इंग्लैंड क्रिकेट टीम का वो कामयाब कप्तान, जिसपर कलकत्ता में एक क्रांतिकारी लड़की ने 5 गोलियां दागी थीं
Ashes Series: एजबेस्टन में एशेज शुरू हो गई और टेस्ट एवं सीरीज की पहली गेंद जैक क्राउली ने खेली। पहले सेशन में उन का स्कोर 61 रन था- इंग्लैंड में एशेज में पहली गेंद खेलने वाले दाएं हाथ के बल्लेबाज ने, 1899 के ओवल टेस्ट के बाद पहली बार, पहले सेशन में 61 या उससे ज्यादा रन बनाए। तब ये रिकॉर्ड स्टेनली जैक्सन (Stanley Jackson) ने बनाया था। इसके बाद जब जो रुट ने 100 रन पूरे किए- तब भी उनका नाम, इंग्लैंड में बनाए 100 की गिनती पर चर्चा में आया था। यूं तो स्टेनली जैक्सन का परिचय ये है कि वे 1893 और 1905 के बीच इंग्लैंड के लिए 20 टेस्ट खेले- 1415 रन, 5 शतक, 48.79 औसत। ये सभी टेस्ट ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध थे इंग्लैंड में।
एशेज 1905 के दौरान 5 टेस्ट में कप्तानी की- 2 टेस्ट जीते पर टॉस सभी 5 जीते। उस सीरीज में 70 की औसत से 492 रन बनाए- लीड्स में 144*, मैनचेस्टर में 113, नॉटिंघम में 82* तथा द ओवल में 76 और 31 रन। साथ में 15.46 औसत पर 13 विकेट भी लिए। दोनों टीम में से वे गेंदबाजी और बल्लेबाजी औसत में टॉप पर थे। इस सीरीज की एक और बड़ी मजेदार बात ये है कि दोनों कप्तान स्टेनली जैक्सन (इंग्लैंड) और जो डार्लिंग (ऑस्ट्रेलिया) का जन्म दिन एक ही था और ऐसा अद्भुत रिकॉर्ड बनाने वाली ये कप्तान की एकमात्र जोड़ी है।
इस कमाल के रिकॉर्ड के साथ-साथ, उनका भारत से एक अलग रिश्ता है। रणजी के क्रिकेट करियर को बढ़ावा देने में तो उनका योगदान था ही पर एक स्टोरी और भी है। इस रिश्ते की रिसर्च करते हुए बड़ी हैरानी हुई कि एशेज के कुछ ख़ास स्टार में से एक जैक्सन के इस सम्बन्ध की अब तक कोई ख़ास चर्चा क्यों नहीं हुई? बड़ी अजीब और मजेदार स्टोरी है ये।
जैक्सन ने अपना आख़िरी टेस्ट 1905 में खेला। वे ब्रिटिश मिलिट्री में थे और एक्टिव सैनिक के तौर पर बॉर्डर पर कई युद्ध में हिस्सा लिया। मिलिट्री से रिटायर हुए तो राजनीति में आ गए और फरवरी 1915 में एक बाई इलेक्शन में हॉउस ऑफ कॉमंस का इलेक्शन जीत गए। नवंबर 1926 तक मेंबर ऑफ़ पार्लियामेंट रहे और जब वहां से इस्तीफा दिया तो ब्रिटिश सरकार ने उनके मिलिट्री और राजनीतिक अनुभव का फायदा उठाने के लिए, 1927 में उन्हें बंगाल का गवर्नर बनाकर भारत भेज दिया। ये वे साल थे जब भारत में आजादी की लड़ाई का जोर था और अंग्रेजों पर भारत छोड़ने के लिए दबाव बढ़ रहा था। ऐसा नहीं कि वे सिर्फ इस आंदोलन को कुचलने में ही लगे रहे- उनके को-ऑपरेटिव मूवमेंट को बढ़ावा देने के लिए, बंगाल के मालदा जिले में मालदा डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड को शुरू करने में मदद को खूब याद किया जाता है।
जब वे इस भूमिका में भारत में थे तो एक बड़ी ख़ास घटना हुई। वह 6 फरवरी 1932 का दिन था और वे कलकत्ता यूनिवर्सिटी के कनवोकेशन में ख़ास मेहमान के तौर पर हिस्सा लेने आए। वहां, जब वे भाषण दे रहे थे तो बीना दास नाम की एक स्टूडेंट ने पास से, उन पर पांच पिस्टल शॉट्स दाग दिए। कुछ तो निशाना कमजोर था और कुछ जैक्सन की मिलिट्री ट्रेनिंग काम आई और वे साफ़ बच गए। हिम्मत ये कि इसके बावजूद वहां से गए नहीं- मुस्कुराते हुए उठे और आगे भाषण फिर से शुरू कर दिया। कुछ रिपोर्ट में लिखा है कि जब वे ग्रेजुएट के नए बैच को डिग्री दे रहे थे तो उन्हीं में से एक युवा लड़की ने उन पर रिवॉल्वर से दो गोली चलाई थीं। इसी बीच, वाइस चांसलर हसन सुहरावर्दी ने उस लड़की को पकड़ लिया पर तब तक वह तीन और राउंड शूट करने में कामयाब रही। इनमें से एक शॉट, दुर्भाग्य से एक सीनियर बंगाली प्रोफेसर को लग गया। गनीमत रही कि प्रोफेसर भी बाल-बाल बच गए।
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और देखिए- 1940 में जब वर्ल्ड वॉर की आग सुलग रही थी तो लंदन में, उनके घर पर बमबारी की गई। अगस्त 1946 में उन्हें एक टैक्सी ने टक्कर मार दी- इससे उनके दाहिने पैर में बुरी तरह से चोट लग गई और इस एक्सीडेंट से वे कभी पूरी तरह ठीक नहीं हो पाए।