टेस्ट डेब्यू में शतक और स्टेडियम में किस: अब्बास अली बेग की अनसुनी कहानी
Abbas Ali Baig Oxford University: हरियाणा के तेज़ गेंदबाज अंशुल कंबोज को इस बार की इंग्लैंड-भारत टेस्ट सीरीज के दौरान, ओल्ड ट्रैफर्ड में टेस्ट से पहले, आकाशदीप और अर्शदीप सिंह के इंजरी लिस्ट में आने पर, बैकअप के तौर पर टीम में शामिल किया था। बाद में, अंशुल कंबोज ने टेस्ट डेब्यू भी किया पर ये भारत के लिए सबसे निराशाजनक डेब्यू में से एक रहा।
संयोग से, 66 साल पहले एक और युवा खिलाड़ी (जो कंबोज की तरह ही) टूर टीम में नहीं थे, लेकिन जब 1959 के उस टूर के चौथे टेस्ट से पहले, टीम के कामयाब बल्लेबाज विजय मांजरेकर चोटिल होने के कारण प्लेइंग इलेवन से बाहर हुए तो उन्हें बुला लिया। ये थे सिर्फ़ 20 साल के अब्बास अली बेग जो तब स्टूडेंट थे और सीधे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से टीम में शामिल हुए थे। इसके बाद बेग ने किसी भी नए भारतीय खिलाड़ी के सबसे बेहतरीन डेब्यू प्रदर्शन में से एक का रिकॉर्ड बनाया। असल में उन्होंने कुछ ही दिन पहले फ्री फॉरेस्टर्स के विरुद्ध मैच में 308 रन (221*+87) स्कोर कर नया ऑक्सफोर्ड रिकॉर्ड बनाया था और इस प्रदर्शन की बड़ी तारीफ़ हुई। इस रिकॉर्ड से वे भारत के सेलेक्टर्स की भी नजर में भी आ गए थे। इसीलिए जब मांजरेकर को चोट लगी तो एकदम भारत से तो किसी को बुला नहीं सकते थे, इसलिए इंग्लैंड में ही पहले से मौजूद अब्बास अली बेग को बुला लिया।
भारत तब तक 5 टेस्ट की सीरीज में पहले तीन टेस्ट हार चुका था। बेग भी टीम में आने के बाद, आगे के दोनों टेस्ट में हार को न रोक पाए पर वे भारत के लिए इस निराशाजनक रहे टूर की कुछ यादगार उपलब्धियों में से एक रहे। आज तक सिर्फ 8 और खिलाड़ियों ने डेब्यू टेस्ट में चौथी पारी में 100 बनाया है और ये रिकॉर्ड बनाने वाले बेग पहले थे। सिर्फ वेस्टइंडीज के केआर मेयर्स (2021 में 210*) ही इस रिकॉर्ड को बनाने वालों में, बेग के 112 रन के रिकॉर्ड को पार कर पाए हैं। इसके अलावा, बेग विदेश में ये रिकॉर्ड बनाने वाले चार खिलाड़ियों में से एक हैं।
भारत को इस सीरीज में इंग्लैंड से कड़ी चुनौती मिली थी और फ्रेड ट्रूमैन की अगुवाई में इंग्लिश अटैक उनके लिए कहर बरपाने जैसा था। इंग्लैंड ने सीरीज में क्लीन स्वीप किया और 3 टेस्ट पारी से और 2 टेस्ट 171 रन एवं 8 विकेट के प्रभावशाली अंतर से जीते।
बहरहाल ऐसी शानदार शुरुआत के बावजूद बेग का करियर उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा। सिर्फ़ 9 टेस्ट और खेले जिनमें से आखिरी जनवरी 1967 में वेस्टइंडीज के विरुद्ध था। एक मजेदार फैक्ट ये है कि वे 1971 में इंग्लैंड में सीरीज खेलने गई अजीत वाडेकर की टीम में भी थे पर किसी भी टेस्ट में प्लेइंग इलेवन में शामिल नहीं किया गया। उस टूर के बाद टीम से बाहर कर दिया। टेस्ट करियर का औसत 23.77 रहा जो वास्तव में उनके बेहतर टेलेंट का सबूत नहीं, वह भी तब जबकि डेब्यू पर एक 100 बनाया हो।
उस टेस्ट में बेग ने पहली पारी में नंबर 3 पर बल्लेबाजी करते हुए 26 रन बनाए। दूसरी पारी में, भारत के सामने जीत के लिए 548 रन का लक्ष्य था और मैच में अभी दो दिन बचे थे। इस पारी में, बेग ने फ्रेड ट्रूमैन और हेरोल्ड रोड्स जैसे तेज गेंदबाजों को बड़े आत्मविश्वास से खेला। जब 85* रन पर थे तो रोड्स का एक बाउंसर उनकी दाहिनी कनपटी पर लगा जिससे रिटायर्ड हर्ट होना पड़ा।
आखिरी दिन बेग आगे खेले तो रोड्स की ही एक गेंद पर 4 लगाकर अपना 100 पूरा किया। तब 100 बनाने वाले भारत के सबसे कम उम्र के खिलाड़ी (20 वर्ष और 131 दिन) बने और भारत के बाहर अपने डेब्यू टेस्ट में 100 बनाने वाले पहले भारतीय। आखिर में 112 पर रन आउट हुए। विजडन ने उनके प्रदर्शन को याद करते हुए लिखा, 'जुलाई के बीच में ऑक्सफोर्ड के युवा खिलाड़ी बेग को चोटिल मांजरेकर की जगह लेने बुलाया और ये टीम का बड़ा समझदारी वाला फैसला था। टीम में शामिल होने के बाद, हैदराबाद के इस युवा खिलाड़ी ने टीम इंडिया की तरफ से पहले दो मैच में 100 लगाए- मिडिलसेक्स के विरुद्ध 102 और ओल्ड ट्रैफर्ड टेस्ट की दूसरी पारी में 112 रन। कुल मिलाकर टूर टीम के लिए अपने 12 मैच में तीन 100 बनाए। खेल के प्रति बेग का नजरिया कमाल का था जो आगे भारतीय क्रिकेट को और बेहतर बनाने में बड़ा मददगार साबित हो सकता है। छोटे कद के बावजूद, विकेट के चारों ओर बेहद पॉवरफुल स्ट्रोक लगाए और तेज़ गेंदबाज़ों को हुक करने के टेलेंट ने तो उन्हें एक बड़े खिलाड़ी की पहचान दिलाई। ग्राउंड में भी उतने ही फुर्तीले और उनकी थ्रो तेज़ और बिल्कुल सही थी। बेग के पहले टेस्ट 100 और डेक्सटर के शानदार पिक-अप और थ्रो से उनके आउट होने की चर्चा ओल्ड ट्रैफर्ड में सालों तक होती रहेगी।'
वे बड़े लोकप्रियत हुए। जब 1959-60 में ऑस्ट्रेलिया की टीम भारत आई तो ये चर्चा थी कि क्रिकेट प्रेमी टिकट खरीदकर, उन्हें खेलते देखने के लिए आ रहे हैं। बेग वही खिलाड़ी हैं जिसे ब्रेबोर्न स्टेडियम में एक लड़की ने गाल पर चूम लिया था। ऐसा किसी भारतीय क्रिकेटर के साथ पहली बार हुआ। ये बहरहाल एक अलग स्टोरी है। दुर्भाग्य से, वे अपने टेस्ट करियर को नई ऊंचाई तक न ले जा सके और 1959-60 से 1967 के बीच सिर्फ 10 टेस्ट ही खेले। वे 'वन टेस्ट शो' के लिए ज्यादा मशहूर रहे।
बाद में उन्होंने अपने करियर को याद करते हुए कहा, 'कुछ मौके ऐसे भी आए जब मैंने अपने विकेट की ज्यादा कीमत नहीं लगाई। मुझे सेलेक्टर्स से भी पूरा सपोर्ट नहीं मिला।' बेग 1991-92 के ऑस्ट्रेलिया टूर और ऑस्ट्रेलिया में हुए 1992 वर्ल्ड कप के दौरान भारतीय टीम के मैनेजर भी थे।
उनके डेब्यू के साथ जुड़ी एक स्टोरी उनके पहले ब्लेजर की भी है। 2014 में, अब्बास अली बेग का 1959 का ये भारतीय ब्लेज़र ओसियन ने मुंबई के क्रिकेट क्लब ऑफ़ इंडिया में आयोजित एक ऑकशन में बेच दिया। ऑक्शन के लिए छपे ब्रोशर में, बेग ने लिखा था: 'मेरे सभी टीम इंडिया ब्लेज़र में से, ये इंग्लैंड 1959 टूर वाला ब्लेज़र, मेरे दिल के सबसे करीब था। सिर्फ इसलिए नहीं कि और किसी भी भारतीय ब्लेज़र के मुकाबले, इसे ख़ास तौर पर बोर्ड ने लंदन में सिलवाया था। ये ब्लेजर मुझे लॉर्ड्स के लॉन्ग रूम में, टीम मैनेजर फतेह सिंह राव गायकवाड़ ने दिया था।' इस ब्रोशर के अनुसार, ब्लेज़र की कीमत 3 लाख से 4.50 लाख रुपये के बीच थी।
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चरनपाल सिंह सोबती