Cricket Tales - कहानी सचिन तेंदुलकर की फेरारी कार की
Sachin Tendulkar Story: सबसे मशहूर वह ऑडी 100 कार जो रवि शास्त्री को 1985 में ऑस्ट्रेलिया में बेंसन एंड हेजेज वर्ल्ड क्रिकेट चैंपियनशिप में, चैंपियन ऑफ चैंपियंस का अवार्ड जीतने पर मिली थी। इसके बाद कौन सी कार? हर रोज एमएस धोनी, विराट कोहली, रोहित शर्मा और हार्दिक पांड्या जैसे क्रिकेटर के महंगी कार खरीदने की खबर छपती रहती है पर इससे उनकी कोई कार मशहूर नहीं हुई- सिर्फ कीमत या ब्रैंड से कुछ नहीं होता।
दूसरी सबसे मशहूर कार है फेरारी 360 मोडेना, जो सचिन तेंदुलकर को, एक सरप्राइज गिफ्ट के तौर पर FIAT ने दी- वे प्रीमियम फेरारी बनाते हैं। तेंदुलकर ने डॉन ब्रैडमैन के 29 टेस्ट शतक के रिकॉर्ड की बराबरी की तो ये कार देने की घोषणा हुई थी। फेरारी के फॉर्मूला वन ड्राइवर माइकल शूमाकर ने कंपनी की ओर से तेंदुलकर को कार भेंट की- 2002 में सिल्वरस्टोन, इंग्लैंड में। तब तेंदुलकर, टीम इंडिया के साथ इंग्लैंड टूर पर थे। उनके लिए इससे भी बड़ी खबर ये थी कि लंबे इंतजार के बाद, सरकार ने उन्हें बिना ड्यूटी, कार भारत लाने की इजाजत दे दी। ड्यूटी के इसी मसले ने, इस कार को गजब की चर्चा दिलाई। उन दिनों, विदेशी कार एक सपना हुआ करती थी।
जब अगस्त 2003 में फाइनेंस मिनिस्ट्री ने ड्यूटी छोड़ने का ये फैसला लिया तो उनकी फाइल में दो गिनती दर्ज की गईं- 1.13 करोड़ रुपये (तब लगभग 245,000 अमरीकी डालर) की ड्यूटी छोड़ रहे हैं 75 लाख रुपये (तब लगभग 162,600 अमेरिकी डॉलर) की कीमत की कार पर। तब फाइनेंस मिनिस्टर यशवंत सिन्हा थे और उन्होंने कहा- तेंदुलकर देश के लिए जो गौरव लाए. उसकी वजह से वे इस रियायत के लिए हकदार हैं।
रवि शास्त्री की ऑडी की मिसाल देते हुए, सचिन तेंदुलकर ने फेरारी पर ड्यूटी माफ़ करने का अनुरोध किया था। इसी पर विवाद हो गया। तेंदुलकर के इसी अनुरोध ने, देश में नई बहस शुरू कर दी- क्या वास्तव में ड्यूटी माफ़ करना तो दूर, इस कार के लिए, कोई रियायत भी दी जानी चाहिए? इस सोच की दो वजह थीं -
1. तेंदुलकर को ये फेरारी फिएट ने गिफ्ट दी, न कि शास्त्री की तरह तेंदुलकर ने इसे किसी मैच/टूर्नामेंट में जीता।
2. तेंदुलकर के पास इतनी संपत्ति है तो क्यों वे मिले तोहफे पर भी ड्यूटी छोड़ने की बात कर रहे हैं?
सरकार भी पहले तो ड्यूटी माफ़ करने के मूड में नहीं थी पर बाद में मान गई। कपिल देव भी चुप नहीं रहे और इसे 'डबल स्टैंडर्ड' का नाम दे दिया- 'मैं सचिन को कार मिलने से खुश हूं, पर ड्यूटी की माफी हर खिलाड़ी को मिलनी चाहिए- आप एक व्यक्ति के लिए पॉलिसी नहीं बदल सकते।'
एक एनजीओ पतित पावन संगठन, तो सरकार के इस फैसले से इतने नाराज थे कि पुणे में तिलक रोड पर ड्यूटी का पैसा इकट्ठा करने के लिए 'भीख मांगना' शुरू कर दिया- 'एक आम आदमी ड्यूटी चुकाता है, लेकिन तेंदुलकर जैसा व्यक्ति, जिसके पास बेशुमार पैसा है- सरकार से उस कार पर ड्यूटी माफ करने के लिए कहता है जो उसे गिफ्ट मिली।' संगठन के सदस्यों ने तेंदुलकर की एक बड़ी फोटो हाथ में लेकर लोगों से एक-एक रुपया जमा किया और कहा कि पैसा मनीआर्डर से तेंदुलकर को भेजेंगे।
मामला मुंबई हाई कोर्ट में भी पहुंच गया और सरकार के एक करोड़ रुपये से ज्यादा की ड्यूटी माफ़ करने के फैसले को, चुनौती दी गई। वहां सरकार की तरफ से कहा गया कि सचिन तेंदुलकर को गिफ्ट मिली, फेरारी कार पर ड्यूटी माफ करना 'पब्लिक इंटरेस्ट' गिना जाएगा क्योंकि ये उनके रिकॉर्ड 29 टेस्ट शतक के लिए मिली।
और बड़ा तमाशा ये रहा कि ड्यूटी माफ़ कराने के बाद सचिन तेंदुलकर ने इस कार को बेच दिया- शहर के एक व्यवसायी, राज हंस ग्रुप के अध्यक्ष जयेश देसाई को। उन्होंने कहा- 'फेरारी चलाना मेरा सपना था जो अब सच हो गया है।' इसके अतिरिक्त कार, इसलिए ख़ास है क्योंकि इसके मालिक सचिन तेंदुलकर हैं।'
जब फेरारी पर ड्यूटी माफ़ करने का ये मसला चर्चा में था तो उस समय इस संदर्भ में गाइडलाइन ये थी कि ड्यूटी में छूट, सिर्फ उस इनाम के लिए दी जा सकती है जो किसी खेल/ टूर्नामेंट की शुरुआत से पहले विजेता के लिए घोषित हो जैसा कि रवि शास्त्री की ऑडी के मामले में था। तेंदुलकर को छूट पर स्पष्टीकरण ये था कि भले ही कार किसी चैंपियनशिप में नहीं मिली, पर सर डॉन ब्रैडमैन के 29 शतक के रिकॉर्ड की बराबरी करना भी एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। इसलिए ड्यूटी से छूट दी जा सकती है।
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इस तमाशे का असर ये हुआ कि सरकार ने ड्यूटी में छूट की गाइडलाइन ही बदल दीं और साथ ही सरकार को हर मामले में अलग-अलग फैसला लेने का अधिकार भी मिल गया। इस बीच, इस विवाद के चलते फिएट ने सचिन की फेरारी पर पूरी ड्यूटी देने का प्रस्ताव रख दिया- कंपनी ने कहा कि कार दे रहे हैं तो उसे तेंदुलकर के घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उनकी है।