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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पोलैंड यात्रा ने एक अनोखे 'क्रिकेट कनेक्शन' की याद ताजा करा दी, जानिए क्या है कनेक्शन?

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पोलैंड यात्रा को एक ऐतिहासिक और भारत-पोलैंड संबंधों की मजबूत कड़ी के तौर पर देखा जा रहा है। भारत और पोलैंड के बीच 1954 में राजनयिक संबंध (Diplomatic Relations) बने और उसके बाद दोनों...

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पोलैंड यात्रा ने एक अनोखे 'क्रिकेट कनेक्शन' की याद ताजा करा दी, जानिए क
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पोलैंड यात्रा ने एक अनोखे 'क्रिकेट कनेक्शन' की याद ताजा करा दी, जानिए क (Image Source: Twitter)
AFP News
By AFP News
Aug 28, 2024 • 10:00 AM

पोलैंड ने उनके इस योगदान को कभी भुलाया नहीं और आज भी वहां उन्हें प्यार और सम्मान के साथ याद करते हैं। इसीलिए महाराजा के निधन के बाद, एक क्रॉसिंग को उनका नाम दिया, उनके सम्मान में वारसॉ में एक स्मारक बनवाया, उनके नाम पर एक स्कूल है और उन्हें पोलैंड गणराज्य के कमांडर क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ मेरिट से भी सम्मानित किया।

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August 28, 2024 • 10:00 AM

इस सबकी चर्चा यहां क्यों कर रहे हैं? इसकी एक ख़ास वजह है और वह है दिग्विजयसिंहजी रणजीतसिंहजी की क्रिकेट कनेक्शन जिस पर कोई ध्यान नहीं देता। ये दिग्विजयसिंहजी रणजीतसिंहजी और कोई नहीं, इंग्लैंड के लिए टेस्ट खेलने वाले पहले रंगीन क्रिकेटर रणजी यानि कि केएस रणजीतसिंहजी के भतीजे थे और रणजी के बाद वे ही जामनगर के महाराजा बने थे। वे 1933 से 1948 तक नवानगर के महाराजा जाम साहब थे। रणजी ने उनकी पढ़ाई का इंतजाम भारत एवं इंग्लैंड में किया और वे पढ़ाई के साथ-साथ अपने चाचा की तरह क्रिकेट भी खेलते थे। 

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वे रणजी की तरह क्रिकेट को ज्यादा समय नहीं दे पाए पर उनके नाम एक फर्स्ट क्लास मैच का रिकॉर्ड है- इसकी दो पारी में 6 रन बनाए। ये मैच 1933-34 सीजन का है और तब डगलस जार्डिन की एमसीसी टीम अपने भारत और सीलोन (अब श्रीलंका) टूर के दौरान भारत में थी। वे तब एमसीसी के विरुद्ध वेस्टर्न इंडिया इलेवन के कप्तान थे। कई मशहूर स्पोर्ट्स क्लब के सदस्य भी थे। उनका क्रिकेट कनेक्शन यहीं खत्म नहीं होता। 1928 में बीसीसीआई की स्थापना हुई और उसके बाद से इसके प्रेसीडेंट की लिस्ट देखें तो ग्रांट गोवन (1928-1933), सिकंदर हयात खान (1933-1935), हमीदुल्ला खान (1935-1937) के बाद दिग्विजयसिंहजी रणजीतसिंहजी (1937-1938) का ही नाम है।   

सालों तक महाराजा की इस पोलैंड के बच्चों को शरण देने वाली स्टोरी की कहीं चर्चा ही नहीं हुई। जब वे इंग्लैंड में थे तो वहां मालवर्न कॉलेज (Malvern College) के लिए खेलते थे। ये वूरस्टरशायर के टॉप पब्लिक स्कूल में से एक है। संयोग से सालों बाद दिग्विजयसिंहजी रंजीतसिंहजी जडेजा की बायोग्राफी लिखने का प्रोजेक्ट जिन इतिहासकार एंड्रयू मुर्टाग (Andrew Murtagh) ने लिया, वे इसी स्कूल में हाउस मास्टर और क्रिकेट कोच रहे थे। वे महाराजा के बारे में और जानकारी पाने स्कूल चले गए और तब उन्हें  'भारत के ऑस्कर शिंडलर (India’s Oskar Schindler)' के नाम से मशहूर महाराजा के बारे में वह सब पता चला जिसकी अब चर्चा होती है।

उन्होंने लिखा- 'मालवर्न कॉलेज में, लॉन्ग रूम की दीवार पर 1865 से स्कूल की सभी क्रिकेट टीम के नाम एक बोर्ड पर लिखे हैं और वे लिखते हैं कि ये एक ऐसा नाम था जिसे कोई 'नहीं भूल सकता'। वजह- ये इतना लंबा है कि बोर्ड के आधे हिस्से तक जाता है। सर दिग्विजयसिंहजी 1910 से 1915 के बीच यहां पढ़े। जब यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में पढ़ते थे तो उस समय के नियम के हिसाब से 1919 में ब्रिटिश सेना में शामिल हुए। 1920 तक, Egyptian Expeditionary Force के साथ काम किया और 1921 तक उन्हें लेफ्टिनेंट का प्रमोशन मिल चुका था। 1929 में कैप्टन बने और 1931 में आर्मी से रिटायर हुए। 

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एक और ख़ास बात। महाराजा जाम साहब दिग्विजयसिंहजी रणजीतसिंहजी के बेटे वाईएस शत्रुसाल्यसिंहजी (YS Shatrusalyasinhji), जो 1966 में जाम साहिब बने, ने भी फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेला- 1958-59 से 1966-67 तक और 29 मैच में एक शतक (164) सहित 1064 रन बनाए और 36 विकेट लिए।
 

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