वार्नोन फिलेंडर.. और उनके जाने के बाद उपजा शून्य
29 जनवरी। साउथ अफ्रीका ने जोहान्सबर्ग के द वंडर्स स्टेडियम में इंग्लैंड के खिलाफ 24 से 27 जनवरी तक चार मैचों की टेस्ट सीरीज का आखिरी मैच खेला और यह मैच दक्षिण अफ्रीका तेज गेंदबाज वार्नोन फिलेंडर का आखिरी अंतर्राष्ट्रीय...
29 जनवरी। साउथ अफ्रीका ने जोहान्सबर्ग के द वंडर्स स्टेडियम में इंग्लैंड के खिलाफ 24 से 27 जनवरी तक चार मैचों की टेस्ट सीरीज का आखिरी मैच खेला और यह मैच दक्षिण अफ्रीका तेज गेंदबाज वार्नोन फिलेंडर का आखिरी अंतर्राष्ट्रीय मैच भी रहा। फिलेंडर ने सीरीज से पहले ही कहा दिया था कि इसके बाद वह अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह देंगे।
साल 2007 में वनडे और टी-20 पदार्पण करने वाले फिलेंडर ने साल 2011 में अपना पहला टेस्ट मैच खेला और समय के साथ वह दक्षिण अफ्रीका की टेस्ट टीम के नियमित गेंदबाज बने, जबकि सीमित ओवरों में वह ज्यादा नहीं खेले। अपने देश के लिए उन्होंने सिर्फ 30 वनडे और सात टी-20 मैच खेले। टेस्ट में उनका मैचों का आकंड़ा 64 का है।
कम समय, लेकिन छाप इतनी बड़ी कि जिसे भर पाना अब दक्षिण अफ्रीका के लिए लगभग नामुमकिन-सा है। वो भी उस दौर में जब यह देश अपनी क्रिकेट के स्तर को लेकर नीचे ही जा रहा है, ऐसे में फिलेंडर जैसे गेंदबाज का जाना टीम में बड़ा शून्य पैदा कर गया है।
टीम की बल्लेबाजी संघर्ष कर रही है। हाशिम अमला, अब्राहम डिविलियर्स के विकल्पों से अछूत इस टीम की तेज गेंदबाजी ही इसे कुछ हद तक प्रतिस्पर्धी बनाती थी, क्योंकि इसमें कागिसो रबादा और फिलेंडर जैसे नाम थे। अब फिलेंडर गए हैं तो यह शून्य ही रह गया है।
फिलेंडर की कमी नए प्रबंधन को भी खलेगी। मार्क बाउचर नए मुख्य कोच बने हैं और हैंसी क्रोनिया की मौत के बाद दक्षिण अफ्रीका को ऊपर लाने वाले कप्तान ग्रीम स्मिथ क्रिकेट निदेशक। जैक्स कैलिस जैसा नाम भी सपोर्ट स्टाफ में है। इन सभी से अपने देश की क्रिकेट को पुर्नर्जीवित करने की उम्मीद है और चुनौती भी। फिलेंडर के जाने के बाद से यह चुनौती और बढ़ गई है।
फिलेंडर वो गेंदबाज नहीं थे जो आमतौर पर दक्षिण अफ्रीका में देखे जाते हैं, तेजी और बाउंस के बादशाह। फिलेंडर की गति ज्यादा नहीं थी, लेकिन वह स्विंग का इस्तेमाल अच्छे से करते थे। पूरा विश्व उन्हें एक चतुर तेज गेंदबाज के रूप में जानता है। फिलेंडर ने सबसे ज्यादा अपने दिमाग का ही इस्तेमाल किया है।
समय के साथ उनकी तेजी और कम होती गई और विकेट लेने की क्षमता भी। अपने टेस्ट करियर की आखिरी 18 पारियों में फिलेंडर एक बार भी पांच या उससे ज्यादा विकेट नहीं ले पाए। सेंचुरियन में इंग्लैंड के खिलाफ इसी सीरीज के मैच में फिलेंडर ने पहली पारी में चार विकेट लिए थे, लेकिन दूसरी पारी में खाली हाथ लौटे थे।
आखिरी टेस्ट भी उनका यादगार नहीं रहा। पहली पारी दो विकेट लेने के बाद दूसरी पारी में वह सिर्फ 1.3 ओवरों ही फेंकने के बाद चोटिल होने के कारण मैदान छोड़ गए।
34 साल के फिलेंडर जानते थे कि उनका शरीर अब साथ नहीं दे रहा है और इसलिए वह अलविदा कह गए और अपने पीछे सवाल भी छोड़ गए कि अब कौन आएगा, क्योंकि कम तेजी और बाउंस के बाद भी फिलेंडर प्रभावी रहे और लगातार बल्लेबाजों के लिए परेशानी पैदा करते रहे। इसे खासियत ही कहा जाएगा और अब क्या इस खासियत जैसा कोई और दक्षिण अफ्रीका में आएगा?
यह सवाल उनसे पूछा भी गया कि क्या उन्हें इस बात की चिंता है कि उनके जैसा कोई दूसरा आएगा?
क्रिकबज ने फिलेंडर के हवाले से लिखा है, "मैं यह नहीं कहूंगा कि यह गायब हो रहा है। हमें सिर्फ इस बात का ध्यान रखना होगा कि हम आगे गेंद करते रहें और हमेशा तेजी की चिंता न करें। हमें इस बात को सुनिश्चित करना होगा कि हम गेंद को स्विंग कर सकें, क्योंकि खेल की यही संपत्ति है जो आपको एक दिन महान गेंदबाज बनाएगी। हमें बस ध्यान रखना है कि यह स्कील्स बनी रहें। सीनियर खिलाड़ियों को यह युवाओं तक पहुंचाना होगा।"
यह कितना आसान होगा और वक्त बताएगा और क्योंकि हर किसी की अपनी खासियत होती है और फिलेंडर की खासियत निश्चित तौर पर तेजी-बाउंस नहीं थी, बल्कि सटीकता, स्विंग और बेहतरीन टप्पा थी और इनके साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेज गेंदबाज के लिए अपने आप को प्रभाव रखना हमेशा चुनौती भरा रहा है।
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