ट्रॉफी बनानी थी भारत-साउथ अफ्रीका टेस्ट सीरीज की और उसे बनाने के लिए मदद मांगी जेल से - ऐसा क्यों ?  

Updated: Sun, Dec 24 2023 09:22 IST
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India vs South Africa: भारत और साउथ अफ्रीका के बीच 1992 में शुरू हुई पहली टेस्ट सीरीज और इसे खेले थे फ्रीडम ट्रॉफी के  लिए। 2015 में तय हुआ कि इसे महात्मा गांधी-नेल्सन मंडेला सीरीज (Mahatma Gandhi, Nelson Mandela Series) का नाम देंगे। ये एक गलतफहमी है कि विजेता को गांधी-मंडेला ट्रॉफी प्रदान की जाती है। विजेता को अभी भी फ्रीडम ट्रॉफी देते हैं- हां, अब ट्रॉफी पर दोनों देशों में शांति के प्रतीक- महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला की पिक्चर बनी है और ये महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला को समर्पित है।

 

जब ये फैसला हुआ तो बीसीसीआई अध्यक्ष जगमोहन डालमिया थे और उन्होंने कहा था- 'आजादी के लिए संघर्ष इन दोनों देशों के बीच साझा सूत्र रहा है। महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला ने अहिंसा और असहयोग को हथियार बनाकर देशों को आजाद कराया और इसी से इसे अपनाने के लिए दुनिया को प्रेरणा मिली।' तो इस तरह से ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के पास भले ही एशेज हो, लेकिन भारत और साउथ अफ्रीका जब भी टेस्ट सीरीज खेलते हैं इन दोनों प्रतिष्ठित ऐतिहासिक शख्सियत की याद ताजा हो जाती है।

जब ये तय हो गया कि इस आपसी सीरीज को गांधी-मंडेला नाम देंगे तो बात आई ऐसी ट्रॉफी बनाने की जो इनके नाम की तरह इतिहास का हिस्सा बने। इसके लिए बीसीसीआई ने एक अनोखा सुझाव रखा- फ्रीडम ट्रॉफी बनाने में उन जेल से सुरक्षा के लिए इस्तेमाल लोहे का प्रयोग करें जहां महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला को कैद किया गया था। अब दोनों बोर्ड अपने-अपने देश में जुट गए जेल से लोहा जुटाने में - बीसीसीआई ने उस सेल की सलाखें मांग लीं जिसमें गांधी जी बंद रहे थे जबकि क्रिकेट साउथ अफ्रीका ने जेल के कांटेदार तार। 

तब तक बीसीसीआई चीफ बन चुके थे शशांक मनोहर और उन्होंने एक चिट्ठी लिखी उस यरवदा सेंट्रल को जहां गांधीजी को स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कैद किया गया था (ख़ास तौर पर 1930-42 के बीच) और अनुरोध किया कि उस सेल से दो सलाखों के टुकड़े का इंतजाम करा दें। इसी तरह, क्रिकेट साउथ अफ्रीका ने साउथ अफ्रीका की रॉबेन द्वीप जेल (जहां मंडेला रहे थे) से कांटेदार तार के टुकड़े  मांग लिए। बीसीसीआई की चिट्ठी में लिखा था- 'हम एक ऐसी अनोखी ट्रॉफी बनाना चाहते हैं जिसमें यरवदा जेल की सलाखों के टुकड़ों को इस्तेमाल किया जाएगा।' 

तब जेल आईजी भूषण कुमार उपाध्याय थे और उन्होंने इस बारे में यरवदा जेल अधिकारियों से रिपोर्ट मांग ली। तब ये बात सामने आई कि जिस सेल में महात्मा गांधी को रहे थे, उसे सुरक्षित रखा है और गांधीजी द्वारा जेल में रहने के दौरान इस्तेमाल किए हर सामान को उसमें सुरक्षित रखा है। उन्होंने तब ही ये कह दिया था कि ऐसे में सेल से सलाखें निकालना मुश्किल होगा- 'सेल का इंटरनेशनल स्तर पर महत्व है और दो सलाखें हटाना अच्छा नहीं लगेगा।'  

इस तरह बीसीसीआई और क्रिकेट साउथ अफ्रीका का लक्ष्य गांधी और मंडेला कनेक्शन के साथ ऐतिहासिक लोहे को प्रयोग कर ट्रॉफी को अद्वितीय बनाना था। सबसे पहले भारतीय बोर्ड ने हार मानी- पुणे की यरवदा जेल से दो सलाखों के टुकड़े देने के अनुरोध पर कोई जवाब नहीं मिला। 

अभी ये सब कोशिश चल ही रही थी कि अगली महात्मा गांधी-नेल्सन मंडेला सीरीज अपने आख़िरी पड़ाव पर पहुंच गई और ट्रॉफी का कोई अता-पता नहीं था। ट्रॉफी बनाने की ड्यूटी बीसीसीआई की थी। कोई नहीं जानता था कि ट्रॉफी कैसी दिखेगी? सीरीज की शुरुआत से पहले दोनों कप्तानों के ट्रॉफी के अनावरण की रस्म भी अदा नहीं हुई थी। ब्रॉडकास्टर, स्टार के पास भी उस सीरीज की ट्रॉफी दिखाने के लिए तब तक कुछ नहीं था। तब गांधीजी की किसी अन्य चीज की तलाश शुरू हो गई। 

सीएसए को भरोसा था कि उन्हें जेल से कंटीले तार मिल जाएंगे पर आखिर में वे भी नाकामयाब रहे। ऐसे में बीसीसीआई ने इस प्रतिष्ठित सीरीज को चिह्नित करने के लिए एक सोने की परत चढ़ी विशेष ट्रॉफी बनाने का फैसला ले लिया। उस पर इन दोनों बड़ी हस्तियों की पिक्चर बनी है। 

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