1962 में जहाज़ से एशेज, 2025 में जेट से थकावट—युग बदला, शिकायतें नहीं
Ashes Series History: अपने विंटर टूर के लिए इस बार इंग्लैंड के क्रिकेटर ऑस्ट्रेलिया में हैं। क्या आपने नोट किया कि इंग्लैंड के क्रिकेटर वहां कैसे पहुंचे? वे हीथ्रो से एक टीम के तौर पर रवाना नहीं हुए।
- टी20 टीम न्यूज़ीलैंड गई और इसमें एशेज के लिए चुने 4 खिलाड़ी (हैरी ब्रुक, जैकब बेथेल, ब्रायडन कार्स और ज़ैक क्रॉली) भी थे।
- इसके 10 दिन बाद, वनडे के लिए चुने बाक़ी खिलाड़ी, जिनमें एशेज टीम के 4 और खिलाड़ी शामिल थे, भी न्यूजीलैंड रवाना हो गए। उनके साथ टेस्ट गेंदबाज़ मार्क वुड, जोश टंग और गस एटकिंसन भी चले गए ताकि बदले मौसम के मिजाज को समझ लें और उसमें प्रेक्टिस करें
- इस तरह से एशेज के लिए चुने जो खिलाड़ी न्यूज़ीलैंड में थे, वे और बाकी के इंग्लैंड से आए खिलाड़ी प्रेक्टिस मैच के लिए पर्थ में इकट्ठा हुए और यहां से टीम बनी।
ऐसी खबरें हैं कि कुछ क्रिकेटर ने इस प्रोग्राम को भागने और थकाने वाला कह, इसकी शिकायत की है और ये भी कह दिया कि एशेज शुरू होने से पहले ही थका दिया। ये टूर 8 जनवरी 2026 को खत्म होगा बिना कोई स्टेट मैच खेले और तब भी इसे बड़ा व्यस्त और थका देने वाला बताया जा रहा है। अभी तो ये जेट युग है जिसमें कुछ ही घंटों में अलग-अलग टाइम जोन को पार करते हुए हजारों मील का सफर तय हो जाता है।
आज के इंग्लैंड के खिलाड़ियों (और इसी तरह से ऑस्ट्रेलिया से इंग्लैंड आने वाले खिलाड़ियों) को बीते सालों के एशेज टूर के सफर के किस्सों के बारे में पढ़ना चाहिए। आज जेट युग है जबकि तब टूर का मतलब था हफ़्तों तक समुद्र में, सड़क के रास्ते या ट्रेन का सफर। वह ऐसी आख़िरी इंग्लिश टीम कौन सी थी जो शिप के सफर से ऑस्ट्रेलिया पहुंची? इसका जवाब ये है कि 1962-63 के एशेज टूर पर गई इंग्लैंड की टीम, शिप से ऑस्ट्रेलिया पहुंचने वाली आखिरी टीम थी। खिलाड़ियों के लिए, नाव या जहाज पर एक साथ बिताए दिन तब आपस में एक-दूसरे को जानने और समझने का मौका कहे जाते थे। किस्मत अच्छी थी कि समुद्री सफर में खिलाड़ी फर्स्ट क्लास में सफर करते थे और सब सुविधा मिलती थी।
1962 की जो टीम की समुद्र के रास्ते ऑस्ट्रेलिया गई, उस आखिरी टीम के सफर के बारे में और बात करते हैं। ये टीम डोवर (इंग्लैंड से समुद्र के रास्ते यूरोप और अन्य दूसरे देशों के लिए शिप लेने के लिए सबसे मशहूर पोर्ट) से सीधे ऑस्ट्रेलिया नहीं गई थी। इंग्लैंड के खिलाड़ियों ने पहले फ्लाइट ली और यमन (Yemen) के अदन (Aden) पहुंचे। वहां से, पर्थ के लिए कैनबरा नाम के बड़े शिप पर सवार हुए। टीम के कप्तान टेड डेक्सटर थे और साथ में सीनियर कॉलिन काउड्रे, रे इलिंगवर्थ, फ्रेड ट्रूमैन और ब्रायन स्टैथम भी थे। पहला टेस्ट मैच 30 नवंबर से शुरू हुआ था और टीम सितंबर के आख़िरी दिनों में लंदन में थी रवाना होने के लिए।
उस शिप पर ज़्यादातर लोग, लोकल व्यापारी थे और वे तो शिप पर भी व्यापार कर रहे थे। खाने-पीने की कोई कमी नहीं थी लेकिन क्रिकेटरों को अपनी फिटनेस का भी तो ध्यान रखना था। सुबह एक्सरसाइज़, फिर बैडमिंटन, वज़न उठाना, जम्पिंग वगैरह का प्रोग्राम चलता था।
संयोग से ब्रिटिश एथलीट गॉर्डन पिरी (1956 मेलबर्न ओलंपिक में 5000 मीटर में सिल्वर मैडल विजेता) शिप पर थे। क्रिकेटरों ने उनसे फिटनेस पर मदद मांगी और वे राजी हो गए। उनकी सलाह थी कि सबसे अच्छी एक्सरसाइज़ शिप पर चारों ओर रनिंग होगा। हर सुबह की शुरुआत इसी से होने लगी पर टीम के हर खिलाड़ी को रनिंग के लिए मजबूर नहीं किया गया। अजीब बात ये हुई कि जल्दी ही दिन वह आ गया कि सब पीछे हट गए थे।
शिप रास्ते में श्रीलंका के कोलंबो में रुका जहां एक क्रिकेट मैच खेलने का प्रोग्राम बन गया। जब वास्तव में मैच खेले तो पता चला कि शिप पर कोई स्पोर्ट्स एक्टिविटी न होने से कोई भी क्रिकेट मैच खेलने के लिए पूरी तरह से फिट नहीं था। कोलंबो में टीम, ब्रिटिश आर्मी के एक कैंप में भी गई डिनर के लिए।
टूर टीम के मैनेजर बर्नार्ड फिट्ज़लान-हॉवर्ड थे, जो नॉरफ़ॉक के 16वें ड्यूक थे यानि कि शाही वंश के थे। इसलिए, क्रिकेटर उनके साथ दोस्त की तरह से पेश नहीं आते थे। जब वे आस-पास होते थे तो क्रिकेटर बड़ा संभल कर बात करते थे।
इस बार बेन स्टोक्स की इंग्लैंड टीम ने पर्थ टेस्ट से पहले सिर्फ एक प्रैक्टिस मैच खेला और वह भी एक इंग्लिश टीम के विरुद्ध जबकि 1962 में इंग्लैंड ने टेस्ट शुरू होने से पहले, 6 हफ्ते में 5 अलग-अलग स्टेट में 9 मैच खेल लिए थे। ऑस्ट्रेलिया में 5 महीनों के दौरान, मेहमान टीम ने 5 टेस्ट मैच के अलावा 22 मैच और खेले जिनके लिए और कई नए शहरों में गए। हर खिलाड़ी को 1250 पौंड की टूर फीस मिली। जब टूर ख़त्म कर टीम वापस इंग्लैंड लौटी, तब तक मार्च का महीना खत्म हो रहा था और नया काउंटी सीजन कुछ ही दिन बाद शुरू होने वाला था।
ऑस्ट्रेलिया टूर पर गई, उस दौर की लगभग सभी इंग्लैंड टीम की स्टोरी एक जैसी ही है। 1920-21 के टूर पर तो खिलाड़ी लगभग 7 महीने से भी ज़्यादा बाहर रहे थे और शिप पर ही ज्यादा सफर किया।
जब बॉडीलाइन सीरीज़ के विवाद ख़त्म कर 1936-37 एशेज़ के लिए, इंग्लैंड की जो टीम ऑस्ट्रेलिया गई, वह 11 सितंबर 1936 को रवाना हुई थी और पूरे 227 दिन बाद अगले साल के 26 अप्रैल को वापस लौटी। वे साउथम्प्टन से ओरियन (Orion) नाम के शिप से जिब्राल्टर (Gibraltar), टूलॉन (Toulon), पोर्ट सैड (Port Said) और स्वेज़ (Suez) होते हुए कोलंबो पहुंचे और एक टूर मैच खेलने के लिए रुके। टीम 12 अक्टूबर 1936 को वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के फ़्रेमेंटल पहुंची।
एशेज़ खेलने के बाद टीम 18 दिन के लिए न्यूज़ीलैंड टूर पर गई और 4 अप्रैल 1937 को ऑकलैंड से होनोलूलू (Honolulu) होते हुए अमेरिका के लिए रवाना हुई। एक मजेदार बात ये रही कि टीम का शिप का सफर लॉस एंजिल्स तक था। वहां क्रिकेटर हॉलीवुड भी गए घूमने। वहां से ट्रेन से, लगभग पूरे यूनाइटेड स्टेटस ऑफ अमेरिका को पार करते हुए न्यूयॉर्क पहुंचे। यहां से एक नए शिप पर नया सफर शुरू हुआ और क्वीन मैरी नाम के इस शिप पर टीम प्लायमाउथ (Plymouth) पहुंची। वहां से एक ट्रेन उन्हें लंदन के पैडिंगटन (Paddington) स्टेशन ले आई और टूर खत्म हुआ।
क्या आज के क्रिकेटर ऐसे टूर प्रोग्राम के लिए राजी होते?
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चरनपाल सिंह सोबती