Cricket Tales: पोर्ट ऑफ़ स्पेन का वह अनोखा रन चेज भारतीय क्रिकेट का टर्निंग पॉइंट था

Updated: Sat, Jul 29 2023 09:57 IST
Cricket Tales (Image Source: Google)

क्रिकेट के अनसुने किस्से (Cricket Tales) - बर्मिंघम के एशेज टेस्ट में बेन स्टोक्स की पारी समाप्त घोषित करने के बाद हार के बाद, यूं तो ऐसी ही और भी कुछ मिसाल चर्चा में रहीं पर वेस्टइंडीज में खेला गया एक टेस्ट इस मामले में 'क्लासिक' है। ये था वेस्टइंडीज-भारत, पोर्ट ऑफ स्पेन 1976 टेस्ट और संयोग से भारत की टीम इसी ग्राउंड में अपनी मौजूदा सीरीज का दूसरा टेस्ट खेल रही है। ऐसे में उस अप्रैल 1976 के टेस्ट को याद करना जरूरी हो जाता है। और भी एक संयोग- वास्तव में यही वह टेस्ट था जिसने दिग्गज कप्तान क्लाइव लॉयड को यह सबक दिया कि टेस्ट क्रिकेट में उनकी टीम को सिर्फ पेस बैटरी टॉप पर पहुंचाएगी और इस सबक की बदौलत वेस्टइंडीज टीम ने जो टेस्ट क्रिकेट खेला, उसे देखकर ब्रैडमैन युग के बाद, पहली बार किसी टीम को 'इनविन्सिबल' कहा गया।

आज सब लॉयड को महान कप्तान कहते हैं पर ये टाइटल इसी पॉलिसी की देन है अन्यथा तो वे कप्तान के तौर पर पहले 13 टेस्ट में से सिर्फ 4 जीते थे और 7 में हार मिली थी। जब बिशन सिंह बेदी की टीम सीरीज खेलने गई- वेस्टइंडीज टीम का मनोबल बुरी तरह से गिरा हुआ था। वजह थी- ऑस्ट्रेलिया में पिछली सीरीज में जेफ थॉमसन और डेनिस लिली की तेज जोड़ी के सामने 1-5 से हार। भारत की टीम न्यूजीलैंड में 1-1 की ड्रा सीरीज खेलकर सीधे केरेबियन आई थी। क्या आप विश्वास करेंगे कि तब इंतजाम ऐसा था कि टीम को एयर ट्रेवल के बावजूद 62 घंटे लग गए थे।

पहला टेस्ट ब्रिजटाउन में- लगभग ढाई दिन के खेल में भारत की पारी से हार। टीम इंडिया को बड़ा जोरदार झटका लगा।

दूसरा टेस्ट पोर्ट ऑफ स्पेन में- हर कोई 1971 की जीत को याद कर रहा था और वास्तव में मेहमान टीम ने 'बाउंस बैक' किया पर बरसात ने एक संभावित जीत हासिल नहीं करने दी। एक बार फिर से पोर्ट ऑफ़ स्पेन भारत के लिए भाग्यशाली ग्राउंड साबित हुआ।

तीसरा टेस्ट जॉर्जटाउन में- टेस्ट सीरीज के प्रोग्राम में तो यही था पर टेस्ट से पहले के दिनों में वहां इतनी बारिश हो रही थी कि पिच और आउटफील्ड पूरे तैयार नहीं हो पाए। टेस्ट के दिनों में भी लगातार बारिश की आशंका थी। नतीजा- टेस्ट वहां से हटा लिया और एकमात्र उपलब्ध टेस्ट ग्राउंड पोर्ट ऑफ़ स्पेन को दे दिया। किस्मत अपने आप टीम इंडिया को फिर से अपने 'भाग्यशाली' स्टेडियम में ले आई थी।

विवियन रिचर्ड्स के शानदार 177 ने लॉयड के टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी के फैसले को अफसोस से बचाया- पहले दिन स्कोर 320-5 जिसमें सभी विकेट चंद्रा (6-120) ने लिए और अगली सुबह बेदी(4-73) ने उन्हें 359 रन पर आउट कर दिया। इस हिसाब से, वेस्टइंडीज के स्पिनर- ऑफ स्पिनर अल्बर्ट पैडमोर, लेग स्पिनर इम्तियाज अली और खब्बू रफीक जुमेदीन को भी चमकना चाहिए था पर चमके युवा तेज गेंदबाज माइकल होल्डिंग (6-65)- कोई भी 50 रन तक नहीं पहुंच पाया और भारत 228 रन पर आउट।

131 रन की लीड के साथ, वेस्टइंडीज की दूसरी पारी भी झटके वाली थी पर कालीचरन ने शानदार शतक बनाया। स्कोर जब 271-6 था और कुल लीड 402 रन तो पहली पारी में होल्डिंग की गेंदबाजी को देखते हुए, साथ में खराब हो रही पिच पर, अपने तीन स्पिनरों पर भरोसे के साथ, लॉयड ने पारी को यहीं समाप्त घोषित कर दिया। रिकॉर्ड भी उनका साथ दे रहा था-

* भारत ने टेस्ट क्रिकेट में 44 साल में कभी भी चौथी पारी में, जीत के लिए, 256 से ज्यादा को चेज नहीं किया था।

* 1948 में ब्रैडमैन की टीम के बाद से किसी ने भी टेस्ट जीतने के लिए 400 या उससे ज्यादा का स्कोर नहीं बनाया था।

सुनील गावस्कर ने भी बाद में लिखा- 'मुझे विश्वास था कि हम टेस्ट बचा सकते हैं क्योंकि विकेट अभी भी अच्छा था- जीतने का तो सोच भी नहीं रहे थे।' गावस्कर और गायकवाड़ ने 69 रन की ओपनिंग दी। उस चौथे दिन के आखिर में स्कोर 134-1 था और गावस्कर के साथ मोहिंदर अमरनाथ क्रीज पर थे। जुमेदीन ने गावस्कर को एक गलत फैसले पर आउट किया- तब तक वे 245 मिनट में 13 चौकों के साथ 102 रन बना चुके थे और स्कोर 177-2 था यानि कि लक्ष्य 236 रन दूर। गुंडप्पा विश्वनाथ ने तेजी से रन बनाना जारी रखा जबकि मोहिंदर स्ट्राइक रोटेट करते रहे।

विश्वनाथ ने चाय के बाद अपने 100 पूरे किए- उनका पहला विदेशी शतक। यहां भारत किसी चमत्कार की राह पर नजर आ था। विश्वनाथ 112 पर रन आउट हुए तो स्कोर 336-3 था और अभी भी 67 रन पीछे थे। जब मेंडेटरी ओवर शुरू हुए तब 65 रन की जरूरत थी। अमरनाथ अब ब्रजेश पटेल के साथ भारत को लक्ष्य के 11 के करीब तक ले गए- 440 मिनट में 85 रन बनाए जिन्हें मुश्किल में खेली सबसे बेहतरीन बल्लेबाजी में से एक गिनते हैं। पटेल ने कुछ ही मिनट बाद टेस्ट जीतने वाला 4 लगाया और भारत ने इतिहास बना दिया।

ऐसे में ये अंदाजा लगाना कोई मुश्किल नहीं कि क्लाइव लॉयड बुरी तरह गुस्से में थे, ख़ास तौर पर अपने गेंदबाजों पर जो चौथी पारी में 400 रन में भी दूसरी टीम को आउट न कर पाए। कई इतिहासकार तो इस टेस्ट जीत को भारत के क्रिकेट इतिहास का टर्निंग पॉइंट मानते हैं- और इसे 'भारत की सबसे बड़ी टेस्ट जीत' कह दिया।

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इसी हार ने लॉयड को यह अहसास दिलाया कि कुछ अलग करने की जरूरत है और यहां से वेस्टइंडीज ने पेस अटैक का दामन पकड़ लिया। सबीना पार्क के चौथे टेस्ट की टीम में ही वे होल्डिंग और जूलियन का साथ देने वेन डेनियल और वैनबर्न होल्डर को ले आए और तेज गेंदबाजों के आतंक का वह दौर शुरू हुआ जिसने उनकी टीम को टॉप पर पहुंचाया- उस ऊंचाई पर जो आज सोच भी नहीं सकते।

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