Cricket History - भारत का इंग्लैंड दौरा 1971

Updated: Tue, Feb 16 2021 22:04 IST
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साल 1971 में भारत ने इंग्लैंड की सरजमीं पर अपना पहला टेस्ट मैच और पहली टेस्ट सीरीज जीतकर इतिहास रचा था। 

1960 के आते-आते भारतीय क्रिकेट मैनेजमेंट की नई कमिटी बनी जिसकी कमान विजय मर्चेंट को दी गई और तब उन्होंने भारतीय दल में कई बड़े बदलाव किए। उन्होंने तब टीम में कई युवा और होनहार खिलाड़ियों को मौका दिया। कुछ खिलाड़ी तो बहुत जल्द ही टीम से बाहर चले गए लेकिन कुछ खिलाड़ियों ने भारत के लिए लंबे समय तक अपने खेल से लोगों को रोमांचित किया। इन खिलाड़ियों में सुनील गावस्कर, गुडप्पा विश्वनाथ और मोहिंदर अमरनाथ जैसे दिग्गजों का नाम शामिल है।

इस दौरान सबसे बड़ा फैसला था कि 1971 में वेस्टइंडीज और इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज के लिए अजित वाडेकर को टीम का कप्तान नियुक्त किया गया। मंसूर अली खान पटौदी जिन्होंने 60 के दशक में भारतीय क्रिकेट का कार्य़भार संभाला था उन्हें कप्तानी से हटा दिया गया। हालांकि इसके बावजूद वाडेकर चाहते थे कि पटौदी वेस्टइंडीज और इंग्लैंड दौरे पर भारतीय टीम में बतौर बल्लेबाज खेले लेकिन अली खान ने खुद दौरे से अपना नाम वापस ले लिया।

भारत ने वेस्टइंडीज के खिलाफ अपनी पहली टेस्ट जीत पोर्ट ऑफ स्पेन के मैदान पर हासिल की और उस टेस्ट सीरीज को 1-0 से अपने नाम किया। गावस्कर ने मैच में 774 रन बनाए जो आज भी किसी बल्लेबाज द्वारा उसके डेब्यू सीरीज में बनाए गए सर्वाधिक रन है। इसके अलावा दिलीप सरदेसाई ने उस सीरीज में 642 रन बनाए। गेंदबाजों की बात करे तो बिशेन सिंह बेदी, ईएस प्रसन्ना और श्रीनीवासन वेंकेटराघवन ने मिलकर कुल 48 विकेट हासिल किए थे।

इन सभी सफलताओं के बाद भी यह चीज भूलनी नहीं चाहिए कि वेस्टइंडीज की टीम एक बदलाव से गुजर रही थी और तब उन्हें 1966 से लेकर 1973 के बीच कोई टेस्ट सीरीज जीतने में कामयाबी नहीं मिली थी।

हालांकि इग्लैंड के खिलाफ सीरीज की बात कुछ और थी। कारण यह था कि इस दौरान इंग्लैंड की टीम वर्ल्ड की सबसे ताकतवर क्रिकेट टीम थी। आखिरी 24 टेस्ट मैचों में उनकी टीम अपराजित रही थी। हाल ही में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया को 2-0 से हराया था। वेस्टइंडीज क्रिकेट का खराब समय चल रहा था और साउथ अफ्रीका की टीम पर बैन लगा था। भारत के खिलाफ सीरीज से पहले उन्होंने पाकिस्तान को घर पर हराया था।

इस सीरीज की दिलचस्प बात यह भी थी कि भारत ने इससे पहले इंग्लैंड की सरजमीं पर ना एक सीरीज जीती थी और नाहीं कोई एक भी मैच। इ्ससे पहले टीम ने 6 बार इंग्लैंड का रूख किया था जहां उन्हें हर बार ही हार नसीब हुई थी। इंग्लैंड के खिलाफ 19 टेस्ट मैचों में से वो 4 ड्रॉ करवाने में सफल रहे थे और अन्य 15 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।

कर्नल हेमु अधिकारी जो साल 1952 के शर्मनाक दौरे पर भारतीय टीम में शामिल थे वो इस बार 1971 में भारतीय क्रिकेट टीम के मैनेजर के रूप में इंग्लैंड रवाना हुए। इंग्लैंड के पूर्व गेंदबाज फ्रेड ट्रुमेन जिन्होंने भारत को 1952 सीरीज और 1959 सीरीज में अपनी घातक गेंदबाजी से परेशान किया था, इस बार उन्होंने इंग्लैंड की सरजमीं पर अधिकारी को यह कहकर स्वागत किया कि," मुझे यह देखकर बेहद खुशी हुई की कर्नल तुम्हारा रंग वापस आ चुका है।"

Cricket History - भारत का इंग्लैंड दौरा 1967

अधिकारी ने इस बात का जवाब शानदार ढ़ंग से दिया। उन्होंने भारत की फिल्डिंग सुधरवाने में पूरी जान लगा दी। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत को 30 यार्ड घेरे में फिल्डिंग करने वाले बेहतरीन खिलाड़ी मिले जिसमें वाडेकर, गावस्कर, वेंकट और एकनाथ सोलकर का नाम शामिल है। साथ ही विकेट के पिछे फारूख इंजिनियर ने भी बेहतरीन काम किया और इन सभी के बदौलत भारत ने इस सीरीज को ऐतिहासित बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

भारत ने इंग्लैंड की सरजमीं पर मैच और सीरीज जीतकर इतिहास रचा। इस दौरान भारतीय टीम का प्रदर्शन बेहद शानदार रहा। 19 टेस्ट मैचों में उन्होंने 7 मैच जीते, 11 ड्रॉ रहे और केवल एक मैच में हार मिली। इस दौरान भारत को लीसेस्टरशायर और वार्विकशायर के खिलाफ दो मैचों में पारी और रन से जीत मिली।

 

इंग्लैंड के इस दौरे पर अजित वाडेकर और सुनील गावस्कर दोनों ने 1000 रन के आंकड़े को पूरा किया और गुडप्पा विश्वनाथ के बल्ले से 946 रन निकलें। भारत के 4 स्पिनरों ने मिलकर 197 बांटे जिसमें पास के फिल्डरों ने अहम योगदान दिया। टेस्ट सीरीज के दौरान लीसेस्टरशायर ने फारुख इंजीनीयर को रीलीज कर दिया और तब इस विकेटकीपर बल्लेबाज ने विकेट के पिछे और बल्लेबाजी में भी कमाल का प्रदर्शन किया। इस दौरे की अच्छी बात यह भी रही कि पहले की तरह कोई भी खिलाड़ी यहां चोटिल नहीं हुआ।

लॉर्डस टेस्ट में बारिश ने खलल डाला और भारत को आखिरी दिन जीत के लिए 183 रनों की जरूरत पड़ी। जब भारत की टीम 2 विकेट के नुकसान पर 21 रन बनाकर खेल रही थी तब फारुख ने जॉन स्नो की एक गेंद को मिड-विकेट की ओर मारा और तब गावस्कर और उन्होंने मिलकर एक रन लिया।

तब 6 फुट के सनॉ 5 फुट के सुनील गावस्कर से जानबूझकर टकड़ा गए। गावस्कर को कोई नुकसान नहीं हुआ और लेकिन वो मैदान पर गिर गए और उनका बल्ला हवा में लहरा गया। दोनों फिर उठे और स्नो ने बल्ला उठाकर गावस्कर की ओर फेंक दिया।

जब लंच हुआ तो सनॉ ने चयनकर्ता प्रमुख एलेक बेडसर और बोर्ड सेक्रेटरी माइक ग्रिफीट से माफी मांगी। लेकिन उन्हें ओल्ड ट्रेफोर्ड के मैदान पर हुए दूसरे मैच में बाहर का रास्ता देखना पड़ा। वो ओवल के मैदान पर फाइनल टेस्ट मुकाबले के लिए टीम में शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने सुनील गावस्कर को एक बेजोड़ बाउंसर मारा जिससे गावस्कर के गले की चैन टूट गई।

इसी बीच गावस्कर और इंजीनीयर के बीच तीसरे विकेट के लिए 50 मिनट में 66 रनों की साझेदारी हुई। भारत को जीत के लिए और 96 रनों की जरूरत थी और हाथ में 8 विकेट बचे थे लेकिन पहले भारत का मिडिल ऑर्डर ढ़ेर हो गया और जब भारतीय टीम 8 विकेट के नुकसान पर 145 रन बनाकर संघर्ष कर रही थी तब मैच में बारिश ने बाधा डाली।

इंग्लैंड की टीम ने दूसरे मैच में भी दबदबा बना के रखा। इस मैच में बारिश ने बाधा तब डाली जब भारत की टीम 420 रनों का पिछा कर रही थी और चौथे दिन वो 3 विकेट के नुकसान पर 65 रन बनाकर खेल रहे थे। पांचवें दिन का खेल बारिश में धूल गया। इस मैच में जॉन स्नो की जगह पीटर लीवर को टीम में शामिल किया गया और उन्होंने मैच में 88 रन बनाने के अलावा 70 रन देकर 5 विकेट हासिल किए। दिलचस्प बात यह है कि यह पीटर लीवर का घरेलू मैदान था।

बारिश ने भारत का साथ नहीं छोड़ा और लंकाशायर और नौटिंघम के खिलाफ हुए मैच में भी दोनों टीमों को परेशानी झेलनी पड़ी। उसके बाद आखिरी मुकाबले ओवल के मैदान पर खेला गया जहां भारत ने इतिहास रचा।

भारत ने ओवल के मैदान पर 4 विकेट से एक धमाकेदार जीत हासिल की। इस जीत में अहम बात यह भी है कि भारत की टीम इस मैच में पहली पारी में इंग्लैंड से 71 रन पिछे थी। लेकिन भारत ने भागवत चन्द्रशेखर की घातक गेंदबाजी के दम पर इंग्लैंड को दूसरी पारी में 101 रनों पर ही ऑलआउट कर दिया। चन्द्रशेखर ने मैच में 38 रन देकर 6 विकेट हासिल किए।

साल 1971 की इस टेस्ट सीरीज के तीसरे मुकाबले से पहले दोनों टीमें इस सीरीज में 1-1 की बराबरी पर थी। ओवल टेस्ट की पहली पारी में इंग्लैंड की टीम ने 335 रन बनाए जिसके जवाब में भारत ने 284 रन बनाए। चौथे दिन के खेल के पहले सेशन में इंग्लैंड अपनी दूसरी पारी में एक विकेट के नुकसान पर 24 रन बनाकर खेल रही थी।

भागवत चन्द्रशेखर इंग्लैंड के बल्लेबाज जॉन एडरिक को गेंदबाजी कर रहे थे। चन्द्रशेखर को उनके टीम के साथी ने उनकी सबसे तेज गेंद फेंकने के लिए कहा। चंद्रशेखर ने एडरिक को एक ऐसी गेंद फेंकी जिस पर उनका बल्ला आने से पहले ही वो बोल्ड हो गए। अगली ही गेंद पर उन्होंने केथ फ्लेचर को आउट किया और फिर लंच हो गया।

तब गणेश चतुर्थी का दिन था और भारतीय टीम चेशिंग्टन जू से एक बेबी एलिफेंट को लेकर आई। ओवल के मैदान पर लंच के वक्त उस बेबी एलिफेंट ने मैदान के चारों ओर चक्कर लगाया। और लंच के बाद जब खेल फिर से शुरू हुआ तो इंग्लैंड की टीम 101 रन पर ऑलआउट हो गई। चंद्रशेखर ने मैच में 38 रन देकर 6 विकेट हासिल किया।

हालांकि इंग्लैंड का सबसे मजेदार विकेट ऐलन नॉट के रूप में आया जब गेंदबाज के रूप में श्रीनीवास वेंकेटराघवन उनके सामने थे। एकनाथ सोलकर की एक फोटो जिसमें ऐलन नॉट का कैच उन्होंने शॉर्ट पर पकड़ा और मैदान पर चित्त पड़े थे। यह काफी चर्चा का केन्द्र रहा था।

भारत को अब भी जीत के लिए 174 रनों की जरूरत थी और भारतीय टीम 2 विकेट के नुकसान पर 76 रन बनाकर खेल रही थी। लेकिन अगली सुबह जब स्कोरबोर्ड में एक रन जुड़ा भी नहीं था तब कप्तान अजित वाडेकर का विकेट चला गया। लेकिन दिलीप सरदेसाई, फारूख इंजीनीयर और गुडप्पा विश्वनाथ ने भारत को 4 विकेट से जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई।

जब आबिद अली ने विजयी रन बनाए तब भारतीय टीम के कप्तान वाडेकर ड्रेसिंग रूम में सो रहे थे और तब इंग्लैंड के मैनेजर केन बैरिंग्टन को उन्हें बधाई देने के लिए जगाना पड़ा।

भारतीय टीम जब अपनी सरजमीं पर आई तब लोगों ने खूब जश्न मनाया। लोग सड़कों और गलियों में खूशी से झूमने लगे और जिन लोगों को इसकी जानकारी नहीं थी उन्हें वो बस में चढ़ कर बता रहे थे। कुछ लोगों के अंदर अभी भी ब्रिटिश राज के दिन याद थे और इंग्लैंड को उन्हीं की सरजमीं पर हराना एक बड़ी उपलब्धि थी।

भारत की इस जीत की तुलना 1948 की लंदन ओलम्पिक से की जाने लगी जब भारत ने हॉकी में इंग्लैंड को 4-0 से हराकर गोल्ड मेडल जीता था।

भारत के इस इंग्लैंड दौरे का कोई लाइव कवरेज नहीं हुआ था औऱ बच्चे रेडियो सेट्स के इर्द-गिर्द झुंड बनाकर खड़े थे। इस जीत के बाद इनामी राशि की घोषणा हुई और इंदौर के नेहरू स्टेडियम में वेस्टइंडीज औऱ इंग्लैंड के खिलाफ जीत में शामिल रहने वाले सभी खिलाड़ियों के नामों को कॉनक्रीट से बने बैट पर लिखा गया।

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