आज इंग्लैंड टीम ऑस्ट्रेलिया में एक टेस्ट नहीं जीत पा रही- रे इलिंगवर्थ सीरीज जीते थे

Updated: Fri, Dec 31 2021 09:43 IST
Ashes 1970-71 (Image Source: Google)

संयोग से इंग्लैंड के भूतपूर्व कप्तान रे इलिंगवर्थ का देहांत उन दिनों में हुआ जब जो रुट की इंग्लिश टीम ऑस्ट्रेलिया में एशेज में इस सीरीज के लगातार तीसरे टेस्ट में हार की तरफ बढ़ रही थी। अब पता चला कि ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट जीतना कितना मुश्किल होता है पर रे इलिंगवर्थ ने तो 1970-71 में ऑस्ट्रेलिया में इंग्लैंड को 2-0 से एशेज जीत दिलाई। ऑस्ट्रेलिया के पास तब टॉप टीम थी।

वैसे तो इलिंगवर्थ को उनके निधन के बाद 1958 और 1973 के बीच 61 टेस्ट के करियर (23.24 औसत से 1836 रन और 31.20 पर 122 विकेट) तथा 31 टेस्ट में 12 जीत के लिए याद किया गया पर सच ये है कि ऑस्ट्रेलिया में मुश्किलों के बीच एशेज जीतने का मुकाबला उनकी और कोई उपलब्धि नहीं करती। इसी सीरीज की एक बात ऐसी थी जिसे वे 50 साल बीतने के बावजूद नहीं भूले और अपने निधन से कुछ दिन पहले भी उसका जिक्र किया था।

मौजूदा इंग्लिश क्रिकेटर सीरीज के लिए ऑस्ट्रेलिया जाने से जिन वजह से कतरा रहे थे उनमें से एक ये भी थी कि हो सकता है क्वारंटीन के कारण कुछ दिन के लिए परिवार से दूर रहना पड़े। इसके मुकाबले इलिंगवर्थ की टीम का ऑस्ट्रेलिया टूर 6 महीने से भी ज्यादा का था और क्रिकेटर अपने परिवार से दूर रहे थे। एक ऐसी सीरीज में जिसमें अजीब किस्म की मुश्किलें सामने थीं, उसमें अकेलेपन में खेलना और जीतना आसान नहीं था। मुश्किलें भी ऐसी जो किसी भी टीम का दम तोड़ दें। देखिए :

  • घरेलू अंपायरों का पक्षपात ऐसा कि 6 टेस्ट में इंग्लिश गेंदबाज़ों को एक भी विकेट एलबीडब्ल्यू से नहीं मिला। फिर भी इंग्लैंड ने उन्हें 6 बार 300 से कम पर आउट किया
  • अंपायरिंग की हालत ये थी कि इंग्लैंड टीम को लग रहा था कि वे 13 लोगों की टीम से खेल रहे हैं। इनमें से ख़ास तौर पर अंपायर लू रोवन का जॉन स्नो को चेतावनी देने वाला किस्सा विवादस्पद मामले में अलग से चर्चा में खूब आता है।

इसी तरह पहले टेस्ट के आखिरी दिन इंग्लैंड को जीत के लिए सिर्फ 180 रन की जरूरत थी। टेस्ट के दौरान ब्रिस्बेन में लगभग हर रात बारिश होती रही। हर रात, ग्राउंड स्टाफ ग्राउंड पर कवर डाल देता था। आखिरी दिन- ग्राउंड स्टाफ ने हटाए कवर का सारा पानी गेंदबाजों के रन-अप पर गिरा दिया। इन्हें सुखाने में दो घंटे का समय गंवा दिया।

  • क्रिकेटर 6 महीने से ज्यादा घर से दूर रहे- फिर भी एशेज जीते।
  • इंग्लिश टीम का टूर मैनेजर ऐसा जो अपनी टीम से ज्यादा ऑस्ट्रेलिया की मदद कर रहा था।
  • टीम के सीनियर बल्लेबाज़ कोलिन काउड्रे (जिन्हें सही मायने में इस सीरीज के लिए कप्तान बनना था) - मैनेजर के साथ सांठ-गांठ से कप्तान के हर फैसले का विरोध कर रहे थे। खुद 3 टेस्ट में सिर्फ 82 रन बनाए।
  • टूर में 7 टेस्ट( क्रिकेट 6 में खेली), 8 स्टेट मैच, 11 'अप कंट्री' या औपचारिक मैच और क्रिकेट का पहला वन डे इंटरनेशनल (इस वन डे के लिए इंग्लैंड के खिलाड़ियों को £25 की फीस मिलनी थी जो संभवतः आज तक नहीं मिली)।

इनमें से जिन दो बातों ने इलिंगवर्थ को सबसे ज्यादा परेशान किया वह थीं लंबे समय का अकेलापन और टूर मैनेजर का व्यवहार। यहां उनके अकेलेपन से जुड़े किस्से का जिक्र करते हैं। उन दिनों ज़ूम या गूगल मीट जैसा कुछ नहीं था। घर पर एक टेलीफोन कॉल भी आसानी से नहीं कर सकते थे- आवाज वापस गूंजती थी और महंगा भी बहुत। संदेश का सबसे आसान तरीका था चिठ्ठी लिखना। कुछ खिलाड़ी तो अपनी पत्नी को दो बच्चों के साथ साढ़े छह महीने के लिए घर छोड़ आए थे।

कप्तान होने के नाते, इंग्लिश बोर्ड ने आखिर में इलिंगवर्थ को रियायत दी कि अपनी पत्नी शर्ली को आखिरी टेस्ट के दौरान वहां बुला लें पर अपने खर्चे पर। पूरा खर्चा इलिंगवर्थ ने किया। कराची के रास्ते एक चार्टर उड़ान पर आने का इंतज़ाम हुआ- जल्दी पहुँचने का यही तरीका था। संयोग देखिए- प्लेन कराची में खराब हो गया। ऑस्ट्रेलिया में रहने के जो तीन- चार हफ्ते मिले थे उनमें से लगभग एक हफ्ता तो वे कराची में फंसी रहीं। प्लेन ठीक किया जाता रहा। इलिंगवर्थ ऐसे में इस जोड़-तोड़ में लगे रहे कि किसी और तरीके से बुला लेते हैं।

डॉन ब्रैडमैन उन दिनों एक एयरलाइन के डायरेक्टर थे। इलिंगवर्थ ने उनसे बात की। ब्रैडमैन ने पूछा- 'वह कहाँ है?' जवाब था- 'वह कराची में फंसी हुई हैं।' इलिंगवर्थ ने जहां जहां और जब भी इस किस्से का जिक्र किया तो साथ में ये भी बताया कि ब्रैडमैन ने उनकी मदद नहीं की। ऑस्ट्रेलिया में ब्रैडमैन के बारे में ये सब पढ़कर किसी को भी हैरानी नहीं हुई- ब्रैडमैन मशहूर थे किसी की भी मदद न करने के लिए।

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शर्ली आखिर में,आखिरी टेस्ट देखने पहुंचीं और टेस्ट का पूरा लुत्फ उठाया। इलिंगवर्थ अकेले थे जिनके परिवार से कोई आया।

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