इंडिया को कोचिंग देने वाले राहुल द्रविड़ क्यों नहीं देते अपने बेटे को कोचिंग? सुनिए जवाब

Updated: Sat, Jan 13 2024 16:36 IST
इंडिया को कोचिंग देने वाले राहुल द्रविड़ क्यों नहीं देते अपने बेटे को कोचिंग? सुनिए जवाब (Image Source: Google)

भारतीय क्रिकेट टीम के मुख्य कोच राहुल द्रविड़ के कार्यकाल में टीम इंडिया ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं। हाल ही में टीम इंडिया वर्ल्ड कप जीतने से बस एक कदम दूर रह गई और उन्हीं की कोचिंग के अंडर भारतीय टीम साउथ अफ्रीका में टेस्ट सीरीज भी 1-1 से ड्रॉ करने में सफल रही। द्रविड़ टीम इंडिया के तो कोच हैं ही लेकिन उनके पास कई टी-20 फ्रेंचाईजी और अंडर-19 भारतीय टीम को कोचिंग देने का भी अनुभव है। ऐसे में हर क्रिकेट फैन के मन में एक सवाल जरूर घूमता है कि इतना दिग्गज क्रिकेटर अपने बेटे को कोचिंग क्यों नहीं देता?

अगर आप भी इस सवाल का जवाब जानना चाहते हैं कि आखिर क्यों राहुल द्रविड़ अपने बेटे समित को कोचिंग नहीं देते हैं तो इस आर्टिकल में आपको इस सवाल का जवाब मिल जाएगा क्योंकि राहुल द्रविड़ ने खुद अपने बेटे को कोचिंग देने के बारे में विचार साझा किए। समित ने पिछले कुछ समय से जूनियर क्रिकेट में प्रभावशाली प्रदर्शन किया है और हाल ही में 18 साल के इस खिलाड़ी ने कर्नाटक को कूच बिहार ट्रॉफी के फाइनल में पहुंचाने में भी अहम भूमिका निभाई।

इस ऑलराउंडर ने 7 मैचों में 37.78 की औसत से 370 रन बनाए और तीन अर्द्धशतक लगाए। दाएं हाथ के तेज गेंदबाज ने तीन बल्लेबाजों को भी आउट किया। द्रविड़ ने अपने बेटे को कोचिंंग ना देने के सवाल पर कहा कि वो अपने बेटे को कोचिंग नहीं देते क्योंकि माता-पिता और कोच एक साथ रहना मुश्किल हो जाता है।

राहुल द्रविड़ ने JioCinema पर इस सवाल के बारे में बोलते हुए कहा, “मैं अपने बेटे समित को प्रशिक्षित नहीं करता क्योंकि दो भूमिकाएं (माता-पिता और कोच) निभाना मुश्किल है। मैं पिता बनकर खुश हूं। मुझे नहीं पता कि मैं उस भूमिका में क्या कर रहा हूं।”

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इसके साथ ही द्रविड़ ने भारतीय टीम में बाएं हाथ के बल्लेबाजों के उदय पर भी टिप्पणी की। यशस्वी जयसवाल, रिंकू सिंह और तिलक वर्मा की बल्लेबाजी की जमकर तारीफ हो रही है और इसी कड़ी में द्रविड़ ने कहा, “रिंकू, जयसवाल और तिलक जैसे खिलाड़ी अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं लेकिन टीम का हिस्सा बनने के लिए आपको लगातार अच्छा प्रदर्शन करना होगा। बाएं हाथ का होना ही एकमात्र मानदंड नहीं है।''

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