ग्राहम थोर्प (Graham Thorpe) के निधन के बाद, उनके बारे में बहुत कुछ लिखा गया। जहां एक ओर ये जिक्र हुआ कि वे दुनिया के कुछ बेहतरीन तेज गेंदबाजों को बिना किसी डर खेले, वहीं जो चुनौतियां ग्राउंड के बाहर मिलीं उन पर बोल्ड होते रहे। इस समय उन 6 क्रिकेटर में से एक जिनके नाम ठीक 100 टेस्ट हैं (इनमें से 3 एक्टिव और उनका रिकॉर्ड बदल सकता है) पर संयोग से जहां एक और उनकी बल्लेबाजी का जिक्र होगा वहीं उनके डिप्रेशन का भी। जब क्रिकेटर, अपनी पत्नी (या परिवार) के बिना लंबे टूर पर जाते थे तो उसने उनकी पारिवारिक जिंदगी पर क्या असर डाला- इसकी स्टडी के लिए भी उनका जिक्र होगा।
थोर्प की पारिवारिक जिंदगी में परेशानी के पेज पहली बार कब दुनिया के सामने खुले थे? संयोग से ये सिलसिला इंग्लैंड टीम के एक भारत टूर से शुरू हुआ। तब से इंग्लैंड टीम मैनेजमेंट और उन्होंने खुद इस बारे में कभी खुल कर बात नहीं की पर कई सच्चाई ऐसी हैं जो उन्हें इस मुकाम तक ले गईं कि वे जीना ही नहीं चाहते थे- हालांकि पारिवारिक जिंदगी की दूसरी इनिंग में उन्हें पूरा सपोर्ट मिल रहा था। अब समझ में आ रहा है कि थोर्प ने अपनी ऑटोबायोग्राफी 'राइजिंग फ्रॉम द एशेज (Rising from the Ashes)' में ये क्यों लिखा- 'अगर मेरा बस चले तो मैं अपने सभी टेस्ट रन और टेस्ट कैप के बदले में, खुशियां ले लूं।' दूसरी पत्नी अमांडा के साथ खुशी लेने की कोशिश करते रहे पर आखिर में हार गए।
वह 11 दिसंबर 2001 का दिन था जब हर नजर इंग्लैंड के विरुद्ध सीरीज का अहमदाबाद में दूसरा टेस्ट बरसात के कारण ठीक समय पर शुरू न होने पर थी तब अचानक ही इंग्लैंड कैंप ने खबर रिलीज की- ग्राहम थोर्प टूर बीच में छोड़कर, इंग्लैंड वापस लौट रहे हैं कुछ पारिवारिक मसलों की वजह से। ये भी अनुरोध हुआ कि इस बारे में प्रेस कोई और सवाल न पूछे। बहरहाल उनकी शादी-शुदा जिंदगी में मुश्किल की अटकलें शुरू होने में देर नहीं लगी। तब किसी ने भी ये नोट नहीं किया कि थोर्प के लिए इंग्लैंड से दूर जाना बड़ा मुश्किल हो रहा था। इंग्लैंड के टॉप बल्लेबाज में से एक होने के बावजूद वे इंग्लैंड के पिछले 7 विंटर टूर में से सिर्फ दो को ही पूरा कर सके थे और इनमें से भी एक- 1996-97 में जिम्बाब्वे और न्यूजीलैंड तो के बाद जब घर लौटे तो अखबारों में खबर थी कि उनकी शादी टूटने वाली है।