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Cricket Tales - ब्रैडमैन का 452* का वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ने से सिर्फ 10 रन दूर थे निंबालकर पर धोखा हो गया

Cricket Tales - दिसंबर 1948 में पूना क्लब में काठियावाड़ के विरुद्ध महाराष्ट्र के लिए भाऊसाहेब बाबासाहेब निंबालकर ने बनाए थे 443* और तब वर्ल्ड रिकॉर्ड था डॉन ब्रैडमैन के रिकॉर्ड 452* का। 443* की बात करते हुए सबसे बड़ा सवाल

Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti January 13, 2023 • 14:59 PM
Bhausaheb Babasaheb Nimbalkar
Bhausaheb Babasaheb Nimbalkar (Image Source: Google)
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Cricket Tales - पृथ्वी शॉ के असम के विरुद्ध रणजी ट्रॉफी में 379 (भारत के लिए फर्स्ट क्लास क्रिकेट में दूसरा सबसे बड़े स्कोर) ने एकमात्र अगले बड़े स्कोर 443* को एकदम चर्चा दिला दी। दिसंबर 1948 में पूना क्लब में काठियावाड़ के विरुद्ध महाराष्ट्र के लिए भाऊसाहेब बाबासाहेब निंबालकर ने बनाए थे 443* और तब वर्ल्ड रिकॉर्ड था डॉन ब्रैडमैन के रिकॉर्ड 452* का। 443* की बात करते हुए सबसे बड़ा सवाल ये है कि उन्होंने ब्रैडमैन के रिकॉर्ड को तोड़ने की कोशिश क्यों नहीं की?

निंबालकर 10 रन और बना लेते तो ये रिकॉर्ड उनके नाम आ जाता। काठियावाड़ के नाराज कप्तान प्रद्युम्नसिंहजी की वजह से, निंबालकर सिर्फ किसी भी भारतीय के सबसे बड़े स्कोर का रिकॉर्ड बना कर ही रह गए।

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चलिए उस 4 दिन के महाराष्ट्र- काठियावाड़ मैच में चलते हैं। काठियावाड़ पहले दिन 238 रन पर आउट और जवाब में महाराष्ट्र दिन का खेल खत्म होने तक 132-1 पर थे। दाएं हाथ के बल्लेबाज निंबालकर की केवी भंडारकर के साथ पार्टनरशिप 81-1 पर शुरू हुई और दूसरे दिन के खेल खत्म होने के करीब, दूसरे विकेट के लिए पांच घंटे में 455 रन जोड़कर टूटी। भंडारकर 205 पर आउट हुए लेकिन निंबालकर ने दिन के आखिरी ओवर में अपने 300 रन पूरे किए और क्रीज पर थे।

अगले दिन- निंबालकर और देवधर ने तीसरे विकेट के लिए कुल 242 रन जोड़े। देवधर 100 नहीं बना पाए। निंबालकर ने 400 पार किए और खेलते ही जा रहे थे। चाय पर एकदम माहौल बदला। काठियावाड़ के खिलाड़ी लगातार फील्डिंग से बुरी तरह थके हुए थे और महाराष्ट्र पहली पारी में इतनी बड़ी बढ़त ले चुके थे कि और स्कोर बढ़ाने का भी कोई महत्व नहीं रह गया था।तो क्यों खेलते ही जा रहे थे? कई साल बाद निंबालकर ने बताया कि उन्हें तो चाय पर पता चला कि ब्रैडमैन का रिकॉर्ड तोड़ने के लिए सिर्फ 10 की जरूरत है।

इसलिए अब देखना ये था कि क्या निंबालकर नया वर्ल्ड रिकॉर्ड बना पाएंगे? इसी मुकाम पर राजकोट के महामहिम ठाकुर साहब, जो अपने राज घराने वाले रुतबे की बदौलत काठियावाड़ के कप्तान थे, ने अचानक ही महाराष्ट्र टीम को अल्टीमेटम दे दिया- पारी समाप्त घोषित करें अन्यथा उनकी टीम मैच में आगे नहीं खेलेगी।

बड़ा समझाया गया पर वे नहीं माने। महाराष्ट्र के कप्तान राजा गोखले ने कहा भी कि काठियावाड़ सिर्फ दो ओवर और फील्डिंग करे तो उसके बाद वे पारी समाप्त घोषित कर देंगे। इन दो ओवर में निंबालकर को डॉन का रिकॉर्ड तोड़ने का मौका मिल जाता। वे नहीं माने और उनकी टीम अपने बैग पैक कर स्टेशन रवाना हो गई।

मैच रुक गया, निंबालकर 443* पर ही रह गए और उन्हें हमेशा इस बात का दुख रहा कि इतना बड़ा वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने का मौका उनके हाथ से निकल गया। काठियावाड़ टीम की लगातार फील्डिंग की थकान ने तो इस फैसले में मदद की ही- साथ ही साथ ये भी कहा जाता है काठियावाड़ ने गलत वजह से रिकॉर्ड बुक में आने से बचने के लिए ऐसा किया। निंबालकर रिकॉर्ड के लिए बेताब थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भारतीय क्रिकेट के इतिहास में ये भी जिक्र है कि क्रिकेट बोर्ड की किसी बड़ी हस्ती के इशारे पर ठाकुर साहब ने ऐसा किया।

ये सब ऐसी बाते हैं जिन पर निंबालकर का कोई कंट्रोल नहीं था पर कुछ ऐसा भी था जो उनके कंट्रोल में था या उनकी अपनी टीम, उनकी मदद कर सकती थी। उन्हें चाय पर ही इस वर्ल्ड रिकॉर्ड के बारे में क्यों पता चला? उन्होंने खुद कहा कि अगर ज़रा भी संकेत होता तो वे रिकॉर्ड तोड़ने की कोशिश में कुछ तेजी से रन बनाते। ये भी हैरानी की बात है कि उनके अपने कप्तान ने तो उन्हें पिच पर टिक कर खेलने का संदेश भेजा था- इसलिए वे उसी हिसाब से खेल रहे थे।

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निंबालकर ने 8 घंटे 14 मिनट बल्लेबाजी की- 46 चौके और एक छक्का लगाया था। महाराष्ट्र (826-4) की टीम, रणजी ट्रॉफी में सबसे बड़े स्कोर (912) के भी करीब थी जो होलकर ने चार साल पहले बनाया था। वह रिकॉर्ड भी नहीं टूटा। इतना बड़ा स्कोर बनाकर भी उन्हें भारत के लिए कोई टेस्ट खेलने का मौका नहीं मिला। वे बहरहाल इसी से खुश थे कि सर डॉन ब्रैडमैन ने उन्हें न सिर्फ बड़े स्कोर की बधाई दी, ये भी लिखा कि निंबालकर ने उनसे भी बेहतर बल्लेबाजी की।


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