भारत-इंग्लैंड टेस्ट सीरीज में पटौदी ट्रॉफी से जुड़ी कड़वी कहानी,जब भारत के महान कप्तान और क्रिकेटर पटौदी अपमानित हुए
India vs England Pataudi Trophy History: अब ऑफिशियल तौर पर यह तय हो गया है कि इंग्लैंड और भारत, पटौदी ट्रॉफी के बजाय एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी के लिए टेस्ट खेलेंगे। इस नए नामकरण या यूं कहें कि बदलाव के बारे में इन दिनों बहुत कुछ लिखा गया है। भारत में, मशहूर क्रिकेटरों से लेकर क्रिकेट प्रेमियों तक, सभी ने ट्रॉफी का नाम बदलने को सही नहीं माना।
पटौदी ट्रॉफी वास्तव में, भारत के कप्तान रहे, मंसूर अली खान (टाइगर) पटौदी और उनके पिता इफ्तिखार अली खान पटौदी को एमसीसी (MCC) की तरफ से, इन देशों के बीच क्रिकेट में योगदान के लिए ट्रिब्यूट थी। पटौदी सीनियर तो उन कुछ खिलाड़ियों में से एक हैं जो दो अलग-अलग टीम के लिए टेस्ट खेले और पटौदी संयोग से इंग्लैंड और भारत दोनों के लिए खेले।
पटौदी ट्रॉफी की शुरुआत एमसीसी ने 2007 में, 1932 की इंग्लैंड-भारत पहली टेस्ट सीरीज की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर की थी। इस ट्रॉफी को लंदन की मशहूर सिल्वरस्मिथ जोसलीन बर्टन ने हॉलबोर्न में अपने स्टूडियो में डिजाइन और तैयार किया था। ट्रॉफी को तब इतना खूबसूरत गिनते थे कि जोसलीन ने इसे नवंबर-दिसंबर 2012 में लंदन के बेंटले एंड स्किनर में आयोजित अपनी एक प्रदर्शनी में भी प्रदर्शित किया था। उस साल मंसूर अली खान पटौदी को इंग्लैंड बुलाया गया कि वे आएं और खुद विजेता कप्तान को ट्रॉफी दें। संयोग से भारत के कप्तान राहुल द्रविड़ इस ट्रॉफी को हासिल करने वाले पहले कप्तान बने थे।
कड़वी सच्चाई ये है कि बीसीसीआई ने कभी भी ऑफिशियल तौर पर पटौदी ट्रॉफी को इंग्लैंड-भारत टेस्ट सीरीज के लिए विजेता को मिलने वाली ट्रॉफी की जगह नहीं दी। ऐसा लगा कि एमसीसी ने बीसीसीआई की सहमति के बिना इंग्लैंड-भारत टेस्ट सीरीज को पटौदी ट्रॉफी के नाम पर खेलने का फैसला लिया। बीसीसीआई ने कभी भी इस ट्रॉफी की शुरुआत का स्वागत नहीं किया।
ईसीबी को इस से इशारा मिल गया और वे भी समझ गए। जब भारत की टीम 2011 में इंग्लैंड गई तो एक बार फिर पटौदी को, विजेता कप्तान को ट्रॉफी प्रदान करने के लिए वहां आमंत्रित किया गया। पटौदी उन दिनों बीमार थे और उनका इलाज चल रहा था, लेकिन वे इंग्लैंड गए। विजेता कप्तान को ट्रॉफी देने वे ओवल स्टेडियम में थे। यह रिकॉर्ड पर है कि ट्रॉफी देने के प्रोग्राम की टाइगर के साथ रिहर्सल भी की गई और उन्हें सब बता दिया कि क्या-क्या करना है। जब वास्तव में विजेता कप्तान को ट्रॉफी देने का वक्त आया तो पटौदी मंच पर ही थे लेकिन पता नहीं कि पर्दे के पीछे ऐसा क्या हुआ कि एंकर माइक आथर्टन ने पटौदी को, विजेता कप्तान एंड्रयू स्ट्रॉस को पटौदी ट्रॉफी देने बुलाया ही नहीं। स्ट्रॉस को सीरीज विजेता के तौर पर स्पांसर के नाम वाली एनपावर ट्रॉफी दी गई।
हाल ही में एक इंटरव्यू में, उनकी पत्नी और प्रसिद्ध अभिनेत्री शर्मिला टैगोर ने बताया कि जब ऑफिशियल प्रजेंटेशन खत्म हो गए तो पटौदी को स्ट्रॉस को ट्रॉफी देने के लिए कहा गया। उन्होंने ट्रॉफी दी पर इसका न तो टेलीकास्ट हुआ और न ही मीडिया में इसकी कोई ख़ास रिपोर्ट आई। इस तरह भारत के सबसे महान कप्तान और क्रिकेटर में से एक पटौदी उस दिन अपमानित हुए।
हैरानी की बात ये कि बीसीसीआई ने इस मुद्दे पर कोई स्टैंड नहीं लिया। उनकी पत्नी शर्मिला टैगोर ने एक बड़ा सही मुद्दा उठाया और कहा, 'पटौदी ट्रॉफी को कुछ साल पहले एमसीसी ने शुरू किया पर मुझे लग रहा है कि इस फैसले को तब ईसीबी या बीसीसीआई ने मंजूरी नहीं दी थी।' इंग्लैंड से लौटने के बाद पटौदी और ज्यादा बीमार हो गए और उसके कुछ दिन बाद (सितंबर 2011) उनकी मृत्यु हो गई।
जब 2012-13 में इंग्लैंड की टीम 4 टेस्ट की सीरीज खेलने भारत टूर पर आई तब शर्मिला टैगोर ने बीसीसीआई को चिट्ठी लिखी और कहा कि भारत-इंग्लैंड सीरीज को पटौदी ट्रॉफी के लिए खेलें। जवाब में, पहली बार बीसीसीआई ने ऑफिशियल तौर पर बताया कि ये सीरीज तो पहले से ही ही एंथनी डी मेलो ट्रॉफी के लिए खेली जा रही है और इस ट्रॉफी को रिटायर करने की कोई वजह नहीं है। इस तरह बीसीसीआई ने भारत में भारत-इंग्लैंड सीरीज को पटौदी ट्रॉफी का नाम देने से इनकार कर दिया। यहीं से यह मान लिया गया कि इन दोनों टीम के बीच टेस्ट सीरीज इंग्लैंड में है तो उसे पटौदी ट्रॉफी के लिए खेलेंगे और भारत में है तो एंथनी डी मेलो ट्रॉफी के लिए खेलेंगे।
मजेदार और हैरानी की बात ये कि तब तक तो भारत में क्रिकेट को करीब से जानने वालों और यहां तक कि भारतीय खिलाड़ियों को भी भारत में खेली जाने वाली सीरीज के लिए एंथनी डी मेलो ट्रॉफी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। पटौदी की कप्तानी में खेले, भारत के पूर्व कप्तान बिशन सिंह बेदी ने इस मुद्दे को सही तरह से न सुलझाने के लिए बीसीसीआई की आलोचना की। बेदी ने तो ट्वीट भी किया, '(मैं) इंग्लैंड के विरुद्ध 6 सीरीज खेला हूं और इस दौरान एक बार भी डी मेलो ट्रॉफी का जिक्र नहीं हुआ।'
आपको बता दें कि बीसीसीआई ने अपने पहले सेक्रेटरी के नाम पर, भारतीय क्रिकेट में उनके योगदान को याद करते हुए, 1951 में इस एंथनी डी मेलो ट्रॉफी की शुरुआत की थी। वे भारतीय क्रिकेट में आजादी से पहले के सालों के सबसे विवादास्पद व्यक्तियों में से एक थे। कई ऐसे किस्सों के लिए जिम्मेदार थे जिनसे वास्तव में भारतीय क्रिकेट को बड़ी बदनामी मिली।
सच ये है कि बीसीसीआई के भारतीय क्रिकेट में पटौदी के योगदान को सही सम्मान न देने का ये अकेला मामला नहीं है। जब बोर्ड ने शर्मिला टैगोर के भारत में भी सीरीज को पटौदी ट्रॉफी का नाम देने के सुझाव को न माना तो बीसीसीआई की बड़ी आलोचना हुई। इस पर बीसीसीआई ने पटौदी के सम्मान में एक लेक्चर शुरू करने की घोषणा की। घोषणा तो कर दी पर इसे शुरू नहीं किया। इस मुद्दे पर जब फिर से बीसीसीआई की आलोचना हुई तो 2013 में बीसीसीआई ने उसी साल एक सालाना लेक्चर सीरीज का ऐलान कर दिया। पहला मंसूर अली खान पटौदी मेमोरियल लेक्चर सुनील गावस्कर ने दिया। कुछ ही साल में इस मामले में भी बीसीसीआई का जोश ठंडा पड़ गया और ये लेक्चर रुक गए।
रिपोर्ट है कि अब विजेता टीम के कप्तान को पटौदी के नाम पर मैडल देंगे। सच ये है कि 2007 की सीरीज के बाद, ऑफिशियल तौर पर, इंग्लैंड में भी पटौदी ट्रॉफी कभी भी सीरीज जीतने वाले कप्तान को नहीं दी गई। 2014 की सीरीज को ऑफिशियल तौर पर इन्वेस्टेक सीरीज (Investec Series) के नाम से खेले तथा 2018 में इंग्लैंड के कप्तान एलिस्टेयर कुक को स्पेकसेवर ट्रॉफी (Specsavers Trophy) मिली जबकि 7 मई 2022 को जसप्रीत बुमराह और बेन स्टोक्स को ड्रा टेस्ट सीरीज के बाद संयुक्त रूप से एलवी ट्रॉफी (LV Trophy) मिली। इसमें कोई शक नहीं कि 2007 से विजेता कप्तान को पटौदी ट्रॉफी भी मिली लेकिन सीरीज को ऑफिशियल तौर पर सीरीज के स्पांसर के नाम से ही खेले।
क्या एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी के साथ ये किस्सा खत्म हो गया है ?
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चरनपाल सिंह सोबती