Cricket Tales: जिसने हौसला बढ़ाने के लिए ग्लव्स का तोहफा दिया - टीम में उसी की जगह ले ली
Cricket Tales, Asia Cup Special - पहला सवाल : टीम इंडिया के किस विकेटकीपर-बल्लेबाज ने शारजाह में एशिया कप में जो दो वन डे इंटरनेशनल खेले- उन दोनों में मैन ऑफ द मैच पर उसके बाद शारजाह में कभी नहीं खेले? दूसरा सवाल : टीम इंडिया के एक विकेटकीपर-बल्लेबाज ने किस युवा को ग्लव्स का तोहफा दिया उसका हौसला बढ़ाने के लिए और बाद में उसी ने टीम इंडिया में उनकी जगह ली? दोनों सवाल का एक ही जवाब और इस जवाब के तार सीधे 1984 के पहले एशिया कप से जुड़ते हैं- यहां बात कर रहे हैं दिल्ली के सुरिंदर खन्ना की।
1977 में बंगलुरु में कर्नाटक-दिल्ली रणजी मैच। मैच के बाद, कप्तान बिशन सिंह बेदी ने अपनी टीम के युवा विकेटकीपर सुरिंदर खन्ना को अपने कमरे में बुलाया जहां पहले से इरापल्ली प्रसन्ना, बीएस चंद्रा, किरमानी और विशी (गुंडप्पा विश्वनाथ) मौजूद थे। उस मुलाक़ात के बाद, टीम इंडिया के विकेटकीपर किरमानी ने सुरिंदर खन्ना को कुछ देर रुकने के लिए कहा- घर गए और विकेटकीपिंग ग्लव्स के साथ लौटे। तोहफे में दिए सुरिंदर खन्ना को और उन पर लिख दिया- 'ढेर सारे रन और ढेर सारे शिकार'। ये सुरिंदर खन्ना के पहले ऐसे ग्लव्स थे जो उनके 'अपने' थे। इन्हीं सुरिंदर खन्ना ने 1979 विश्व कप टीम में किरमानी की जगह ली।
बहुत बड़ी बात थी सैयद किरमानी की जगह लेना और शायद इसी का दबाव वे झेल नहीं पाए। 3 मैच में 17 रन बनाकर लौटे तो लगा कि इंटरनेशनल करियर यहीं खत्म। फिर भी घरेलू मैचों में अच्छे प्रदर्शन का सिलसिला जारी रहा। कटक में 1983-84 दलीप ट्रॉफी फाइनल- वेस्ट जोन के विरुद्ध गीले विकेट पर 146 रन बनाए उस अटैक पर जिसमें राजू कुलकर्णी भी थे। स्टेडियम में कुछ सेलेक्टर्स भी मौजूद थे और इसी का फायदा मिला- टीम इंडिया में वापसी की लगभग 5 साल बाद और खेलना था शारजाह में एशिया कप।
एशिया कप की टीम में किरमानी भी थे। अब तक किरमानी के प्रोफाइल में न सिर्फ 1983 वर्ल्ड कप जीत में योगदान जुड़ चुका था- वे उस विश्व कप के सबसे कामयाब विकेटकीपर रहे थे। जून 1983 में वर्ल्ड कप जीत और इसके 9 महीने के अंदर पहला एशिया कप आ गया। ऐसे में कोई भी आसानी से अंदाजा लगा सकता है कि किरमानी ही नंबर 1 विकेटकीपर थे टीम इंडिया के।
ये वह दौर था जब ये चर्चा शुरू हो गई थी कि टीम को ऐसा विकेटकीपर चाहिए जो किसी टॉप बल्लेबाज की तरह बैटिंग करे। शायद यही सोच थी 1984 एशिया कप में भारत की टीम के कप्तान सुनील गावस्कर की। जब आख़िरी इलेवन में भी, सैयद किरमानी की कीमत पर सुरिंदर खन्ना को चुना तो हर कोई हैरान रह गया। दूसरी बार सुरिंदर खन्ना 'इन' और किरमानी 'आउट'। कहते हैं गावस्कर के इस फैसले ने भारत को एशिया कप का पहला चैंपियन बना दिया। सुरिंदर खन्ना के स्कोर- विरुद्ध श्रीलंका : 69 गेंद में 6 चौके के साथ 51* और पाकिस्तान के विरुद्ध : 72 गेंद में 56- 3 चौके और 2 छक्के। दोनों जीत में सुरिंदर खन्ना प्लेयर ऑफ़ द मैच और प्लेयर ऑफ़ द टूर्नामेंट भी वही थे।
.दोनों भारतीय जीत में योगदान के बाद सुरिंदर खन्ना बड़े खुश थे। उनके कॉलेज के कुछ दोस्त टूर्नामेंट देखने आए थे। श्रीलंका के विरुद्ध जीत के बाद जब सुरिंदर खन्ना ने अपने एक दोस्त सुनील भाटिया को, हाथ में तिरंगा लिए मैदान पर भांगड़ा करते देखा तो कप्तान गावस्कर से अनुरोध किया कि उन्हें ग्राउंड में आने दें। गावस्कर मान गए। सुरिंदर खन्ना टूर्नामेंट जीतने के बाद, हर पार्टी और जश्न में अलग ही चमकते थे।
इस रिकॉर्ड के बाद तो यूं लगा था कि सुरिंदर खन्ना का करियर ग्राफ नई ऊंचाई पर पहुंचेगा। ऐसा कुछ नहीं हुआ और ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध अगली सीरीज में, अपनी पिचों पर खेलने के बावजूद, सुरिंदर खन्ना ने 13 ,4 ,3 और 1* के स्कोर बनाए। तब भी उन्हें 1984 के पाकिस्तान टूर पर ले गए। संयोग से वहां क्वेटा के पहले वन डे में 37 गेंद में 31 बनाए पर इसके बाद टीम इंडिया ने फिर से किरमानी को इलेवन में वापस बुला लिया। यहीं से सुरिंदर खन्ना का इंटरनेशनल करियर ख़त्म हो गया।
रिकॉर्ड : 10 वन डे इंटरनेशनल में 176 रन और इनमें से 2 पारी में, एक बार आउट होकर,107 रन एशिया कप में।