भारतीय क्रिकेट इस समय संकट के घेरे में है, एमएस धोनी से सीखे सबक

Updated: Sun, Dec 11 2022 00:47 IST
Image Source: IANS

 भारतीय क्रिकेट इस समय संकट के घेरे में है। लगातार करारी हार और नजदीकी बचाव सुर्खियां बने हुए हैं। भारतीय जमीन पर पाटा विकेटों पर जीत को छोड़ दिया जाए तो पिछले कुछ वर्षों में विदेशी जमीन पर भारत का रिकॉर्ड निराशाजनक है। उलझन में पड़ा बोर्ड, समझ से बाहर कोचिंग सपोर्ट स्टाफ, एक चयन समिति जो नहीं जानती है कि क्या करना है (इसे तब से बाहर कर दिया गया है), एक उम्रदराज लाइन अप, जिसमें 35 वर्ष की उम्र के खिलाड़ी सफेद बॉल क्रिकेट के बदलते स्वरुप से तालमेल बैठाने की कोशिश कर रहे हैं, अपनी उपलब्धता के बावजूद नयी पीढ़ी को पर्याप्त मौके नहीं दिए जा रहे हैं और एक ऐसा पारिस्थितिक तंत्र जो चीजों को ढकने का काम करता है, मौजूदा हालत के लिए जिम्मेदार है।

असंख्य प्रयोग, खिलाड़ियों को हटाना और बदलाव, उन्हें हाशिये पर रखना इस गिरावट के लिए जिम्मेदार है। और गेंदबाज,जैसे कुलदीप यादव और उमरान मलिक, जो कुछ कर दिखाने में सक्षम हैं, उन्हें दरकिनार किया जाता है। हमें पूर्व से जुडी इस नाल को काटना होगा, अभी।

भारतीय क्रिकेट की इस अविश्वसनीय दुनिया में अव्यवस्था और अफरातफरी है। लगातार दो टी20 विश्व कप में यह विफलता दिखाई दी है।

2008 में एमएस धोनी से सीखे सबक, जब उन्होंने बोर्ड से कहा था कि सौरव गांगुली, राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण फील्ड पर धीमे हैं उन्हें निकालना होगा जब सीबी सीरीज के लिए टीम चुनी जा रही थी। यह विश्लेषण उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में एक युवा टीम के साथ पहला टी20 विश्व कप जीतने के बाद निकाला था।

गौतम गंभीर, रोबिन उथप्पा, रोहित शर्मा, इरफान पठान, युसूफ पठान, आरपी सिंह, दिनेश कार्तिक और एक अनजान जोगिन्दर शर्मा ऐसे युवा खिलाड़ी थे जिन्हे इस नए छोटे प्रारूप में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया था। जब तक कामनवेल्थ बैंक त्रिकोणीय सीरीज 2008 में आयी तब तक धोनी ने अपने इस ²ष्टिकोण को भारतीय क्रिकेट में 50 ओवर में लागू करने का फैसला भी कर डाला।

सचिन तेंदुलकर, वीरेंदर सहवाग और युवराज सिंह को छोड़कर एमएसडी ने फिर से युवाओं पर अपना भरोसा जताया क्योंकि वह जानते थे कि वे सफेद गेंद क्रिकेट के लिए जरूरी ऊर्जा को लाते हैं।

टीम की धुरी वही थी जो टी20 विजेता टीम में थी- उथप्पा, कार्तिक, रोहित शर्मा, गौतम गंभीर, सुरेश रैना, इरफान पठान, श्रीसंथ जबकि इशांत शर्मा और मुनाफ पटेल इसमें जोड़े गए और प्रवीण कुमार ने जोगिन्दर शर्मा की जगह ले ली। यह टीम 2011 और 2013 में धोनी की कप्तानी में आईसीसी ट्रॉफी विजेता टीमों का केंद्र बिंदु बन गयी। इस अवधि में भारत सफेद गेंद का गॉडजिला बन गया।

शिखर धवन 37 साल के हैं, रोहित शर्मा 35 से 36 के होने जा रहे हैं, विराट कोहली 34 के हैं, रवि अश्विन 36 के हैं दिनेश कार्तिक द फिनिशर 38 के हो चुके हैं, शार्दुल ठाकुर 31, मोहम्मद शमी 32 और केएल राहुल 32 के हो चुके हैं-ये सभी भारतीय क्रिकेट की काफी सेवा कर चुके हैं लेकिन अब सफेद बॉल ढांचे का हिस्सा नहीं रह सकते हैं। अगले दो वर्ष दो और विश्व कप-20 और 50 ओवर में एक-एक होना है। इन खिलाड़ियों को कोई फैसला करना होगा।

अब सपोर्ट स्टाफ को जांच लेते हैं। राहुल द्रविड़, भारत के महानतम बल्लेबाज, ने प्रतिभा ढूंढने के लिए सराहनीय काम किया है, लेकिन सफेद गेंद क्रिकेट में उन्हें मार्गदर्शक चाहिए।

बल्लेबाजी कोच विक्रम राठौड़ खिलाड़ी के रूप में एक नौसखिये थे और मुझे समझ नहीं आता कि उन्हें क्यों जारी रखा हुआ है। वह टीम की बल्लेबाजी इकाई को आखिर क्या जानकारी उपलब्ध कराते हैं।

भारत के हालिया रिकॉर्ड को देखा जाए तो यूएई में टी20 विश्व कप में जल्दी बाहर हो गए, एशिया कप में बुरी तरह पिट गए और ऑस्ट्रेलिया में टी20 विश्व कप के सेमीफाइनल में इंग्लैंड ने इतनी बुरी तरह धो डाला कि माइकल वान को कहना पड़ गया, भारतीय सफेद बॉल क्रिकेट में ऐसे खेल रहे हैं जो सदियों पुरानी शैली हो चुकी है। ये शब्द चुभते हैं लेकिन ये सही कहानी बयां करते हैं।

इस वर्ष जुलाई तक भारत 2021 विश्व कप से 30 मैचों में 40 खिलाड़ी आजमा चुका है, 27 खिलाड़ी 16 टी20 में, 21 खिलाड़ी छह वनडे में और आठ टेस्ट में। यह अत्यधिक कांटछांट है। यह असुरक्षा की भावना को जन्म देती है तथा युवा खिलाड़ियों को कम मौके देती है जैसे शुभमन गिल और संजू सैमसन।

खेल के सभी प्रारूप में हारने का तरीका और भी ज्यादा तकलीफदेह है और बांग्लादेश से हाल की पराजय और भी ज्यादा तकलीफ देती है।

मैं अपनी बात को साबित करने के लिए वान के शब्दों पर वापस लौटता हूं। इंडियन प्रीमियर लीग से गुजरने वाला हर खिलाड़ी कहता है कि किस तरह आईपीएल से उसके खेल में सुधार आया है लेकिन भारत ने क्या किया है। 2011 में वनडे विश्व कप जीतने के बाद से भारत सफेद बॉल क्रिकेट में सदियों पुरानी शैली में खेल रहा है।

कलाई के स्पिनर का इस्तेमाल नहीं करना चौंकाता है जवकि दुनिया में हर टीम उसका इस्तेमाल कर रही है। एक तूफानी गेंदबाज के होने के बावजूद उसका इस्तेमाल नहीं करना हैरानी में डालता है। बल्लेबाजी क्रम के साथ लगातार छेड़छाड़ करना और ईशान किशन, पृथ्वी शॉ, रजत पाटीदार और अन्य बल्लेबाजों को पर्याप्त मौके न देना इस गिरावट का कारण है।

और सबसे बड़ा सवाल -ऋषभ पंत- समझ नहीं आता कि वे उसके साथ क्या करना चाहते हैं। आखिर में बात राहुल पर आती है। राहुल द्रविड़ भारतीय ढांचे में द्रविड़ वाला काम कर रहे हैं यानी वह राहुल को विकेटकीपिंग करने के लिए कह रहे हैं जबकि टीम में दो विकेटकीपर ईशान किशन और सैमसन मौजूद हैं।

भारत का किंगकांग साइज बोर्ड टीम को पूरी दुनिया में घुमा रहा है। सैमसन न्यूजीलैंड दौरे में मौजूद थे लेकिन उसके बाद जो टीम बांग्लादेश गयी, वह उसमें नहीं थे। इसके ठीक विपरीत किशन और मोहम्मद सिराज हैं, बल्लेबाजों में शुभमन गिल, दीपक हुड्डा और सूर्यकुमार यादव न्यूजीलैंड गए लेकिन बांग्लादेश नहीं। रजत पाटीदार और राहुल त्रिपाठी बांग्लादेश गए लेकिन न्यूजीलैंड नहीं।

सोच प्रक्रिया के बारे में सोचिये। न्यूजीलैंड में दो कलाई के स्पिनर युजवेंद्र चहल और कुलदीप यादव गए लेकिन बांग्लादेश में कोई नहीं।

सफेद बॉल क्रिकेट में एक नयी टीम, नया कप्तान और नया कोचिंग ढांचा प्राथमिकता है। क्या बीसीसीआई में कोई यह सुन रहा है।

 

Also Read: क्रिकेट के अनोखे किस्से

This story has not been edited by Cricketnmore staff and is auto-generated from a syndicated feed

TAGS

संबंधित क्रिकेट समाचार ::

सबसे ज्यादा पढ़ी गई खबरें