Cricket Tales: भारत में लिस्ट ए क्रिकेट की शुरुआत के 50 साल और उसके साथ प्रोफेसर देवधर का नाम

Updated: Tue, Aug 01 2023 09:31 IST
Professor D.B. Deodhar (Image Source: Google)

Cricket Tales: इन दिनों, भारत में घरेलू क्रिकेट में, लिमिटेड ओवर क्रिकेट की, देवधर ट्रॉफी खेली जा रही है। टीम इंडिया, इंटरनेशनल क्रिकेट खेल रही है तो ऐसे में इस ट्रॉफी पर कितना ध्यान दिया जा रहा है- इस सवाल का जवाब सब जानते हैं। संयोग से बीसीसीआई ने भी, इस साल, इस ट्रॉफी का आयोजन करते हुए एक बड़े रिकॉर्ड को नजरअंदाज कर दिया- इस ट्रॉफी के आयोजन की शुरुआत के 50 साल हो गए। इससे भी बड़ा रिकॉर्ड ये कि इसके साथ ही भारत में वनडे क्रिकेट की शुरुआत के 50 साल हो गए। साउथ जोन-ईस्ट जोन मैच, 1973-74 देवधर ट्रॉफी, को देश का पहला रिकॉर्डेड वनडे मैच गिनते हैं। अब सवाल ये है कि वनडे क्रिकेट की नेशनल चैंपियनशिप को जो 'देवधर' नाम दिया गया- ये कहां से आया?

ये नाम है प्रोफ़ेसर डीवी देवधर (Professor D.B. Deodhar) का जिन्हें ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ़ इंडियन क्रिकेट भी कहते हैं। उनके समय में वनडे क्रिकेट का तो सोचा भी नहीं था- इसलिए वास्तव में उन का वनडे क्रिकेट से कोई नाता नहीं रहा। उनका नाम तो भारत के टेस्ट क्रिकेटरों की लिस्ट में भी नहीं है- तब भी बोर्ड ने, न सिर्फ एक नेशनल चैंपियनशिप, वनडे क्रिकेट की ट्रॉफी को उन का नाम दिया। तो आखिरकार क्या योगदान है उन का?

जब भारत ने 1932 में अपना पहला टेस्ट खेला तो वे देश में मौजूद सबसे बेहतर बल्लेबाजों में से एक थे पर उन्हें 'बूढ़ा' मान कर नहीं चुना- तब वे लगभग 40 साल के थे। लगभग 1910 से क्रिकेट से जुड़े थे और उन कुछ खिलाड़ियों में से एक जो भारतीय क्रिकेट की पहचान थे। 1930 के सालों में महाराष्ट्र टीम उन्हीं की बदौलत चमकी और 1939-40 और 1940-41 में रणजी ट्रॉफी जीते। 1993 में 101+ की उम्र में उनका निधन हुआ- ठीक गिनें तो 101 साल 222 दिन की उम्र में।

सच ये है कि जो भारतीय क्रिकेटर कभी ऑफिशियल टेस्ट नहीं खेले- उस लिस्ट में पहला नाम उनका है। 1911 से 1946 तक का फर्स्ट क्लास क्रिकेट करियर जिसमें 81 मैच में 4522 रन 9 शतक के साथ 39.92 औसत से। उस दौर में जो टेस्ट खेले, उनमें से कई से बेहतर रिकॉर्ड है ये।

ये भारतीय क्रिकेट के सबसे बड़े रहस्य में से एक है कि वे टेस्ट क्यों नहीं खेल पाए? लगभग 40 साल की उम्र तो एक बहाना रही,1932 के इंग्लैंड टूर की टीम में उन्हें न लेने के

लिए- हालांकि चार साल बाद सेलेक्टर्स ने टीम में सीके नायडू और सी रामास्वामी को लेते हुए उन की उम्र को नजरअंदाज कर दिया। उस समय की रिपोर्ट बताती हैं कि देवधर भारतीय क्रिकेट पर हावी किसी लॉबी में नहीं थे- न राजा-महाराजाओं की और न अंग्रेजों की और उसकी कीमत चुकाई।

विजय हजारे ने अपनी किताब `क्रिकेट रिप्लेड' में लिखा- उनके पास मजबूत कलाइयां थीं जिससे सही टाइमिंग के साथ उनके स्ट्रोक, सीधे फील्डर को मात देने वाले होते थे। जिस महाराष्ट्र टीम ने 1939-40 रणजी सीज़न से पहले, इस ट्रॉफी में एक भी मैच नहीं जीता था, उसे वे टाइटल तक ले गए। कमल भंडारकर, खांडू रंगनेकर और विजय हजारे के साथ महाराष्ट्र क्रिकेट का बेहतर दौर शुरू किया था।

नवंबर 1940 में पूना क्लब ग्राउंड में बंबई के विरुद्ध अपने 49वें जन्मदिन से दो महीने पहले 246 रन बनाए- महाराष्ट्र का स्कोर 675 रन रहा। कमाल के दिन थे वे क्रिकेट के लिए। ये बंबई-महाराष्ट्र फाइनल 3 दिन का था लेकिन दोनों टीम को अपनी पहली पारी पूरी करने का मौका देने के लिए 5 दिन तक चला। देवधर ने उस सीज़न में 500+ रन बनाए और चार साल बाद भी, नवानगर के विरुद्ध दोनों पारी में 100 बनाए और रणजी ट्रॉफी में ये रिकॉर्ड सिर्फ दूसरी बार बना। सबसे ख़ास रिकॉर्ड ये कि 1926-27 में आर्थर गिलिगन की एमसीसी टीम के विरुद्ध 'टेस्ट' में शतक बनाया और ये रिकॉर्ड बनाने वाले पहले भारतीय थे- 148 रन और इसी से तीसरे दिन मैच ड्रा होने पर एमसीसी हार के कगार पर थी। इसी मैच ने भारत को टेस्ट दर्जा दिलाने में ख़ास भूमिका निभाई थी। बाद में, 1937-38 में पुणे में लॉर्ड टेनिसन की टीम के विरुद्ध भी महाराष्ट्र के लिए शतक बनाया था। उन सालों में ऐसी टीमों में कई बड़े खिलाड़ी टूर पर आते थे।

बाद में क्रिकेट रिपोर्टर बन गए। 1973-74 में उनके सम्मान में नई वनडे ट्रॉफी को बोर्ड ने देवधर ट्रॉफी का नाम दिया। भारत सरकार ने पद्म भूषण का सम्मान दिया और पुणे में उनके नाम पर 'क्रिकेटर डीबी देवधर मार्ग' है- पूना यंग क्रिकेटर्स हिंदू जिमखाना ग्राउंड के पास की एक सड़क। 35 साल का क्रिकेट करियर जो 1911-12 में शुरू हुआ यानि कि पहले वर्ल्ड वॉर से पहले। 1946 में 54 साल की उम्र में महाराष्ट्र- शेष भारत मैच, उनका आखिरी फर्स्ट क्लास मैच था जो दूसरे वर्ल्ड वॉर के बाद खेला गया। वे और इंग्लिश सीमर विलियम हेनरी एशडाउन ही ऐसे दो खिलाड़ी हैं जो पहले वर्ल्ड वॉर से पहले खेले और दूसरे वर्ल्ड वॉर के बाद भी।

उनके नाम के साथ प्रोफेसर क्यों लिखते हैं? पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज से संस्कृत में ग्रेजुएशन किया। उसके बाद वहीं, एस.पी. कॉलेज में संस्कृत डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर बन गए और जब क्रिकेट न खेल रहे हों तो पढ़ाते थे।

 

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उनके कभी टेस्ट क्रिकेट न खेलने का किस्सा भारत में उस समय के क्रिकेट माहौल की दास्तान है पर एक अलग स्टोरी।

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