर जीत हासिल की थी और इंग्लैंड ने उसी का हिसाब बराबर कर दिया। ग्राहम गूच अब बताते हैं कि 1987 के उस सेमीफाइनल से एक हफ्ता पहले जब वे मुंबई पहुंचे, तो उनके पास एक स्कीम थी। पिछले कुछ मैचों की भारत की फील्डिंग के चार्ट से नोट किया कि सिर्फ दो खब्बू स्पिनरों (मनिंदर और रवि शास्त्री) को सेंटर में रखकर ही कपिल फील्ड सजा रहे हैं। इसी का फ़ायदा उठाने के लिए गूच स्वीप शॉट खेलते रहे और उनकी किसी गलती के इंतजार में कपिल ने उसी ट्रेडमार्क फ़ील्ड को सजाए रखा। नतीजा मैच हाथ से निकल गया।  

उस मैच से पहले, गूच ने नोट किया था कि वानखेड़े स्टेडियम में पिच घिसी-पिटी हालत में थीं और इससे उनका जोखिम भरा स्वीप भी प्रॉडक्टिव बन गया। गूच, इंग्लैंड में भी स्वीप खेलने के लिए बड़े मशहूर थे पर वर्ल्ड कप में इससे पहले, इसे खेलने का जोखिम नहीं उठाया था।  

मनिंदर सिंह का कहना है कि 1987 के सेमीफाइनल में मिली हार से उन्हें अब भी दुख होता है। उस 1987 वर्ल्ड कप में 14 विकेट लेकर वे भारत के लिए सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज बने थे। उस समय उम्र सिर्फ सिर्फ 22 साल थी। एक टॉप स्पिनर थे और सभी उनमें बिशन बेदी की छवि देखते थे हालांकि दोनों गेंदबाजी में कई तरह से अलग थे।  

उस वर्ल्ड कप में हार की याद उन्हें सिर्फ परेशान नहीं करती- अभी भी चुभती है। ये चुभन कभी नहीं जाएगी। हालांकि 1987 के जिस वानखेड़े हादसे ने पूरे देश को विचलित कर दिया था वहीं धोनी की टीम ने 28 साल बाद वर्ल्ड कप जीता! तब भी 1987 की वह हार 1996 में ईडन और 2007 में, पहले राउंड से ही आगे न बढ़ने से भी ज्यादा घातक थी। 1987 की हार के बाद कहीं पथराव या हिंसा नहीं हुई- उस हार में दर्द था तभी तो सभी ने टीम की तारीफ़ की पर मन में कसक के साथ। 

Also Read: Live Score

मनिंदर तो वैसे भी इस वर्ल्ड कप को नहीं भूल सकते। ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध शुरुआती मैच- वह क्रीज पर थे और भारत को जीत के लिए 2 रन चाहिए थे। तब वही तनाव जो लगभग एक साल पहले देखा था- 1986 में, मनिंदर आखिरी खिलाड़ी थे, जब ऑस्ट्रेलिया ने टेस्ट मैच टाई कराया था। वहां उन्होंने डिफेंस खेलने की कोशिश की और एलबीडब्ल्यू आउट हो गए थे। इसके बाद, सभी ने उनसे कहा कि उन्हें हिट करना चाहिए था। 1987 में उन्होंने ऐसा ही किया- फिर से आउट हो गए यानि कि मुश्किल टेस्ट में फिर से फेल। 
 

TAGS

संबंधित क्रिकेट समाचार

सबसे ज्यादा पढ़ी गई खबरें