Advertisement
Advertisement
Advertisement

एक कोच के तौर पर दक्षिण अफ़्रीका दौरा मेरे लिए सबसे मुश्किल भरे दिन थे : द्रविड़

Former Head Coach: चीखते-चिल्लाते राहुल द्रविड़। गुस्से में लाल राहुल द्रविड़। अतिउत्साहित राहुल द्रविड़। इन तीनों परिस्थितियों के बारे में सोचना भी मुश्किल काम है। किसी भी क्रिकेट फ़ैन ने इस तरह के द्रविड़ को ज़्यादा से ज़्यादा दो या

Advertisement
Paris,: Former Head Coach of the Indian Cricket team Rahul Dravid writes a message for the Indian Ho
Paris,: Former Head Coach of the Indian Cricket team Rahul Dravid writes a message for the Indian Ho (Image Source: IANS)
IANS News
By IANS News
Aug 10, 2024 • 01:56 PM

Former Head Coach: चीखते-चिल्लाते राहुल द्रविड़। गुस्से में लाल राहुल द्रविड़। अतिउत्साहित राहुल द्रविड़। इन तीनों परिस्थितियों के बारे में सोचना भी मुश्किल काम है। किसी भी क्रिकेट फ़ैन ने इस तरह के द्रविड़ को ज़्यादा से ज़्यादा दो या तीन बार देखा होगा। उसमें से एक हालिया बीते टी20 विश्व कप के दौरान होगा, जहां वह अपनी आखों को बंद करते हुए और हाथ में टी 20 विश्व कप की ट्रॉफ़ी लिए पूरी ताक़त के साथ चिल्ला रहे थे।

IANS News
By IANS News
August 10, 2024 • 01:56 PM

द्रविड़ ने हाल ही में अपने उस सेलीब्रेशन के बारे में खुल कर बात की और मज़ाकिया अंदाज़ में अपने बेटे के लिए भी कुछ विशेष कहा।

Trending

द्रविड़ ने स्टारस्पोर्ट से कहा, "हम पिछले कुछ समय से कई बार बड़ी ट्रॉफ़ी के क़रीब आ रहे थे। हम टी 20 विश्व कप के सेमीफ़ाइनल तक पहुंचे, हमने विश्व टेस्ट चैंपियनशिप का फ़ाइनल खेला और वनडे विश्व कप में भी हम फ़ाइनल में थे। लेकिन हमारी टीम ट्रॉफ़ी प्राप्त करने के लिए आख़िरी लाइन को पार करने में सफल नहीं हो पा रही थी।

"हालांकि टी 20 विश्व कप जीतने के बाद मुझे अपनी टीम के लिए और हर उस व्यक्ति के लिए काफ़ी अच्छा महसूस हो रहा था, जिन्होंने पिछले ढाई सालों से काफ़ी मेहनत की है। इसी कारण से मैं उस तरह सेलीब्रेट कर रहा था। कुल मिला कर राहत और ख़ुशी बाहर निकल कर सामने आ रही थी। हालांकि एक बात यह भी है कि मुझे उस तरह से सेलीब्रेट करने के बारे में थोड़ा सतर्क होना पड़ेगा। मेरा बेटा मुझे देख कर सोच रहा होगा कि 'पता नहीं मेरे पिता क्या कर रहे हैं' (हंसते हुए)।"

द्रविड़ ने अपनी कोचिंग का प्रभार नवंबर 2021 में संभाला था। उनका पहला विदेशी दौरा उस देश में था, जहां भारत ने कभी भी कोई टेस्ट सीरीज़ नहीं जीती था। जब द्रविड़ से पूछा गया कि भारतीय टीम के कोच रहते हुए, उनके लिए सबसे मुश्किल समय कौन सा था तो उन्होंने अपने पहले दक्षिण अफ़्रीकी दौरे के बारे में बात की।

उन्होंने कहा, "दक्षिण अफ़्रीका दौरा हमारे लिए काफ़ी मुश्किल दौरा था। हमने उसे दौरे पर सेंचुरियन में पहला टेस्ट जीत लिया था। हम सबको पता था कि दक्षिण अफ़्रीका में हमने कभी भी कोई टेस्ट सीरीज़ नहीं जीती है। हमारे लिए यह बहुत बड़ा मौक़ा था। हालांकि एक बात यह भी है कि हमारी टीम में कई सीनियर खिलाड़ी तब मौजूद नहीं थे। रोहित शर्मा तब चोटिल होने के कारण टीम से बाहर थे। कुछ और सीनियर खिलाड़ी भी टीम में नहीं थे। बाक़ी के दोनों टेस्ट मैच काफ़ी क़रीबी हुए। दोनों टेस्ट मैचों की तीसरी पारी में हमारे पास बड़ा मौक़ा था। हालांकि तब दक्षिण अफ्रीका की टीम ने काफ़ी बेहतर खेल दिखाया था और चौथी पारी में उन्होंने अच्छा चेज़ किया। मैं कहूंगा कि भारतीय टीम का कोच रहते हुए यह मेरे लिए सबसे मुश्किल भरे दिन थे।''

"हालांकि वहां से मुझे काफ़ी कुछ सीखने को मिला। वहां हमने अपने गेम के बारे में बहुत कुछ सीखा और यह भी सीखा कि हमें किन चीज़ों पर काम करने की ज़रूरत है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि कोच के तौर पर आपको हमेशा एक जैसे दिन देखने को नहीं मिलेंगे। उतार-चढ़ाव आता रहेगा। यह समझने की ज़रूरत है कि आपको हमेशा जीत नहीं मिलने वाली है। बाक़ी की टीमें भी खेलने ही आई हैं और आप विश्व स्तरीय टीमों का सामना कर रहे हैं। आपको जीत और हार के बैलेंस को समझना होगा। आपके पास हमेशा जीतने का विकल्प नहीं है लेकिन आपके पास यह विकल्प ज़रूर है कि आप हमेशा अच्छी तरह से तैयारी करें। साथ ही आपके पास यह भी विकल्प है कि आप बिल्कुल सही टीम चुनें लेकिन इन सब चीज़ों के बावजूद भी आपको हार मिल सकती है और आपको उस बैलेंस को समझना होगा।"

द्रविड़ से यह भी पूछा गया कि वह भारतीय टीम में मौजूद सभी सीनियर और सुपरस्टार खिलाड़ियों को एकजुट करने में कैसे सफल रहे ? तो उन्होंने कहा कि वह इस बात का पूरा क्रेडिट नहीं ले सकते और इसका काफ़ी बड़ा श्रेय रोहित शर्मा को भी जाता है।

"हालांकि वहां से मुझे काफ़ी कुछ सीखने को मिला। वहां हमने अपने गेम के बारे में बहुत कुछ सीखा और यह भी सीखा कि हमें किन चीज़ों पर काम करने की ज़रूरत है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि कोच के तौर पर आपको हमेशा एक जैसे दिन देखने को नहीं मिलेंगे। उतार-चढ़ाव आता रहेगा। यह समझने की ज़रूरत है कि आपको हमेशा जीत नहीं मिलने वाली है। बाक़ी की टीमें भी खेलने ही आई हैं और आप विश्व स्तरीय टीमों का सामना कर रहे हैं। आपको जीत और हार के बैलेंस को समझना होगा। आपके पास हमेशा जीतने का विकल्प नहीं है लेकिन आपके पास यह विकल्प ज़रूर है कि आप हमेशा अच्छी तरह से तैयारी करें। साथ ही आपके पास यह भी विकल्प है कि आप बिल्कुल सही टीम चुनें लेकिन इन सब चीज़ों के बावजूद भी आपको हार मिल सकती है और आपको उस बैलेंस को समझना होगा।"

Also Read: पेरिस ओलंपिक 2024

Article Source: IANS

Advertisement

Advertisement