Cricket Tales - कई ऐसे नाम हैं जिन्होंने भारत को क्रिकेट में, एक क्रिकेट खेलने वाली टीम से 'क्रिकेट पॉवर' बनते नजदीक से देखा। इनमें से कई, उस कोशिश में शामिल भी थे पर उनका कहीं नाम नहीं है। ऐसा ही एक नाम कुणाल कांति घोष (Kunal Ghosh) का था- उनका निधन हो गया है। जब क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल (CAB) और बीसीसीआई (BCCI) के बड़े-बड़े ऑफिशियल का नाम, बीतता समय भुला रहा है तो कुणाल घोष का नाम किसे याद होगा?
थे तो क्रिकेट पत्रकार पर बहुत जल्दी, भारत में क्रिकेट को पेशेवर युग तक ले जाने वाले दिग्गज एडमिनिस्ट्रेटर में से एक, जगमोहन डालमिया ने उन्हें पहचान लिया। उसके बाद, जो व्यक्ति जगमोहन डालमिया के न सिर्फ सबसे नजदीक रहा, उनके हर फैसले में 'थिंक टैंक' था- यही कुणाल घोष थे। वे आम तौर पर कभी चर्चा में नहीं रहे क्योंकि अपनी इस पहचान का कभी फायदा नहीं उठाया- कभी दावा नहीं किया कि वे जगमोहन डालमिया के ज्यादातर क्रिकेट फैसलों के पीछे का 'दिमाग' हैं और न कभी खुद को एक 'पॉवर' के तौर पर देखा। कई बार जब ये सवाल पूछा गया कि ये कुणाल घोष कौन हैं तो कलकत्ता में जवाब मिलता था- जगमोहन डालमिया का परिचय ही, कुणाल घोष का परिचय है।
एक सीनियर पत्रकार, जिन्होंने ये सब बड़े नजदीक से देखा, उन्होंने लिखा- डालमिया के लगभग हर बड़े और क्रिकेट को आगे ले जाने वाले काम/फैसले में कुणाल की ख़ास छाप थी। जो जगमोहन डालमिया ने बोला- उसे कुणाल घोष लिखते थे, जो जगमोहन डालमिया चिट्ठियों/ ऑफिशियल कॉरस्पोंडेंस में लिखते थे- उसकी ड्राफ्टिंग कुणाल घोष करते थे, कोई भी लिखित संदेश हो- कुणाल लिखते थे, किसी नई स्कीम पर जो चर्चा होनी है उसका मसौदा- कुणाल तैयार करते थे, जगमोहन डालमिया से किसी नए प्रोजेक्ट पर बात करो- वे कहते थे पहले कुणाल से चर्चा कर लो, क्रिकेट में कोई मुश्किल आ जाए- वे सबसे पहले हालात का जायजा लेने और मामले को समझने के लिए कुणाल को भेजते थे।
अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कुणाल दा, अपने समय में, भारत में क्रिकेट से जुड़े बड़े-बड़े फैसलों के कितने नजदीक थे और क्या ऐसा था जो उन्हें मालूम नहीं था- इसी से उनकी सबसे बड़ी पहचान बनी। कभी कोई राज नहीं बताया, कभी अंदर की बात उनके मार्फत बाहर नहीं आई- और इसीलिए जगमोहन डालमिया ने उन पर हमेशा पूरा भरोसा किया। जगमोहन डालमिया के स्टॉफ में और लोग भी थे पर वे उनके 'वन मैन आर्मी' थे।
जहां-जहां डालमिया गए- आईसीसी, दुनिया भर के बोर्ड रूम या बीसीसीआई- कुणाल दा भी गए। वे एमबीए थे। तब भी स्पोर्ट्स रिपोर्टिंग में आ गए और इसमें भी अपनी अलग पहचान बनाई। उसके बाद, डालमिया के साथ काम में लग गए। बाग बाजार के मशहूर घोष परिवार से थे- ऐसा परिवार जिसमें फ्रीडम फाइटर भी थे और दो नेशनल स्तर के अखबार- अमृत बाजार पत्रिका और जुगांतर शुरु किए।