चेन्नई टेस्ट पर सबकी नजर, काली और लाल मिट्टी की पिच में क्या अंतर होता है?

Updated: Tue, Sep 17 2024 15:08 IST
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Rohit Sharma: बांग्लादेश के खिलाफ 19 सितंबर से शुरू हो रही टेस्ट सीरीज की तैयारी के लिए टीम इंडिया लगातार ट्रेनिंग कैंप में पसीना बहा रही है। चेन्नई के चेपॉक स्टेडियम में खेले जाने वाले पहले टेस्ट मैच को लेकर दर्शकों में उत्साह है। इस बीच पिच को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं, जिससे गेंदबाजी लाइन-अप के कॉम्बिनेशन को लेकर टीमों की परेशानी बढ़ गई।

अब तक सामने आई तस्वीरों और जानकारी के मुताबिक चेन्नई में होने वाला भारत-बांग्लादेश पहला टेस्ट मैच लाल मिट्टी की पिच पर खेला जाएगा। ऐसी पिच पर उछाल एक समान रहता है और शुरू में तेज गेंदबाजों को मदद मिल सकती है। हालांकि, धीरे-धीरे पिच का मिजाज स्पिन के अनुकूल भी होता जाता है।

क्रिकेट में ज्यादातर लाल और काली मिट्टी की पिच तैयार की जाती है, लेकिन इन दोनों में आखिर अंतर क्या है? किसी भी मैच के परिणाम में पिच का खास रोल होता है। इसमें पिच की मिट्टी का क्या रोल होता है, उसको विस्तार से जानते हैं।

बल्लेबाजों और गेंदबाजों पर पिच का प्रभाव काफी हद तक इसकी संरचना से निर्धारित होता है। आम तौर पर, पिच मिट्टी, स्लिट और रेत के मिश्रण से बनी होती है। इनको पिच क्यूरेटर द्वारा मैच की आवश्यकताओं और उसके प्रारूप के आधार पर एडजस्ट किया जा सकता है।

लाल मिट्टी की पिच अन्य पिच की तुलना में कम पानी सोखती है और इसी कारण जल्दी सूखने भी लगती है। यही कारण है कि मैच के तीन से चार सत्र के बाद पिच में बड़ी-बड़ी दरार पैदा हो जाती हैं। इस पिच पर मैच की शुरुआत में तेज गेंदबाजों को काफी उछाल मिलता है। एक समान उछाल के कारण बल्लेबाजों को भी सेट होने के बाद खेलने में आसानी होती है। मगर जैसे-जैसे मिट्टी में दरार आने लगती है वैसे-वैसे स्पिन गेंदबाजों का पलड़ा भारी होता जाता है और खेल बल्लेबाजों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

हालांकि जिस काली मिट्टी की पिच में क्ले की मात्रा अधिक होती है, वह पानी को बेहतर तरीके से सोखती है। जिससे पिच अधिक समय तक बिना दरार के बनी रह सकती है। हालांकि इससे असमान उछाल पैदा होता है और बल्लेबाजों को टिकने के लिए समय लेना पड़ता है। खासकर जब ऐसी पिचें टूट जाती हैं तब बल्लेबाजों को काफी दिक्कतें आती हैं।

लाल मिट्टी की पिच अन्य पिच की तुलना में कम पानी सोखती है और इसी कारण जल्दी सूखने भी लगती है। यही कारण है कि मैच के तीन से चार सत्र के बाद पिच में बड़ी-बड़ी दरार पैदा हो जाती हैं। इस पिच पर मैच की शुरुआत में तेज गेंदबाजों को काफी उछाल मिलता है। एक समान उछाल के कारण बल्लेबाजों को भी सेट होने के बाद खेलने में आसानी होती है। मगर जैसे-जैसे मिट्टी में दरार आने लगती है वैसे-वैसे स्पिन गेंदबाजों का पलड़ा भारी होता जाता है और खेल बल्लेबाजों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

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