19 जनवरी। शनिवार की सुबह अखबार पढ़ रहा था। करीब साढ़े आठ बजे के आसपास का समय रहा होगा। अचानक मोबाइल घनघनाया। हमारी पत्रकारिता के गुरुजन महान संपादक पंडित विद्या भास्कर जी के खेल प्रेमी सुपुत्र गुरू भाई आनंद वर्धन ने हड़बड़ाते हुए दुखद समाचार दिया कि क्रिकेटर बापू नाडकर्णी नहीं रहे। आनंद को क्रोधजनित आश्चर्य इस बात का था कि सुबह रेडियो की हिन्दी बुलेटिन में तो इसकी संक्षिप्त सी खबर थी मगर अंग्रेजी में तो वह भी नहीं थी। उसके यहां जो अखबार आता है, उसमे भी बापू के निधन का समाचार नहीं था।
इसके बाद मुझे लगा कि भारतीय क्रिकेट के इस महान सपूत के बारे में कुछ लिखना चाहिए। वैसे सच कहूं तो इधर क्रिकेट से विरक्ति सी हो चुकी है। कारण, इसका पूर्ण बाजारी करण होना लेकिन कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं, जिनसे खुद को अलग नहीं रख पाता और ना ही अपनी कलम को रोक पाता हूं।
लिखने से पहले मैंने गुगल पर दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान, अमर उजाला आदि प्रमुख हिन्दी अखबारों के डिजिटल संस्करण देखे। सभी मे एक सी खबर थी कि एक टेस्ट पारी में लगातार 21 मैडन ओवर का विश्व रिकार्ड कायम करने वाले आलराउंडर रमेश चंद्र गंगाराम बापू नाडकर्णी का वृद्धावस्था जनित रोगों के चलते 86 वर्ष की उम्र में मुम्बई मे निधन हो गया।