एक कप्तान जो अपने नाम की टेस्ट ट्रॉफी में खेला, किस्से कई एक्सीडेंट झेलने वाली क्रिकेट ट्रॉफी के
Frank Worrell Trophy History: पैट कमिंस की कप्तानी में ऑस्ट्रेलिया की वेस्टइंडीज टूर पर सबसे बड़ी कामयाबी ये कि फ्रैंक वारेल ट्रॉफी पर उनका अधिकार बरक़रार रहा। सच तो ये है कि यह ट्रॉफी 1995 से ऑस्ट्रेलिया के पास है। तब मार्क टेलर की टीम ने वेस्टइंडीज के दो दशक के प्रभुत्व को खत्म किया था और उसके बाद से वेस्टइंडीज को कोई मौका दिया ही नहीं है। फ्रैंक वारेल ट्रॉफी इन दोनों टीमों के बीच टेस्ट सीरीज के विजेता को दी जाती है।
इस ट्रॉफी का नाम वेस्टइंडीज के पहले अश्वेत कप्तान फ्रैंक वारेल के नाम पर है। आजकल जिस तरह दो देश के बीच सीरीज की ट्रॉफी को क्रिकेटर का नाम दे रहे हैं, ये ट्रॉफी उस से अलग है। जब ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (इस समय इसका नाम क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया) ने इन दो टीम के बीच सीरीज के लिए ट्रॉफी के बारे में सोचा (1960-61 सीरीज के दौरान) तो ट्रॉफी को पुराने क्रिकेटरों का नहीं, टूर पर आई वेस्टइंडीज टीम के कप्तान का ही नाम दे दिया। ये इस बात का सबूत है कि क्रिकेट जगत में फ्रैंक वारेल को कितना सम्मान दिया जाता था।
ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और खासकर डॉन ब्रैडमैन का उन्हें सम्मानित करने का ये इरादा, एक मिसाल है। ये बड़ा अद्भुत रिकॉर्ड है कि एक कप्तान, अपने नाम पर ट्रॉफी के मुकाबले वाली सीरीज में खेले। और भी मजेदार संयोग ये कि फ्रैंक वॉरेल ने खुद, मेलबर्न में हज़ारों दर्शकों के सामने, दूसरी टीम के कप्तान रिची बेनो को यह ट्रॉफी दी थी। पहली फ्रैंक वारेल ट्रॉफी सीरीज को आज तक खेली सबसे गजब टेस्ट सीरीज में से एक माना जाता है।
ये ट्रॉफी किसने बनाई? पुराने टेस्ट क्रिकेटर एर्नी मैककॉर्मिक को चुना बोर्ड ने इस काम के लिए चूंकि वे एक पेशेवर ज्वैलर थे। उन्हें कहा एक खूबसूरत ट्रॉफी डिजाइन करने के लिए। एक और बड़ा मजेदार फैक्ट ये है कि जब तक सीरीज के लिए ट्रॉफी बनाने का फैसला हुआ, न सिर्फ टेस्ट शुरू हो चुके थे, ब्रिस्बेन में पहला टेस्ट ऐतिहासिक साबित हो चुका था। ये टेस्ट इतिहास का पहला टाई टेस्ट था और गजब का रोमांचक मुकाबले हुआ था। इसीलिए जब एर्नी मैककॉर्मिक ने ट्रॉफी डिज़ाइन करना शुरू किया तो वे इस टेस्ट में हुए रोमांचक मुकाबले से बड़े प्रेरित हुए और उन्होंने उस टेस्ट में इस्तेमाल एक गेंद को भी ट्रॉफी के डिजाइन में शामिल कर लिया। ये ट्रॉफी डिजाइन करना, उनके करियर का एक बड़ा खास पड़ाव रहा।
उनकी और भी चर्चा जरूरी है। जब बोर्ड ने ट्रॉफी बनाने का फैसला लिया तो ट्रॉफी डिजाइन करने के लिए वह पहली पसंद नहीं थे। इधर-उधर धक्के खाने के बाद बोर्ड को ये अहसास हो गया कि सिर्फ वे ही, न सिर्फ इस ट्रॉफी के महत्व और इसके पीछे की भावना को समझ रहे थे, ये भी वायदा किया कि सीरीज खत्म होने से पहले ही ट्रॉफी बना देंगे। इसीलिए जब उन्होंने टाई टेस्ट में इस्तेमाल एक गेंद मांगी, तो बोर्ड ने ये गेंद दे दी। ये कौन सी गेंद थी? इसका कोई ऑफिशियल रिकॉर्ड नहीं मिलता पर उस दौर की मीडिया रिपोर्ट के अनुसार जो सोलोमन ने इयान मेकिफ को जिस गेंद से रन आउट कर, टेस्ट टाई किया था- ये वही गेंद थी।
ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाज थे एर्नी मैककॉर्मिक और दूसरे वर्ल्ड वॉर से पहले 12 टेस्ट खेले। एशेज टेस्ट में अपनी पहली गेंद पर विकेट लेने का रिकॉर्ड उनके नाम है; वॉली हैमंड को एशेज में पहली बार 0 पर आउट किया और इंग्लैंड में अपने पहले मैच (1938) में ओवरस्टेपिंग के लिए 35 बार नो-बॉल दिए गए थे वे।
फ्रैंक वारेल ट्रॉफी के शानदार सफर का एक मजेदार चेप्टर इस ट्रॉफी के साथ हुए अजीब-अजीब किस्से हैं। इसीलिए इसे 'सबसे ज्यादा दुर्घटना वाली ट्रॉफी' भी कहते हैं। यह एक बार खो जाने, बदले जाने, वापस मिलने और अन्य दुर्घटनाओं वाली स्टोरी है।
हाल ही में हुई सीरीज के पहले टेस्ट से पहले की, पैट कमिंस और वेस्टइंडीज के कप्तान क्रेग ब्रेथवेट की ट्रॉफी के साथ पोज की पिक्चर क्या आपने ध्यान से देखी? दरअसल, पैट कमिंस ने ट्रॉफी के ऊपर लगी गेंद पर अपना हाथ रखा है- इस डर से कि कहीं वह गेंद गिर न जाए।
ऑस्ट्रेलिया में 2022-23 सीरीज की शुरुआत से पहले, इस ट्रॉफी को एक फोटोशूट के लिए पर्थ लाए थे बड़ी सुरक्षा से एक ताला लगे बॉक्स में बंद कर। ट्रॉफी तो आ गई पर जो इसे लाया उसने बॉक्स पर लगे ताले की चाबी खो दी। ट्रॉफी डिस्प्ले का टाइम आ गया और कोई ताला खोलने वाला न मिला। ऐसे में WACA ग्राउंड के ग्राउंड स्टाफ ने इसे खोलने के लिए बोल्ट कटर का इस्तेमाल किया। बॉक्स तो उन्होंने तोड़ दिया पर इस चक्कर में ट्रॉफी को भी नुकसान हुआ। सबसे बड़ा ये कि ट्रॉफी पर लगी गेंद बेस से अलग हो गई, भले ही उस बॉक्स में रही।
अब जुट गए किसी ऐसे की तलाश में जो सीरीज खत्म होने तक ट्रॉफी की मरम्मत कर गेंद को सही तरह वापस लगा दे। इसके लिए किसी योग्य ज्वैलर या ट्रॉफी बनाने वाले की जरूरत थी। उसकी तलाश में ट्रॉफी को फिजूल में सैकड़ों मील इधर से उधर घुमाते रहे। समय कम होने के कारण किसी ने यह काम नहीं किया। इस चक्कर में ट्रॉफी और भी खराब हो गई।
आप सोच भी नहीं सकते कि ऐसे में किसने ट्रॉफी की मरम्मत की? एशिया के देशों का मशहूर 'जुगाड़' वाला तरीका काम आया और यकीन कीजिए, क्रिकेट बोर्ड के स्टाफ ने ही, अपनी इज्जत बचाने के लिए ट्रॉफी की मरम्मत कर दी। उन्होंने दिखावे के लिए गेंद लगा तो दी पर ट्रॉफी की हालत इतनी नाजुक थी कि जब इसे विजेता कप्तान स्टीव स्मिथ को दिया तो गेंद और ट्रॉफी एक बार फिर से अलग हो गए। स्मिथ को जब ट्रॉफी मिली तो उन्हें फौरन ट्रॉफी के साथ अजीब तरह से करतब करते देखा गया क्योंकि वे गिर रही गेंद को संभालने की कोशिश कर रहे थे।
स्टोरी अभी खत्म नहीं हुई है। ट्रॉफी की फोटो देखिए और नोट कीजिए कि गेंद तो नई है और चमक रही है। ये भला कैसे उस टाई टेस्ट में इस्तेमाल हुई गेंद हो सकती है? ये सच है। किस्सा ये है कि जब वेस्टइंडीज को 1984-85 की सीरीज जीतने के बाद ये ट्रॉफी मिली तो जश्न के बाद इसे अपने समय के दिग्गज खिलाड़ी और तब विजेता टीम के मैनेजर वेस हॉल (वही जिन्होंने टाई टेस्ट का आख़िरी ओवर फेंका था) ने इसे संभाल लिया और इसे अपने साथ कैरेबियन ले आए। उन्होंने ट्रॉफी को बोर्ड अधिकारियों के हवाले करने की जगह, अपनी मां के घर के गैराज में रख दिया और भूल गए।
इस तरह ऑफिशियल तौर पर ट्रॉफी खो गई। किसी को भी पता नहीं चला कि वह कहां खो गई? आखिर में तलाश रोक, ऑस्ट्रेलिया में 1988-89 की सीरीज के लिए एक नक़ल बनवाने का फैसला हुआ। नई ट्रॉफी तो बना दी पर वही टाई टेस्ट वाली गेंद कहां से लाएं? इसलिए एक नई कूकाबुरा गेंद ट्रॉफी में लगा दी। विव रिचर्ड्स की टीम ने वह सीरीज जीत ली और नकली ट्रॉफी भी वेस्टइंडीज आ गई। तब से अब तक वही नकली ट्रॉफी ही हर सीरीज के खत्म होने पर विजेता कप्तान को दी जा रही है।
तो असली ट्रॉफी का क्या हुआ? वेस हॉल की मां को कई साल बाद, गैराज की सफाई के दौरान वह ट्रॉफी मिल गई। संयोग से तब 1994-95 की सीरीज खेलने वाले थे। मार्क टेलर की टीम ने ट्रॉफी जीती और तब से वे ट्रॉफी के मालिक हैं। असली ट्रॉफी के साथ इतना कुछ हो चुका था कि तय हुआ कि इसे अब सुरक्षित रख देते हैं और नकली ट्रॉफी ही इधर-उधर हो रही है और इसमें भी गेंद अपनी जगह से हिल चुकी है।
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चरनपाल सिंह सोबती