वे सिर्फ़ हनीफ मोहम्मद के बड़े भाई नहीं थे, इस 'विजडन' ने पाकिस्तान क्रिकेट को सम्मान दिलाया
पूर्व पाकिस्तानी क्रिकेटर वज़ीर मोहम्मद (Wazir Mohammad) का 95 साल की उम्र में इंग्लैंड के सोलीहुल (Solihull) में निधन हो गया। 2016 में इसरार अली के निधन के बाद से, वे पाकिस्तान के सबसे बड़ी उम्र के जीवित टेस्ट क्रिकेटर थे। क्रिकेट ने एक दिग्गज खो दिया। उनके निधन की खबर लगभग पूरे क्रिकेट जगत में चर्चा में रही। उनका सबसे बड़ा और पहला परिचय: पाकिस्तान के मशहूर मोहम्मद भाइयों में सबसे बड़े थे। बाकी चारों में से, रईस बदकिस्मत रहे कि टेस्ट नहीं खेले जबकि हनीफ मोहम्मद, मुश्ताक मोहम्मद और सादिक मोहम्मद तो टॉप क्रिकेटरों में से थे।
मोहम्मद परिवार 1947 में अविभाजित भारत से कराची आया तो पहले एक खाली पड़े मंदिर में शरण ली। वज़ीर ने, न सिर्फ परिवार के लिए कमाई शुरू की, क्रिकेट भी खेला और साथ में छोटे भाइयों को भी खिलाया। पाकिस्तान क्रिकेट इतिहास पर लिखी बेहतरीन किताबों में से एक, 'वाउंडेड टाइगर- ए हिस्ट्री ऑफ क्रिकेट इन पाकिस्तान (Wounded Tiger: A History of Cricket in Pakistan)' में पीटर ओबॉर्न (Peter Oborne) ने मुश्ताक द्वारा बताई बात को लिखा है, "जब रईस ऑफिस से वापस आते थे (वज़ीर और रईस को हबीब बैंक में नौकरी मिल गई थी), तो हम उन्हें एक कुर्सी देते थे जिस पर बैठ वह लगभग 15 गज की दूरी से हमें टेनिस बॉल से घंटों तक, अलग-अलग स्टाइल से गेंद फेंक, खिलाते रहते थे। वही ऐसी फील्डिंग सेट करते थे कि हम ये सोचने पर मजबूर हो जाते थे कि गेंद कहां खेलनी है?" इस तरह उन्होंने भविष्य के टेस्ट स्टार तैयार किए।
वे 1952-53 की पहली टेस्ट सीरीज के लिए भारत टूर पर आई टीम में थे। 1954 में पाकिस्तान के इंग्लैंड टूर के तो हीरो थे और टीम के बल्लेबाजी औसत में टॉप पर। ओवल में, कम स्कोर वाले टेस्ट में, फ्रैंक टायसन, ब्रायन स्टैथम, पीटर लोडर और खब्बू स्पिनर जॉनी वार्डल जैसे गेंदबाजों के सामने पाकिस्तान की दूसरी पारी में, वज़ीर ने 42* (टॉप स्कोर) बनाए और 9वें विकेट के लिए ज़ुल्फ़िकार अहमद के साथ 68 रन जोड़े। पाकिस्तान ने ये टेस्ट 24 रन से जीता था।
इसी तरह, 1956 में, कराची में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध 67 रन बनाए और अब्दुल हफीज कारदार (69) के साथ 6वें विकेट के लिए 104 रन जोड़े और पाकिस्तान को 9 विकेट से शानदार जीत दिलाई। इस दौरान, कीथ मिलर के बाउंसरों को जैसे हुक किया वह तो मिलर को हमेशा याद रहा और कई साल बाद भी वे बोले, "ये आदमी तो पूरे दिन हुक शॉट लगा सकता था।"
1957-58 की वेस्टइंडीज सीरीज : पोर्ट ऑफ स्पेन में दूसरे टेस्ट में दोनों पारी में 0 पर आउट। किंग्स्टन में तीसरे टेस्ट की पहली पारी में जब फिर से 0 पर आउट हुए तो उन्हें अंदाजा था कि अब सेलेक्टर उन्हें ज्यादा मौका नहीं देंगे। ये वही टेस्ट है जिसमें गैरी सोबर्स ने 365* रन बनाए और उनके इस बड़े स्कोर की चर्चा में वज़ीर के सिर्फ 155 मिनट में बनाए 100 (कुल 106 पर आउट) को ज्यादा चर्चा मिल ही नहीं पाई। जॉर्जटाउन में चौथे टेस्ट में, दूसरी पारी में 97* बनाए और इसी शानदार फार्म को जारी रखते हुए पोर्ट ऑफ स्पेन में पांचवें टेस्ट में, नंबर 4 पर बल्लेबाजी करते हुए, वज़ीर ने 189 रन बनाए और सईद अहमद के साथ 169 और हनीफ मोहम्मद के साथ 154 रन जोड़े।
1960-61 के भारत टूर के लिए टीम में उनकी जगह, उनके भाई मुश्ताक आ गए और इसी के साथ वजीर का टेस्ट करियर खत्म हो गया। रिकॉर्ड: 20 टेस्ट, 27.62 औसत से 801 रन; फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 105 मैच में 40.40 औसत से 4,930 रन।
पाकिस्तानी जर्नलिस्ट डॉ. नौमान नियाज को दिए एक इंटरव्यू में, वज़ीर ने कहा था, "मेरा टेस्ट रिकॉर्ड भले ही बहुत गजब का न हो, लेकिन मुझे इस बात पर गर्व है कि मैंने पाकिस्तान की ज्यादातर पहली टेस्ट जीत में ख़ास योगदान दिया।"
इस सच पर वे वास्तव में तारीफ के हकदार हैं: 1954 में ओवल में 42* रन बनाए और पाकिस्तान ऐसा पहला देश बना जिसे इंग्लैंड में अपने पहले टूर पर टेस्ट जीत मिली; 1956-57 में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध पहली जीत में, कारदार के साथ उनकी 100 वाली पार्टनरशिप ने ख़ास भूमिका निभाई और 1957-58 में, वे वेस्टइंडीज में पहली जीत वाले टेस्ट में वे 100 बनाने वाले अकेले खिलाड़ी थे।
तब भी, उनका सबसे बड़ा योगदान अपने भाइयों को क्रिकेट में बढ़ावा देना था। इसी बदौलत इस परिवार ने पाकिस्तान क्रिकेट के शुरुआती दौर में गजब का योगदान दिया: पाकिस्तान के पहले 89 टेस्ट में, इनमें से कम से कम एक भाई ने जरूर हिस्सा लिया। ये सिलसिला 90वें टेस्ट में टूटा और जब जुड़ा तो 11 ऐसे टेस्ट और खेले। इस तरह, 27 साल में पाकिस्तान के पहले 101 टेस्ट में से 100 में, मोहम्मद भाइयों में से एक तो पाकिस्तान टीम में जरूर खेला।
वे सभी 5 मोहम्मद भाई दांए हाथ के बल्लेबाज थे। वज़ीर चाहते थे कि उनमें से कम से कम एक खब्बू बल्लेबाज हो। डॉन अखबार को दिए एक इंटरव्यू में, सादिक ने बताया, "एक दिन, वे मुझसे बोले कि हमारे परिवार में कोई खब्बू बल्लेबाज नहीं है, तुम खब्बू बल्लेबाज क्यों नहीं बन जाते?"
" और इस तरह मैं खब्बू बल्लेबाज बन गया। जब हम सब आपस में खेलते थे तो मुझे प्रैक्टिस कराने के लिए, दूसरों के एक आउट के मुकाबले मुझे 5 मौके मिलते थे। वह कहते थे, हमेशा बांए हाथ से बल्लेबाजी करो।'
वज़ीर मोहम्मद की एक लाजवाब खूबी और भी थी। क्रिकेट लॉ की बड़ी अच्छी जानकारी थी और कप्तान भी अक्सर उनसे सलाह लेते थे। कई मौकों पर उनकी लॉ की ये समझ पाकिस्तानी टीम के बड़े काम आई। क्रिकेट लॉ और क्रिकेट रिकॉर्ड उन्हें याद रहते थे और इतने सही कि तब उनका निकनेम 'विजडन' पड़ गया था।
एक और अजीब बात ये कि उनके क्रिकेट प्रदर्शन पर उनके छोटे भाइयों, खासकर हनीफ मोहम्मद ने सबसे ज्यादा असर डाला। उन्हें अक्सर 'हनीफ के बड़े भाई' के तौर पर परिचित कराते थे। वज़ीर इस परिचय से बड़े खुश रहते थे और हनीफ पर गर्व करते थे। हनीफ के दोनों बड़े स्कोर के रिकॉर्ड वाले मैचों में वे भी टीम में थे और उनके साथ 100 वाली पार्टनरशिप कीं: 337, विरुद्ध वेस्टइंडीज (1957-58) और कराची बनाम बहावलपुर (1958-59) मैच जिसमें 499 रन बनाए। वजीर जो 20 टेस्ट खेले उनमें से 18 में, हनीफ उनके साथ पाकिस्तान टीम में थे।
हनीफ के बड़े भाई, ईश्वर आपकी आत्मा को शांति दे।
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चरनपाल सिंह सोबती