जो IPL 2012 में उस दिन ईडन गार्डन्स में हुआ उसके सामने वानखेड़े में हार्दिक पांड्या की हूटिंग तो कुछ भी नहीं 

Updated: Thu, Apr 18 2024 17:27 IST
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वह 5 मई 2012 का दिन था। सब जगह लिखा गया ये लॉयल्टी का इम्तिहान है- आप दादा यानि कि सौरव गांगुली (Sourav Ganguly) के साथ हैं या केकेआर के? ये क्या बात हुई- ये दोनों तो 'कोलकाता' ही हैं। कुछ कह रहे थे- आप दोनों का समर्थन कर सकते हैं तो किसी एक नाम क्यों लें? उस दिन, उस आईपीएल मैच ने, खचाखच भरे ईडन गार्डन्स को दो हिस्सों में बांट दिया था और आईपीएल में इस जैसी स्टोरी और कोई नहीं। हार्दिक पांड्या की इस सीजन में हो रही हूटिंग भी इसके मुकाबले में कुछ नहीं। 2012 की उस स्टोरी पर चलते हैं। 

 

कोलकाता के अपने सौरव गांगुली जिन्हें वहां 'प्रिंस ऑफ़ कोलकाता' कहते थे- उनके लिए दीवानगी के सामने कुछ भी नहीं था और इसका सबूत कई बार मिला। जब 2000 के सालों के बीच कोच ग्रेग चैपल के साथ विवाद के बाद उन्हें टीम इंडिया के कप्तान से हटा दिया था तो ये दीवाने उन्हें सपोर्ट करने सड़कों पर उतर आए थे। हालत ये थी कि वनडे के दौरान ईडन गार्डन्स खचाखच भरा था और कोलकाता वाले मेहमान दक्षिण अफ़्रीकी खिलाड़ियों को सपोर्ट कर रहे थे क्योंकि गांगुली टीम इंडिया में नहीं थे। 

आईपीएल के पहले 3 सीज़न के बाद, जब केकेआर ने सौरव को रिलीज कर दिया तो ये एक ऐसा फैसला था जो बंगाल की सबसे बड़ी खबर बन गया।'नो दादा, नो मैच' नहीं, वे तो 'नो दादा, नो केकेआर' की मुहिम चला रहे थे। पुणे वॉरियर्स ने सौरव को लाइफ लाइन दी और कप्तान बना दिया- तब कुछ शांति हुई। ये गांगुली के क्रिकेट करियर का बड़ा नाजुक मुकाम था- सब चाहते थे वह कामयाब हों लेकिन यकीन नहीं था कि ऐसा हो पायेगा।आख़िरकार, 38 साल उम्र हो चली थी और पिछले 5 महीने से बैट तक नहीं उठाया था। वह आईपीएल खेलना चाहते थे- ठीक है पैसा तो एक वजह था ही लेकिन उन्हें खेलने में मजा आ रहा था। वे ये भी साबित करना चाहते थे कि ऑक्शन में किसी भी बड़ी टीम ने उन्हें न चुनकर गलती की है। क्या आधुनिक क्रिकेट में इन भावनाओं के लिए कोई जगह है?

5 मई 2012 को, मैच था कोलकाता के अपने सौरव गांगुली की पुणे टीम का, अपने ही शहर की टीम के विरुद्ध ईडन गार्डन्स में। अब बंगाली क्रिकेट प्रेमी बंट गए- दादा को सपोर्ट करें या कोलकाता नाइट राइडर्स को? सब जानते थे कि ईडन गार्डन्स में कुछ भी हो सकता है- 1996 वर्ल्ड कप सेमीफाइनल के दौरान, ग्राउंड में बोतलें और अन्य सामान की बमबारी का किस्सा ज्यादा पुराना नहीं था। केकेआर के कप्तान गौतम गंभीर ने अपील की- मैच पुणे टीम के विरुद्ध है, न कि सौरव गांगुली के विरुद्ध- तो इतना गुस्सा क्यों? 

नई टीम और सौरव गांगुली के सामने चुनौती थी- खुद को साबित करने की। सीजन के पहले 4 मैच में सौरव ने निराश नहीं किया था और इसलिए ईडन गार्डन्स में सवाल ये था कि केकेआर ने उन्हें रिलीज क्यों किया? स्टेडियम खचाखच भरा था और मजे की बात ये कि दोनों टीम को भरपूर सपोर्ट मिल रहा था- साफ़ था कि भीड़ यह तय नहीं कर पा रही थी कि वे लॉयल्टी को कैसे बांटें? 

केकेआर के कप्तान गौतम गंभीर ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी को चुना। पहले 11 ओवर में 106 रन- तब भी पुणे ने कोलकाता को सिर्फ 150 रन पर रोक दिया। तब तक की सबसे बेहतर याद कोई स्ट्रोक नहीं, स्टीवन स्मिथ का सुपरमैन जैसा कैच था- यूसुफ पठान के वाइड लॉन्ग-ऑन पर बड़े शॉट को सभी ने 6 मान लिया था पर बॉउंड्री पर स्मिथ ने अपनी बायीं ओर डाइव लगाई, गेंद को हवा में पकड़ा और वापस ग्राउंड में फेंक दिया।

पुणे के लिए लक्ष्य कोई बड़ा नहीं था और हर किसी को उस क्षण का इंतजार था जब गांगुली बैटिंग के लिए आएंगे। गांगुली ने खुद को रोका था पर जरूरत आ पड़ी- पुणे के विकेट लगातार गिरते रहे और 9वें ओवर में स्कोर 55-5 हो गया। एंजेलो मैथ्यूज क्रीज पर थे तब और गांगुली बैटिंग के लिए आए- स्टेडियम शोर और तालियों से गूंज रहा था। टॉस के समय भी गांगुली ने कह दिया था कि उनके लिए इस माहौल में खेलना आसान नहीं रहेगा। सुनील नरेन ने शुरू से चकमा दिया।अगले ओवर में, जब जैक्स कैलिस को लॉन्ग-ऑफ पर चौका जड़ दिया तो स्टेडियम के बाहर तक तालियां सुनाई दे रही थीं। कहते हैं आईपीएल में किसी स्ट्रोक पर तालियों के शोर का वह रिकॉर्ड आज तक कायम है। 

एक समय पुणे को जीत के लिए 24 गेंद पर 35 रन की जरूरत थी। तब गंभीर ने नरेन को अटैक में वापस बुला लिया। रन बन रहे थे- पुणे को जीत का एहसास होने लगा और मैच गंभीर की पकड़ से निकल रहा था। यहीं झटका लगा- गांगुली ने मिड विकेट पर क्लीयर करने की कोशिश की पर इकबाल अब्दुल्ला ने कैच के साथ मैच पलट दिया। स्टेडियम में सन्नाटा छा गया। गांगुली की 36 रन की नपी-तुली पारी ने पुणे को जीतने की स्थिति में ला दिया था पर टीम आखिरी दो ओवर में लड़खड़ा गई (143-8) और कोलकाता को 7 रन से जीत दिला दी। स्टेडियम में फिर से शोर था- अपने हीरो के पवेलियन जाने के बाद, अब अपने शहर की टीम के सपोर्ट का।  

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सौरव गांगुली उस दिन ईडन गार्डन्स से हीरो बनकर लौटे- भले ही उनकी टीम हार गई। लगातार हार मिल रही थी जबकि केकेआर, टेबल टॉपर दिल्ली डेयरडेविल्स से सिर्फ 1 पॉइंट पीछे थे। बाद में गंभीर ने भी माना कि उन्होंने सौरव के लिए जो सपोर्ट देखा वह अद्भुत था और अपने शहर दिल्ली में वे ऐसे सपोर्ट की उम्मीद तक नहीं कर सकते। तब भी माहौल में गर्मी थी- जब केकेआर के खिलाड़ी विक्ट्री लैप ले रहे थे तो कुछ लोगों ने खिलाड़ियों पर पानी के पाउच फेंके। क्रिकेट प्रेमी जो चाहते थे वह उन्हें मिल गया- कोलकाता की जीत और गांगुली की अच्छी इनिंग। दर्शकों ने ये मान लिया था कि उनके 'दादा' अपना सर्वश्रेष्ठ क्रिकेट खेल चुके हैं और यह आखिरी बार था जब वे ईडन गार्डन्स में खेले। एक बड़ा जुड़ाव खत्म हो गया। केकेआर फिर से पूरी तरह- कोलकाता की टीम हो गई। 
 

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