Cricket Tales - देश के हालात पर क्रिकेटर के विरोध का अनोखा किस्सा

Updated: Sun, Jul 24 2022 20:50 IST
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Cricket Tales - श्रीलंका में अंदरूनी कलह में जो हो रहा- सभी जानते हैं। क्रिकेटर भी चुप नहीं रहे। ऑस्ट्रेलिया टीम की हिम्मत की तारीफ़ करनी होगी कि इस माहौल में भी वे टेस्ट खेले। स्टीव स्मिथ ने गाले में प्रदर्शन पर लिखा भी- ग्राउंड में क्रिकेट चल रही थी और हजारों प्रदर्शनकारी गाले इंटरनेशनल स्टेडियम के सामने फोर्ट की दीवारों पर थे। किसी ने, किसी क्रिकेटर को नुकसान पहुंचाने या खेल रोकने की कोशिश नहीं की। अब पाकिस्तान की टीम खेल रही है वहां।

क्या आपने नोट किया कि श्रीलंका में खराब आर्थिक स्थिति के विरोध में श्रीलंका के क्रिकेट दिग्गज महेला जयवर्धने, कुमार संगकारा, सनथ जयसूर्या, मारवन अट्टापट्टू और रोशन महानामा भी बोले पर मौजूदा क्रिकेटरों में से कोई कुछ नहीं बोला- सब चुप हैं। शायद बोर्ड का कॉन्ट्रैक्ट उन्हें इसकी इजाजत नहीं देता। हर कोई ऐसे चुप नहीं रहता। इन हालात ने सीधे उस समय की याद ताजा करा दी जब दुनिया के नक़्शे पर पूर्वी पाकिस्तान मौजूद था- यही आज का बांग्लादेश है। वहां विरोध की लहर, राजनीतिक रंग ले रही थी तो जहां एक ओर इस्लामाबाद ने सेना की मदद ली- वहीं विश्वास कीजिए क्रिकेट का भी इस्तेमाल किया।

1970 में एक तरफ गृहयुद्ध का माहौल तो दूसरी तरफ पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने अपना पूरा ध्यान पूर्वी पाकिस्तान में क्रिकेट पर लगा दिया। एक नए अंडर-19 टूर्नामेंट की शुरुआत की- इसमें तीन पूर्वी पाकिस्तान टीमें शामिल थीं। इतना ही नहीं, धधकते युद्ध के माहौल के बावजूद, सरे और इंग्लैंड के मिकी स्टुअर्ट की कप्तानी में टूर पर आई इंटरनेशनल इलेवन को ढाका में खेलने पर राजी कर लिया।

इस टीम का पहला मैच कराची में था- इंतिखाब आलम (6-30) की लेग-स्पिन के सामने मेहमान हारे। दूसरा मैच ढाका में था। पूर्वी पाकिस्तान में रहने वालों को खुश करने के चक्कर में, बोर्ड ने ढाका यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट-क्रिकेटर रोकीबुल हसन (Raqibul Hasan) को बोर्ड इलेवन में ले लिया। लतीफ और नियाज अहमद भी टीम में थे पर फर्क ये था कि रोकीबुल बंगाली थे। ये वही रोकीबुल थे जो उससे पहले न्यूजीलैंड के विरुद्ध टेस्ट में आख़िरी इलेवन में आते-आते रह गए थे। तब बोर्ड इलेवन के कप्तान इंतिखाब आलम थे और टीम में मुश्ताक मोहम्मद, जहीर अब्बास, वसीम बारी, सरफराज नवाज, आसिफ मसूद और आफताब बलूच जैसे खिलाड़ी भी थे।

पाकिस्तान बोर्ड ने अब रोकीबुल को अपना पोस्टर बॉय बना दिया और नारा था- हर खिलाड़ी के लिए बराबर मौका। ढाका मार-काट की आग में झुलस रहा था पर मिकी स्टुअर्ट की टीम मैच खेलने आ गई। बोर्ड को लगा था कि रोकीबुल खुश होकर, माहौल बेहतर बनाने में सरकार का साथ देंगे और छात्रों का आंदोलन रुकेगा। रोकीबुल हसन ने मैच से पहले ही इस चाल में फंसने से साफ़ इंकार कर दिया। इसके बाद जो रोकीबुल ने किया वैसा आज श्रीलंका का तो क्या, कोई भी क्रिकेटर नहीं कर सका। रोकीबुल ओपनर थे और जिस बैट से बल्लेबाजी करने मैदान में उतरे उस पर सामने बांग्लादेश का नक्शा बना था और नए देश का नाम लिखा था। इतना ही नहीं, मैच के दौरान अपनी टीम के खिलाड़ियों को कहा- इस बार तो खेल लो, अगली बार जब खेलने ढाका आओगे तो वीजा लेना पड़ेगा।

रोकीबुल ने मैच की दोनों पारी में सिर्फ 1-1 रन बनाए पर जो सन्देश वे देना चाहते थे वह दे दिया और उसने जोश की लहर पैदा कर दी। उधर मैच के दौरान ही खबर आ गई कि नेशनल असेंबली भंग, समझौते की सारी उम्मीदें खत्म, सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान पर नियंत्रण खो दिया, गृहयुद्ध का बिगुल बजा और राष्ट्रवादी विद्रोह का आख़िरी राउंड शुरू हो गया।

मैच के दौरान, ढेरों छात्र स्टेडियम में घुस आए और पिच तक पहुंच गए। इंटरनेशनल इलेवन उस वक्त फील्डिंग कर रही थी। छात्रों के लीडर ने स्टुअर्ट से कहा- 'आपको या आपके खिलाड़ियों को कोई खतरा नहीं लेकिन हम चाहते हैं आप मैच यहीं रोक दें।' मिकी स्टुअर्ट ने कहा- 'हम जीत के बहुत करीब हैं। क्या आप तब तक इंतजार नहीं कर सकते?' किसने इंतज़ार करना था?

टीम को ड्रेसिंग रूम लौटना पड़ा। तब तक स्टेडियम के बाहर से गोलियां चलने की आवाजें सुनाई देने लगी थीं। आग लगी थी जगह-जगह। दोनों टीमों को, कैसे बचाकर, स्टेडियम से किसी सुरक्षित जगह पहुंचाया गया- ये एक अलग स्टोरी है। स्टुअर्ट ने अपनी रिपोर्ट में लिखा- रास्ते में सड़क पर लाशें पड़ी थीं। आखिर में बांग्लादेश बना। मैच में खेल रहे क्रिकेटर के विरोध की मिसाल कायम की रोकीबुल ने।

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