जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम: भारतीय क्रिकेट के इतिहास का वह पेज जो यादों से हटा और अब उसकी निशानी भी खत्म हो रही है  

Updated: Mon, Nov 17 2025 09:35 IST
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Jawaharlal Nehru Stadium Cricket History: एक नई खबर के अनुसार, स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री ने 2036 ओलंपिक की मेजबानी के भारत के दावे को और मजबूती देने के लिए, भारत में खेलों के बुनियादी ढांचे को मॉडर्न बनाने की मुहिम शुरू की है। इसी में, नई दिल्ली के मशहूर और ऐतिहासिक जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम को भी तोड़, वहां एक नया स्पोर्ट्स सिटी बनाने का फैसला किया है। अभी ये तय नहीं कि नया निर्माण कब शुरु करेंगे पर स्कीम बन गई है। 

ये वही जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम है जिसे 1982 के एशियाई खेलों के लिए बनाया था और क़ुतुब मीनार की तरह से दिल्ली की पहचान था। 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स के वक्त फिर से इस पर कई सौ करोड़ रुपये खर्च कर इसे नया रंग-रूप दिया। हमेशा इस 60,000 दर्शकों की क्षमता वाले स्टेडियम को, भारत के सबसे प्रतिष्ठित मल्टी-स्पोर्ट्स वेन्यू के तौर पर पहचान मिली हालांकि इसे ख़ास तौर पर एथलेटिक्स और फुटबॉल इवेंट्स के लिए बनाया था। स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) का हेड क्वार्टर भी यहीं है। धीरे-धीरे पैसा जुटाने के लिए, यहां म्यूजिक कंसर्ट, मेले और सरकारी फंक्शन भी होने लगे। 

इस सब के बीच किसी को भी ये याद नहीं रहा कि कभी यहां क्रिकेट भी खेले थे और इस स्टेडियम की भारतीय क्रिकेट के इतिहास में एक ख़ास जगह है। जब ये स्टेडियम बना तो कभी नहीं सोचा था कि एक दिन यहां क्रिकेट भी खेलेंगे और वह भी इंटरनेशनल मैच। इसीलिए जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम के धूल में मिलने से भारतीय क्रिकेट भी एक और ऐतिहासिक स्टेडियम खो रहा है। संयोग से यहां खेले हर बड़े मैच का कोई न कोई बड़ा ऐतिहासिक संबंध है। 

यहां क्रिकेट खेलने की सबसे बड़ी वजह थी फ्लड लाइट्स, जो तब देश के अन्य बड़े क्रिकेट स्टेडियम में नहीं थीं और वहां डे-नाइट क्रिकेट नहीं खेल सकते थे। जब यहां फ्लड-लाइट्स में क्रिकेट खेले तो पूरे भरे इस स्टेडियम का एक अलग ही नजारा था। 1980 और 1990 के दशक में क्रिकेट तेजी से बदल रहा था। ऑस्ट्रेलिया से बाहर भी डे-नाइट क्रिकेट खेलने लगे और भारत इस स्टेडियम की बदौलत ही इस रेस में शामिल हुआ। ये मालूम था कि यहां की सेटिंग क्रिकेट के लिए एकदम सही नहीं  जैसे कि ग्राउंड आयताकार, उसके चारों ओर एक सिंथेटिक एथलेटिक ट्रैक (इसे बचाने के लिए कवर डाले तो फील्डर के लिए दौड़ना मुश्किल), लाइट्स क्रिकेट के लिए एकदम सही नहीं, स्टैंड और पिच के बीच बड़ी दूरी थी, टर्फ विकेट तैयार करने के लिए दिन की कमी। 

तब भी यहां दो वनडे खेले: 

1. भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया 28 सितंबर 1984 को जिसमें ऑस्ट्रेलिया ने 48 रन से जीत दर्ज की। यह भारत में खेला पहला फ्लड लाइट इंटरनेशनल क्रिकेट मैच था। 

2. भारत बनाम दक्षिण अफ्रीका 14 नवंबर 1991 को जिसमें दक्षिण अफ्रीका ने 8 विकेट से जीत दर्ज की। दक्षिण अफ्रीका ने इस भारत टूर से इंटरनेशनल क्रिकेट में वापसी की  और पहली बार भारत के विरुद्ध खेले। 

इस तरह भारत में डे-नाइट क्रिकेट का सफर इसी स्टेडियम से शुरू हुआ और 1984 के उस मैच की कामयाबी के बाद ही और दूसरे कई स्टेडियम में भी फ्लड लाइट लगाने का काम शुरू हो गया। यहां क्रिकेट की और भी यादें हैं। 

पुराने समय के क्रिकेट प्रेमी आज भी कीर्ति आजाद की एक बेनिफिट मैच में खेली यादगार और धमाकेदार पारी को भूले नहीं हैं। ये मैच, भारत में खेले सबसे पहले फ्लड-लाइट्स के मैचों में से एक था। 21 सितंबर 1983 को यानि कि भारत की वर्ल्ड कप जीत के कुछ ही दिन बाद इस मैच को प्राइम मिनिस्टर रिलीफ फंड के लिए पैसा जुटाने के लिए इंडिया इलेवन और पाकिस्तान इलेवन के बीच पूरे मुकाबले के साथ खेले थे। मैच से पहले भारत के राष्ट्रपति जैल सिंह को दोनों टीम से मिलाया था। 

कीर्ति आजाद मैच के हीरो रहे और 71* रन बनाकर इंडिया इलेवन को एक विकेट से रोमांचक जीत दिलाई। ये मैच, कुछ महीने बाद भारत के यहां खेले पहले डे-नाइट वनडे इंटरनेशनल के लिए, एक तरह से ड्रेस रिहर्सल था। जीत के लिए 198 रन का लक्ष्य था पर एक समय मेजबान टीम का स्कोर 101-7 था और हार सामने नजर आ रही थी। यहां से दिल्ली के मदन लाल और कीर्ति ने 57 मिनट में 86 रन की पार्टनरशिप से मैच का पासा ही पलट दिया। अपनी किताब  'रन्स एंड रुइन्स (Runs 'n Ruins)' में सुनील गावस्कर ने भी इस मैच का जिक्र किया है और उस रात को 'कीर्ति की चमक की रात (Kirti's Bright Night)' लिखा। गावस्कर ने ये भी लिखा था कि जब मैच के बाद टीम होटल लौटी तो शैंपेन से जश्न हुआ और सब इतने खुश और जोश में थे कि कुछ खिलाड़ी सब थकान और मेहनत भूलकर घंटों होटल के डिस्को में डांस करते रहे। 

इस हाई ऑक्टेन मुकाबले से पहले, 6 सितंबर, 1983 को सुनील गावस्कर की बॉम्बे और कपिल देव की रेस्ट ऑफ इंडिया के बीच एक ट्रायल मैच भी यहां खेले थे। उस मैच में अशोक मांकड़ ने बॉम्बे के 200 के स्कोर में 108 गेंद पर 84 रन की तेज पारी खेली और पाकिस्तान टीम के टूर के दूसरे हिस्से के लिए टीम इंडिया के मैनेजर की मिली ड्यूटी का जश्न मनाया। 

जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, नई दिल्ली में खेले गए कुछ और ख़ास क्रिकेट मैच: 
16 फरवरी, 1984: बिशन सिंह बेदी बेनिफिट मैच, इंडिया इलेवन- रेस्ट ऑफ द वर्ल्ड इलेवन 

21 जनवरी, 1987: विलियम घोष बेनिफिट मैच, इंडिया इलेवन-पाकिस्तान इलेवन 

30 सितंबर, 1987: रिलायंस वर्ल्ड कप वार्म-अप, भारत-पाकिस्तान

30 दिसंबर, 2002: दूरदर्शन इलेवन- नोमेड्स क्रिकेट क्लब। कहा जाता है कि लगान के मुद्दे पर ब्रिटिश शासकों के साथ भारत में 1893 में एक गांव में एक क्रिकेट मैच खेला गया था (यही लगान फिल्म में दिखाया) और इसी मैच से प्रभावित, कुछ क्रिकेट प्रेमियों ने इंग्लैंड में नोमेड्स क्रिकेट क्लब बनाया। उसी क्लब के 100 साल पूरे हुए तो वे अपनी शताब्दी मनाने भारत टूर पर आए और जो दो मैच खेले उनमें से एक ये था। 

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चरनपाल सिंह सोबती
 

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