Cricket Tales - गेंदबाज ने ओवर डालने से इंकार किया और कप्तान ने गुस्से में उसे ग्राउंड से बाहर निकाल दिया !

Updated: Thu, Oct 27 2022 09:38 IST
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Cricket Tales - इस साल सितंबर में 2022 दलीप ट्रॉफी फाइनल के दौरान युवा क्रिकेटर यशस्वी जायसवाल को लेकर एक बड़ी ख़ास बात हुई। इस वेस्ट जोन-साउथ जोन फाइनल के पांचवें दिन के पहले सेशन में वेस्ट जोन के कप्तान अजिंक्य रहाणे ने यशस्वी जायसवाल को मैच के बीच, ग्राउंड से बाहर निकाल दिया। वे, मना किए जाने के बावजूद, जायसवाल की स्लेजिंग और तेजा से झड़प से नाराज थे। ये कप्तान के संयम के टूटने का मामला था और वे ऐसा फैसला लेने पर मजबूर हो गए जो क्रिकेट में दिखाई नहीं देता। क्या ऐसा पहले कभी हुआ है?

टेस्ट क्रिकेट का एक बड़ा अनोखा किस्सा है- इससे मिलता-जुलता। ये किस्सा है इंग्लैंड के पेसर एलन वार्ड का। वार्ड के करियर ने बड़ी उम्मीद जगाईं पर कभी ख़राब फार्म तो कभी ख़राब फिटनेस ने गड़बड़ कर दी। उन्हें गुस्सा भी बड़ा आता था। अपने सबसे बेहतर दौर में वे इंग्लैंड के सबसे तेज पेसर में से एक थे और इसीलिए ही तो उन्हें जॉन स्नो के साथ 1970-71 के रे इलिंगवर्थ की टीम के एशेज टूर के लिए चुना था। इंग्लैंड किसी भी कीमत पर एशेज जीतना चाहता था और वार्ड उस स्कीम का ख़ास हिस्सा थे। इस टूर में स्नो तो हीरो बन गए (31 टेस्ट विकेट) और वार्ड जीरो- सीरीज शुरू होने से पहले ही चोट लग गई और टूर के बीच में ही वापस भेज दिए गए।

हैरानी की बात ये है कि इतना अच्छा होने के बावजूद सिर्फ 5 टेस्ट खेले जिनमें 14 विकेट लिए- इसलिए करियर वो रहा ही नहीं, जिसकी उम्मीद थी। कई वजह हैं इसकी- अगर ख़राब फिटनेस तो गुस्सा भी। 1972 सीजन- सिर्फ 8 फर्स्ट क्लास मैच खेले, जिनमें से एक एमसीसी के लिए मेहमान ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध था। स्पष्ट है वे सेलेक्टर्स की स्कीम में थे। 1973 सीजन तो और भी ख़राब रहा- पहले 6 मैचों में सिर्फ 7 विकेट।

अगला मैच डर्बीशायर-यॉर्कशायर था, चेस्टरफील्ड में। दूसरे दिन लंच से पहले डर्बीशायर टीम 311 पर आउट हो गई। वार्ड, नंबर 9 पर खेले और 0 पर आउट हुए। वार्ड हालांकि कोई बहुत अच्छे बल्लेबाज नहीं थे जिसका सबूत उनकी टेस्ट और फर्स्ट क्लास क्रिकेट की 9 से भी कम औसत है- तब भी 0 पर आउट होने से उनका मूड बिगड़ गया।

हालांकि यॉर्कशायर की पारी में पहले ओवर में ही ज्योफ बॉयकॉट जैसे टॉप बल्लेबाज को 4 रन पर आउट कर दिया पर डर्बीशायर के कप्तान ब्रेन बोलस को साफ़ नजर आ रहा था कि वे सही मिजाज से गेंदबाजी नहीं कर रहे। गेंद इधर-उधर जा रही थीं। लंच के बाद, कुछ ही देर में 9 नो बाल फेंक दीं। उस पर जब वार्ड की गेंद पर, जॉन हैम्पशायर का स्लिप में कैच छूट गया तो मूड और बिगड़ गया। गेंद की लाइन बिगड़ गई और हैम्पशायर ने ऐसे में वार्ड के एक ओवर में 19 रन ठोक दिए।

बोलस ने अब वार्ड को अटैक से हटा लिया। सबने समझा वार्ड भी अब शांत हो जाएंगे। चाय के फोरन बाद, डर्बीशायर के कप्तान ब्रेन बोलस ने वार्ड को गेंद दी। वार्ड तब तक भी आत्मविश्वास की कमी, नो बॉल की समस्या और रन-अप में सही लय न होने में ही उलझे हुए थे- गेंदबाजी करने से इनकार कर दिया। कप्तान ने कहा भी कि बिना तनाव गेंदबाजी करें पर वार्ड नहीं माने। अब कप्तान बोलस को भी गुस्सा आ गया- उन्होंने चलते मैच के बीच वार्ड को ग्राउंड से बाहर निकाल दिया। कई साल बाद, वार्ड ने उस समय को याद करते हुए कहा- 'जब ब्रेन ने मुझे गेंदबाजी के लिए कहा, तो मेरे अंदर कुछ विस्फोट हो गया। लोग कभी नहीं समझेंगे, लेकिन मैं बस इतना चाहता था कि मैच से हट जाऊं।'

ये तो बाद में पता चला कि बोलस को अंदाजा था कि ऐसा कुछ हो सकता है- इसलिए वे डर्बीशायर के सीनियर अधिकारियों को हालात के बारे में बता चुके थे। उधर पवेलियन लौट कर भी वार्ड शांत नहीं हुए और दिन का खेल ख़त्म होने से पहले ही, स्टेडियम से चले गए। वार्ड ने बाद में अपने इस व्यवहार के लिए माफी मांगी पर तीन दिनों की अफवाह के बाद, 25 साल की उम्र में ही क्रिकेट से रिटायर होने की घोषणा कर दी। डर्बीशायर ने उनका कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया।

सिर्फ 5 महीने बाद वार्ड ने फैसला बदल लिया। पड़ोसी काउंटी लेस्टरशायर ने बिना देरी उन्हें खेलने बुला लिया।1974 सीज़न- 20.96 की औसत से 56 विकेट और ये उनके सबसे बेहतर सीजन में से एक था। तब भी उन्हें 1974 के आखिर में ऑस्ट्रेलिया गई टीम में शामिल नहीं किया और इसे आज तक इंग्लिश सेलेक्टर्स के सबसे गलत फैसलों में से एक गिना जाता है। माइक डेनेस की टीम सीरीज में बुरी तरह हारी। लिली और थॉमसन का जवाब देने के लिए इंग्लैंड के पास कोई था ही नहीं।

1976 में वे अपने 5 टेस्ट में से आख़िरी में खेले- तब मजबूरी में कई चोटिल गेंदबाज देखकर, उन्हें बुलाना पड़ा था। वेस्टइंडीज के विरुद्ध इस हेडिंग्ले टेस्ट में 4 विकेट लिए और टोनी ग्रेग के साथ 46 रन जोड़े 9 वें विकेट के लिए जो बड़े कीमती थे। अगला टेस्ट भी खेलते पर फिर से चोटिल और फिर से टीम से बाहर।

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ये जरूर है कि खिलाड़ियों को, कप्तान द्वारा, ग्राउंड से बाहर भेजने की मिसाल ज्यादा नहीं हैं।

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