ओवल में डब्ल्यूटीसी फाइनल में जो 22 खिलाड़ी खेले- उनसे भी ज्यादा इस टेस्ट में न खेले, एक खिलाड़ी की चर्चा हुई। ये और कोई नहीं, आर अश्विन (R Ashwin) थे। ये मानने वालों की कमी नहीं कि यहां, प्लेइंग इलेवन में अश्विन को शामिल न करना, एक ऐसा फैसला था जिसकी चर्चा भारतीय क्रिकेट में हमेशा होगी और राहुल द्रविड़ एवं रोहित शर्मा इसके लिए निशाने पर हैं। मजे की बात ये है कि अश्विन को इससे पहले भी, भारत से बाहर टेस्ट प्लेइंग इलेवन में शामिल न करने की मिसाल मौजूद हैं- पर इस बार टीम मैनेजमेंट जबरदस्त आलोचना के निशाने पर है।
इसी पर भारतीय क्रिकेट का, लगभग मिलता-जुलता एक किस्सा याद आता है पर तब सेलेक्शन कमेटी के चेयरमैन विजय मर्चेंट की होशियारी ने उसे यादगार बना दिया। दिन 4 नवंबर,1969 और शुरू होने वाला था भारत-ऑस्ट्रेलिया टेस्ट मुंबई के ब्रेबोर्न स्टेडियम में। टीम इंडिया के कप्तान मंसूर अली खान पटौदी ने टॉस किया। उससे पहले, टीम का जो नाम बताया था उसमें बंगाल के तेज गेंदबाज सुब्रत गुहा भी थे। इसका मतलब ये हुआ कि टीम में तीन तेज गेंदबाज थे (अन्य दो : आबिद अली और रुसी सुरती) तथा पटौदी युग में ये बड़ी अजीब बात थी।
उस समय तक गुहा सिर्फ एक टेस्ट खेले थे- 1967 में हेडिंग्ले में जिसमें कोई विकेट नहीं मिला था हालांकि 48 ओवर फेंके। वहां से लौट कर
गुहा अच्छी फॉर्म में थे और सीज़न में 17.27 औसत से 45 विकेट लिए। इस नाते वे अगले सीजन में, टेस्ट टीम में आने के दावेदार थे पर स्पिन पर भरोसा करने वाले वेंकटराघवन के नाम की वकालत कर रहे थे। संयोग से, वे भी शानदार फार्म में थे।