अंडर 19 वर्ल्ड कप फाइनल में भारतीय टीम को मिली हार, आखिर कहां चूक हुई?

Updated: Mon, Feb 10 2020 17:39 IST
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10 फरवरी। भारत ने अंडर-19 विश्व कप फाइनल तक पहुंचने के लिए सब कुछ किया। टीम फाइनल में पहुंची भी। फाइनल तक पहुंचने के सफर में जब टीम की बल्लेबाजी विफल हुई तो उसके गेंदबाजों ने मैच जिताया और जब गेंदबाज असफल रहे तो उसके बल्लेबाजों ने मैच जिताया। लेकिन फाइनल में जाकर टीम की किस्मत उससे रूठ गई। फाइनल का दिन किसी भी भारतीय खिलाड़ी का दिन नहीं था और शायद रही कारण रहा कि टीम को बांग्लादेश के हाथों तीन विकेट से हार झेलकर खिताब गंवाना पड़ा।

बांग्लादेश किसी भी स्तर पर पहली बार आईसीसी विश्व कप जीतने में कामयाब रहा। वहीं, भारत का रिकॉर्ड पांचवीं बार चैंपियन बनने का सपना टूट गया। भारत ने इससे पहले 2000, 2008, 2012 और 2018 में यह खिताब अपने नाम किया था।

दक्षिण अफ्रीका में अपने खिताब बचाओ अभियान की शुरुआत करने से पहले भारत ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ द्विपक्षीय सीरीज खेली और विश्व कप की तीन अन्य टीमों के खिलाफ भी मैच खेले। इन मैचों में भारत ने अपने मध्यक्रम में तिलक वर्मा, सिद्धेश वीर और ध्रुव जुरेल के बेहतरीन प्रदर्शन के दम पर दोनों सीरीज भी जीती।

लेकिन विश्व कप में ग्रुप चरण के मैचों को छोड़ दिया जाए तो नॉकआउट चरण में भारत का मध्यक्रम असफल रहा। क्वार्टर फाइनल में आस्ट्रेलिया के खिलाफ भारत की मध्यक्रम की विफलता सेमीफाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ पता नहीं चल पाई क्योंकि भारत ने इस मैच में पाकिस्तान को 10 विकेट से हरा दिया था। फाइनल में नंबर चार से लेकर नंबर सात तक बल्लेबाजों ने केवल 32 रनों का योगदान दिया।

फाइनल में भारतीय टीम बांग्लादेश की कसी गेंदबाजों के सामने केवल 177 रन ही बना सकी। कप्तान प्रियम गर्ग ने माना कि मध्य ओवरों में समय का अभाव एक अलग भूमिका निभा सकती थी।

उन्होंने कहा, "तीन ओवर पहले ही ऑलआउट होना भी एक कारण है। लेकिन जिस तरह से हमने शुरूआत की उसे देखते हुए हमारे मध्यक्रम को इसे अच्छी तरह से फिनिश करना चाहिए था। जायसवाल और सक्सेना ने विकेट के अनुसार हमें शुरुआत दी और यह अच्छा था। इसके बाद तिलक वर्मा ने भी अच्छी शुरुआत दी। लेकिन अच्छी शुरुआत के बावजूद हमारा मध्यक्रम इसे आगे जारी नहीं रख पाया।"

बांग्लादेश को मामूली लक्ष्य देने के बाद ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि भारतीय गेंदबाज कसी हुई गेंदबाजी करेंगे और बांग्लादेश के बल्लेबाजों को आसानी से रन नहीं देंगे। लेकिन बल्लेबाजों की विफलता को गेंदबाजों ने भी जारी रखा और 33 रन अतिरिक्त खर्च कर डाले। अगर देखा जाए तो बांग्लादेश ने 19.41 प्रतिशत रन अतिरिक्त रनों के रूप में बटोरे।

भारत ने फाइनल से पहले कम ही अतिरिक्त रन खर्च किए थे। उसने श्रीलंका के खिलाफ 19, न्यूजीलैंड के खिलाफ 18, आस्ट्रेलिया के खिलाफ 13 और पाकिस्तान के खिलाफ 12 रन एक्सट्रा दिए थे। लेकिन फाइनल में 33 रन एक्सट्रा खर्च करना उसे काफी महंगा पड़ गया, जिसके कारण वह अपने खिताब का बचाव नहीं कर पाया।

भारत ने एक समय 102 रन तक बांग्लादेश के छह विकेट आउट कर दिए थे और उसके पास बांग्लादेश के ऊपर दबाव बनाने का अच्छा मौका था। लेकिन कप्तान प्रियम द्वारा सही से अपने गेंदबाजों का इस्तेमाल न करना टीम के लिए घातक साबित हुआ।

स्पिनर रवि बिश्नाई ने अपने पहले ही ओवर में भारत को सफलता दिला दी थी और फिर अगले छह ओवर में उसने बांग्लादेश के तीन और विकेट निकालकर भारत को मैच में वापस ला दिया था। लेकिन कप्तान ने सात ओवर के बाद बिश्नोई को गेंदबाजी मोर्चे से हटा लिया, जिससे बांग्लादेश के ऊपर से दबाव कम हो गया।

जब आप छोटे से स्कोर का बचाव करते हैं तो लगातार विकेट हासिल करते रहने के लिए आपको विपक्षी टीम पर लगातार दबाव बनाए रखना पड़ता है। लेकिन भारतीय टीम इसमें विफल रहे। प्रियम उस समय बिश्नोई को लेकर आए जब उनके केवल तीन ओवर ही बचे थे और बांग्लादेशी बल्लेबाज विकेट पर अपनी नजरें जमा चुके थे। बिश्लोई ने टूर्नामेंट में सर्वाधिक 17 विकेट लिए।

कप्तान प्रियम डकवर्थ लुइस नियम से भी पूरी तरह से अवगत नहीं थे। जब आप किसी स्कोर का बचाव कर रहे होते हैं तो आपको डकवर्थ लुइस नियम को भी अपने दिमाग में रखना पड़ता है। मैच में जब एक समय बारिश आ गई थी, उससे पहले बांग्लादेश की टीम डकवर्थ लुइस नियम के तहत भी काफी आगे थी।

यहां पर कप्तान को यह करना चाहिए था कि अगर आपके गेंदबाज विकेट नहीं दिला पा रहे हैं तो आप कम से कम रन ही रोक लीजिए ताकि बाद में जब डकवर्थ लुइस नियम लागू हो तो वहां मामला फंसे और परिणाम आपके पक्ष में आ सके।

लेकिन युवा भारतीय कप्तान शायद डकवर्थ लुइस नियम से अनभिज्ञ थे तभी जब बारिश के बाद बांग्लादेश को संशोधित लक्ष्य दिया गया तो उन्हें डकवर्थ लुइस नियम के तहत आसान लक्ष्य दिया गया। अगर भारतीय टीम पहले ही रन रोकने में कामयाब रहती तो बांग्लादेश के लिए डकवर्थ लुइस नियम में मामला फंस सकता था।

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