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India vs England Cricket History: कहानी उन पारसियों की, जो क्रिकेट को इंग्लैंड तक ले गए

इस आर्टिकल के जरिए हम उन पारसियों की अनकही कहानी आप तक पहुंचाएंगे, जो क्रिकेट खेलने वाले पहले भारतीय थे। बॉम्बे में क्लब बनाने से लेकर 1880 के दशक में इंग्लैंड का दौरा करने तक, इनके इतिहास के बारे में

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India vs England Cricket History: कहानी उन पारसियों की, जो क्रिकेट को इंग्लैंड तक ले गए
India vs England Cricket History: कहानी उन पारसियों की, जो क्रिकेट को इंग्लैंड तक ले गए (Image Source: Google)
Shubham Yadav
By Shubham Yadav
Jun 10, 2025 • 04:14 PM

आज भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड है और विश्व क्रिकेट में भारत की तूती बोलती है लेकिन एक समय ऐसा भी था जब भारतीय क्रिकेट बाकी देशों के मुकाबले बहुत पीछे था और क्रिकेट की महाशक्ति बनने से बहुत पहले, एक छोटे से समुदाय ने देश की क्रिकेट विरासत की नींव रखी थी। जी हां, हम बात कर रहे हैं उस समय क्रिकेट को खेलने वाले पहले भारतीयों की, जो कि पारसी थे। आइए आपको पारसियों की वो कहानी बताते हैं जो कि भारत बनाम इंग्लैंड क्रिकेट इतिहास का एक दिलचस्प अध्याय है।

Shubham Yadav
By Shubham Yadav
June 10, 2025 • 04:14 PM

भारतीय क्रिकेट का जन्म: पारसियों ने क्रिकेट को आगे बढ़ाने का काम किया

19वीं सदी के मध्य में, बॉम्बे में युवा पारसी लड़कों ने मैदानों पर क्रिकेट खेलना शुरू किया। अक्सर ये लड़के बल्ले के रूप में उस समय छतरियों का उपयोग करते थे। उनके क्रिकेट के प्रति बढ़ते हुए उत्साह ने भारत में क्रिकेट क्लब्स को जन्म दिया और उस समय ओरिएंटल क्रिकेट क्लब (1848) और यंग जोरास्ट्रियन क्लब (1850) जैसे क्लब्स का गठन किया गया।

जब पारसी लोगों का क्रिकेट के प्रति जूनून बढ़ने लगा तो वो सिर्फ़ दोस्ताना मैच खेलने तक ही नहीं रुके, बल्कि उन्होंने बॉम्बे जिमखाना से ब्रिटिश क्रिकेटरों को चुनौती देना शुरू कर दिया। जब उन्होंने 1876 में अंग्रेजों के खिलाफ एक मैच जीता, तो उत्साहित भारतीय दर्शकों ने ज़ोरदार जयकारे लगाए लेकिन ब्रिटिश सैनिकों ने उन पर बेल्ट से बेरहमी से हमला कर दिया।

इंग्लैंड का पहला भारतीय दौरा: 1886

अब खुद को साबित करने के लिए पारसी और भी दृढ़ संकल्पित थे और इसी कारण पारसियों ने 1886 में खुद का पैसा लगाते हुए इंग्लैंड का क्रिकेट दौरा करने की योजना बनाई। उन्होंने सरे के रॉबर्ट हेंडरसन को कोच के रूप में नियुक्त किया और डॉ धुनजीशॉ 'डीएच' पटेल ने उनका नेतृत्व किया। इस दौरान पारसी खेले गए 28 मैचों में सिर्फ नॉरमनहर्स्ट के विरुद्ध ही एक मैच जीत पाए लेकिन उन्होंने 8 मैच ड्रॉ भी किए। वहीं, 19 मैचों में पारसी टीम को हार का सामना करना पड़ा। इस दौरे पर शापुरजी भेदवार सुर्खियां बटोरने में सफल रहे। उन्होंने एश्टन-अंडर-लिन के विरुद्ध हैट्रिक ली और उस युग में भी अंडरआर्म बॉलिंग के साथ ये एक बड़ी उपलब्धि थी।

दूसरा इंग्लैंड दौरा: 1888 - एमई पावरी का उदय

दो साल बाद, 1888 में, पारसी अधिक महत्वाकांक्षा के साथ लौटे। इस बार, उनके खर्चों को नव स्थापित पारसी जिमखाना द्वारा वहन किया गया। इस दौरे के निर्विवाद स्टार डॉ. मेहल्लाशा 'एमई' पावरी थे, जो एक तेज गेंदबाज थे, जिन्हें अक्सर भारत के पहले महान क्रिकेटर के रूप में याद किया जाता है।

विकेट: 170

गेंदबाजी औसत: 12

मैच: 8 जीते, 11 हारे, 12 ड्रा

काउंटी क्रिकेट का रिकॉर्ड

1895 में, एमई पावरी ने होव में ससेक्स के खिलाफ मिडिलसेक्स के लिए खेलकर एक बार फिर इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया और प्रतिष्ठित काउंटी चैंपियनशिप में खेलने वाले दूसरे भारतीय (रंजीतसिंहजी के बाद) बन गए।

पारसियों की विरासत और महत्व

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पारसियों के साहस, दूरदर्शिता और कौशल ने भारत की क्रिकेट यात्रा की आधारशिला रखी। उनके दौरे भारत बनाम इंग्लैंड के पहले महत्वपूर्ण क्रिकेट मुकाबले थे, यहां तक कि 1932 में दोनों देशों के अपना पहला आधिकारिक टेस्ट मैच खेलने से पहले तक पारसियों का योगदान सराहनीय था। उनके प्रयासों ने न केवल भारतीय क्रिकेट को दुनिया के सामने पेश किया, बल्कि औपनिवेशिक युग के दौरान प्रतिरोध, गौरव और प्रगति का प्रतीक भी बने।

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