जिस लड़की ने सलवार-कमीज में विंबलडन खेला, उसी ने पाकिस्तान में महिला क्रिकेट की शुरुआत का बिगुल बजाया 

Updated: Mon, Oct 27 2025 08:20 IST
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Tahira Hameed: ऐसा मान रहे हैं कि कोलंबो में बारिश के कारण पाकिस्तान, चार बार की चैंपियन इंग्लैंड के विरुद्ध एक यादगार जीत से चूक गया। सच तो ये है कि पाकिस्तान टीम का वर्ल्ड कप में हिस्सा लेना ही अपने आप में उससे कहीं ज़्यादा यादगार और ऐतिहासिक है। पाकिस्तान में समाज के कड़े दायरे और धार्मिक भावनाओं के बंधन को ध्यान में रखते हुए सोचिए, लड़कियों ने क्रिकेट खेला और शुरुआत में, पीसीबी से किसी भी सपोर्ट के बिना, इंटरनेशनल क्रिकेट खेलने के लिए एक टीम बनाई।

ये कोई छोटी बात नहीं है। पाकिस्तानी महिला क्रिकेटरों की मौजूदा पीढ़ी को शायद ये याद भी नहीं होगा कि इस समय वे वर्ल्ड कप में खेल रही हैं तो इसके पीछे किसकी मेहनत ने शुरुआत की? उन्हें उस प्रेरणा देने वाली शख्सियत का शुक्रिया अदा करना चाहिए। सच ये है आज उस प्रेरणा को कोई याद नहीं करता और ये स्टोरी इतिहास के पन्नों में खो गई है।

8 नवंबर, 2020 को कराची में ताहिरा हमीद का निधन हुआ। वे तब 85 साल की थीं। पाकिस्तान की महान महिला खिलाड़ियों में से एक थीं। 70 के दशक के बीच में उन्होंने ही पाकिस्तान में महिला क्रिकेट के बारे में सोचा और उसे एक ढांचा दे, शुरुआत की। वह खिलाड़ी थीं, लेकिन हैरानी की बात ये कि कभी क्रिकेट नहीं खेला। इसके बावजूद अपना समय और एनर्जी पाकिस्तान में महिला क्रिकेट के लिए खर्च किए। क्रिकेट असल में उनके खून में था। वे एक खेल परिवार से थीं:

पिता एसए हमीद: ओलंपिक में एथलेटिक्स में भारत की तरफ से हिस्सा लिया। पाकिस्तान गए तो वहां पाकिस्तान ओलंपिक एसोसिएशन के पहले सेक्रेटरी-जनरल थे।
भाई फारूक हमीद: पाकिस्तानी टेस्ट क्रिकेटर (1 टेस्ट)। एक समय उन्हें फ्रैंक टायसन से भी तेज गेंदबाज गिनते थे लेकिन सिर्फ 25 साल की उम्र में रिटायर हो गए। पाकिस्तान में रिटायर टेस्ट क्रिकेटरों की पेंशन में सुधार का मुद्दा पहली बार उन्होंने ही उठाया था।
चचेरे भाई खालिद अजीज: 18 साल तक फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेला और 1956-57 में इंग्लैंड के विरुद्ध एक टेस्ट मैच में पाकिस्तान टीम में 12वें खिलाड़ी भी रहे। बाद में, अंपायर बने और 3 टेस्ट और 7 वनडे इंटरनेशनल में अंपायर रहे, जिनमें से एक मैच 1987 वर्ल्ड कप का भी था।

ताहिरा ने खुद विंबलडन में हिस्सा लिया पर साथ ही साथ अलग-अलग एथलेटिक्स इवेंट में भी नाम कमाया। इस तरह खेलों में खुद अपने लिए नाम कमाया।
*1952 पंजाब ओलंपिक में डिस्कस थ्रो, शॉट पुट, जैवलिन थ्रो और 1500 मीटर साइकिलिंग में चार गोल्ड जीते।
*1952 पाकिस्तान ओलंपिक (यही बाद में वहां नेशनल गेम्स बने) में फिर से उन्हीं चार इवेंट में गोल्ड जीते और ये सिलसिला अगले पांच गेम्स तक चलता रहा।

तब भी अपना सर्वश्रेष्ठ तो उन्होंने टेनिस के लिए बचाकर रखा था। विदेश में कई टेनिस चैंपियनशिप में हिस्सा लिया। ऐसा नहीं है कि उन्हें परिवार या सोसायटी की पाबंदियों से दिक्कत नहीं हुई पर उन्होंने मुकाबला किया और अपनी राह बनाई। इस टॉमबॉय लड़की को उनके पिता ने पूरा सपोर्ट किया। वे जब भी पाकिस्तान से बाहर जाते तो ताहिरा के लिए स्पाइक वाले जूते और ट्रैक सूट लाते थे।

* टेनिस में उनके मिक्स्ड डबल्स पार्टनर ख्वाजा इफ्तिखार अहमद थे, जिन्हें वह अंकल कहती थीं। 1955 में कोलकाता में एशियाई चैंपियनशिप और 1956 में इलाहाबाद में सेंट्रल चैंपियनशिप में ये नंबर 2 रहे। 
* उनकी डबल्स पार्टनर परवीन थीं और इस जोड़ी ने 1958 में लाहौर में एशियाई टेनिस चैंपियनशिप का टाइटल जीता (वहां मिक्स्ड डबल्स में नंबर 2 रहीं)।

1959 में नया इतिहास बना और ताहिरा हमीद और परवीन ने विंबलडन में सिंगल्स इवेंट में हिस्सा लिया। तब अपने खेल के लिए नहीं, सफेद सलवार-कमीज में विंबलडन में इन पाकिस्तानी लड़कियों के खेलने की खबर की बड़ी धूम रही। अपने इस ड्रैस के लिए वे ब्रिटिश अखबारों के पहले पेज पर भी आ गईं। कई लोगों ने विंबलडन के फैशन ट्रेंड को तोड़ने के लिए उनकी आलोचना की, लेकिन उन्हें उस पोशाक में खेलने पर गर्व था।

1960 में ताहिरा की शादी हो गई और जैसा कि होता है, खेलना बंद हो गया। वे शादी के बाद इंग्लैंड चली गईं। आखिरी बार 1960 में लाहौर में नेशनल टेनिस चैंपियनशिप में हिस्सा लिया था, जहां सिंगल्स के साथ-साथ, मुनीर पीरज़ादा के साथ मिक्स्ड डबल्स इवेंट भी जीती थीं।

लंदन में, उन्हें पाकिस्तान हाई कमीशन में नौकरी मिल गई। संयोग से एक हाई स्कूल में टेनिस कोच की पार्ट-टाइम नौकरी भी मिल गई। इससे वे खेलों से फिर से जुड़ गईं। इंग्लैंड में उन्होंने लड़कियों को क्रिकेट खेलते देखा और इसी से उन्हें पाकिस्तान में क्रिकेट खेलने की चाह रखने वाली लड़कियों के लिए कुछ करने का जोश मिला। 

1978 में, अपने क्रिकेट प्रेमी परिवार के सपोर्ट से, ताहिरा हमीद ने पाकिस्तान वूमन क्रिकेट एसोसिएशन बनाई और फ़ौरन ट्रायल्स के लिए एड दे दिया। वे ये देखकर हैरान रह गईं कि ट्रायल्स में हिस्सा लेने लगभग 500 लड़कियां मौजूद थीं। यहां से पाकिस्तान में महिला क्रिकेट में क्रांति की शुरूआत हुई। एजाज बट, जो बाद में पीसीबी चीफ बने, ने उनकी मदद की। ग्राउंड और किट स्पांसर का इंतजाम करा दिया। उन्हीं एजाज बट की भाभी, शिरीन जावेद को एसोसिएशन का प्रेसिडेंट बना दिया। ऐसा नहीं था कि आगे की राह आसान थी लेकिन एक क्रांति शुरू हो गई थी। इसके बाद तो इतिहास बनता गया। 

इस्लामाबाद के जिन्ना स्टेडियम की दीवारों पर उनकी पोर्ट्रेट और आईसीसी द्वारा दिया (2010 में कराची के नेशनल स्टेडियम में) एक मेमोरियल मेडल इस बात के गवाह हैं कि ताहिरा हमीद ने पाकिस्तान में महिला क्रिकेट के लिए क्या किया?

पाकिस्तानी टीम ने पहली बार 1997 में वर्ल्ड कप में हिस्सा लिया था और क्या आप जानते हैं कि 1997 वर्ल्ड कप के सबसे बड़े स्पांसर हीरो मोटोकॉर्प के फाउंडर बृजमोहन लाल मुंजाल ने नई दिल्ली में टूर्नामेंट के उद्घाटन फंक्शन में पड़ोसी देश की टीम का स्वागत करते हुए, क्या कहा था: "पाकिस्तान टीम ने यहां आकर ही वर्ल्ड कप जीत लिया है।"

यकीन मानिए, तब टीम पाकिस्तान से छिप कर बाहर निकली थी क्योंकि संगीन अपराध में शामिल अपराधियों को रोकने वाली एग्जिट कंट्रोल लिस्ट (Exit Control List) उन पर भी लागू थी। ये एक अलग स्टोरी है।

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चरनपाल सिंह सोबती

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