Cricket Tales - कन्याओं की क्रिकेट होगी, जरूर आइए - सड़क पर ये शोर कौन करता था?

Updated: Mon, Dec 12 2022 08:29 IST
Mahendra Kumar Sharma (Image Source: Google)

कुछ घंटे पहले, कुछ अखबारों के खेल पेज पर एक छोटी सी खबर छपी- पुणे में महेंद्र कुमार शर्मा का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। ये किसी इंटरनेशनल क्रिकेटर का नाम तो है नहीं। कौन थे वे?

इस सवाल का जवाब देने से पहले आमिर खान की फिल्म 'दंगल' का जिक्र जरूरी है। उसमें दिखाया कि जब महावीर फोगाट की बेटियां गीता और बबिता, कुश्ती के दंगल में हिस्सा लेती थीं तो उनके मुकाबलों में भीड़ जुटाने के लिए छोटे शहरों और कस्बों में सड़क और गलियों में लाउडस्पीकर पर शोर किया जाता था। क्या आप विश्वास करेंगे कि एक समय ऐसा भी था जब भारत में लड़कियों के क्रिकेट मैचों के लिए ऐसे ही शोर से भीड़ इकट्ठी की जाती थी। ये बात है नवाबों के शहर लखनऊ की और दौर था 1970 के दशक की शुरुआत का। एक व्यक्ति ऑटो पर बैठकर सड़क-सड़क/गली-गली लाउडस्पीकर पर शोर करता था- 'कन्याओं की क्रिकेट होगी, जरूर आइए।' तब कहीं कुछ सौ लोग मैच देखने जुटते थे। लाउडस्पीकर से शोर करने वाले इस व्यक्ति का नाम था- महेंद्र कुमार शर्मा।  

आज भारत में महिला क्रिकेट की ग्राउंड और ग्राउंड से बाहर के मुकाम/कामयाबी का जिस गर्व से जिक्र होता है- वहां एकदम नहीं पहुंचे। जिस व्यक्ति ने, इसके लिए सबसे ज्यादा मेहनत की- वे थे महेंद्र कुमार शर्मा। बीसीसीआई ने तो महिला क्रिकेट की जिम्मेदारी 2006 में ली और और उनके खजाने में तब करोड़ों रुपये थे पर महेंद्र कुमार शर्मा तो बिना किसी सरकारी मदद और कमर्शियल स्पॉन्सरशिप महिला क्रिकेट के मैच आयोजित करते रहे। और तो और, वह ऐसा जमाना था कि मैच देखने जो कुछ सौ लोग आते भी थे- उन में से ज्यादातर इसलिए आते थे कि लड़कियां स्कर्ट पहनकर क्रिकेट खेल रही हैं।   

महेंद्र कुमार शर्मा ने मेहनत से महिला क्रिकेट एक पहचान दिलाई। अपनी प्रॉपर्टी तक बेच दी खर्चे के लिए। 1973 में बनाई वूमन क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ इंडिया और भारत में महिला क्रिकेट को एक स्वरूप दिया। भारत सरकार से इस एसोसिएशन को मान्यता दिलाई और इंटरनेशनल एसोसिएशन की सदस्यता। तभी तो इंटरनेशनल मैच ही नहीं वर्ल्ड कप तक आयोजित कर दिया- भारतीय महिला क्रिकेट टीम का पहला टेस्ट मैच 1976 में बैंगलोर में, 1978 और 1997 में महिला वर्ल्ड कप। 1997 के इंग्लैंड-ऑस्ट्रेलिया, ईडन गार्डन फाइनल को देखने स्टेडियम में 80 हजार से ज्यादा दर्शक मौजूद थे।

महिला नेशनल चैंपियनशिप शुरू की। क्रिकेटरों को एडमिनिस्ट्रेशन में लाए- शुभांगी कुलकर्णी को डब्ल्यूसीएआई का सेक्रेटरी बनाया। आज जिन डायना एडुल्जी, शांता रंगास्वामी और सुधा शाह जैसी  क्रिकेटरों के बारे में पढ़ते हैं वे उस क्रिकेट स्वरुप की देन हैं जो महेंद्र कुमार शर्मा ने तैयार किया था। 

जब पैसे और सुविधाओं की कमी में वे क्रिकेट मैच आयोजित करते रहे तो कई स्टोरी हैं उनकी मेहनत की। लाउडस्पीकर पर उनकी घोषणा सुनकर लखनऊ के क्वीन्स एंग्लो संस्कृत कॉलेज के छोटे से ग्राउंड में मैच देखने आने वालों में एक कॉलेज स्टूडेंट शुभंकर मुखर्जी भी थे- वे क्रिकेट खेलते थे। बड़े शौकीन थे। एक बार वे लड़कियों के एक ऐसे मैच को देखने आए और 10 बजे मैच शुरू होने का वक्त आ गया पर स्कोरर नहीं आया था। महेंद्र कुमार शर्मा ने इन्हीं शुभंकर को स्कोरर बना दिया। लेट-लतीफ स्कोरर 11 बजे आया।  

उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी क्रिकेट के लिए पैसे का इंतजाम। वे इसके लिए मैच भी आयोजित करते थे। ऐसा ही एक फ्रेंडली मैच बॉलीवुड और क्रिकेट को मिला कर (उस समय के टॉप स्टार विनोद खन्ना समेत कई स्टार इसमें खेले) 1975 में पुणे में आयोजित किया था। उन सालों में, भारत की टीम की खिलाड़ी बिना रिजर्वेशन,ट्रेन में थर्ड क्लास में सफर करती थीं। तब भी एक मौका ऐसा बना कि उन्हें क्रिकेटरों को फ्लाइट पर ले जाना पड़ा। कब? 

असल में, वे बड़ी कोशिश कर रहे थे कि महिला टीम की उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुलाक़ात हो जाए- उन्हें लगता था कि जब फोटो/खबर अख़बारों में छपेगी तो महिला क्रिकेट को खूब मशहूरी मिलेगी। एक दिन पीएमओ ने अपॉइंटमेंट दे दी पर कुछ ही घंटे का समय दिया। वे तब टीम को फ्लाइट पर दिल्ली ले गए थे और ये पहला मौका था जब भारत की महिला क्रिकेट टीम ने एयर ट्रेवल किया। तब बहुत बड़ी बात ही ये।  

और एक किस्सा। भारत ने अपना पहला इंटरनेशनल खेला फरवरी 1975 में मेहमान ऑस्ट्रेलियाई अंडर-25 के विरुद्ध। पुणे, दिल्ली और कोलकाता में तीन टेस्ट खेले। स्वतंत्र भारत के पहले टेस्ट कप्तान लाला अमरनाथ, उनके अनुरोध पर राजी हो गए लड़कियों को कोचिंग देने। लाला जी ने भविष्य की तैयारी के लिए एक बड़ा अनोखा प्रयोग किया- हर टेस्ट के लिए अलग-अलग कप्तान :  उज्ज्वला निकम, सुधा शाह और श्रीरूप बोस।  तीनों टेस्ट ड्रा रहे।  

 

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कई स्टोरी हैं उनके साथ और इनमें से सबसे बड़ी ये कि जिस व्यक्ति ने भारत में महिला क्रिकेट की नींव रखी और 2006 में बीसीसीआई के अपने बैनर में लेने तक चलाया- उसे बीसीसीआई ने बिल्कुल नजरअंदाज कर दिया और महिला क्रिकेट के साथ किसी भी रोल में नहीं जोड़ा। वे बहरहाल महिला क्रिकेट की प्रगति देखकर बड़े खुश थे- इसी में किसी ने भी उन्हें याद नहीं रखा। उनकी मौत के बाद- सिर्फ उस दौर की यादें बची हैं।

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