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टीम इंडिया के लिए वर्ल्ड कप जीतने वाला ये बल्लेबाज करना चाहता था आत्महत्या,सोचता था बालकॉनी से कूद जाऊंगा

नई दिल्ली, 4 जून | टी-20 वर्ल्ड कप जीतने वाली भारतीय क्रिकेट टीम के हिस्सा रहे विकेटकीपर बल्लेबाज रोबिन उथप्पा ने खुलासा किया है कि साल 2009 से 2011 के बीच वो तनाव से जूझ रहे थे और एक वक्त

Saurabh Sharma
By Saurabh Sharma June 04, 2020 • 15:50 PM
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नई दिल्ली, 4 जून | टी-20 वर्ल्ड कप जीतने वाली भारतीय क्रिकेट टीम के हिस्सा रहे विकेटकीपर बल्लेबाज रोबिन उथप्पा ने खुलासा किया है कि साल 2009 से 2011 के बीच वो तनाव से जूझ रहे थे और एक वक्त तो ऐसा भी आया था जब वो आत्महत्या तक करने की सोच चुके थे। उथप्पा ने 2006 में इंग्लैंड के खिलाफ मैच से भारतीय टीम के लिए पदार्पण किया था। उन्होंने अब तक भारत के लिए 46 वनडे और 13 टी 20 मैच खेले हैं।

उथप्पा ने राजस्थान रॉयल्स फाउंडेशन द्वारा एनएस वाहिया फाउंडेशन एंड मैक्लीन अस्पताल (हॉवर्ड मेडिकल स्कूल से संबद्ध) के सहयोग से मानसिक स्वास्थ्य को लेकर आयोजित वेबीनार 'माइंड, बॉडी और सोल' के पहले सत्र में कहा, " जब मैंने साल 2006 में अपना पदार्पण किया तो अपने बारे में इतना नहीं जानता था, तब काफी चीजों को सीख रहा था और सुधार करता जा रहा था। अब मैं अपने बारे में काफी ज्यादा जानकारी रखता हूं और अपने विचारों के साथ खुद को लेकर काफी पक्का हूं। अब खुदको संभालना मेरे लिए आसान है अगर कहीं फिसल जाता हूं।"

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उन्होंने कहा, " मुझे ऐसा लगता है कि मैं आज इस जगह पहुंचा हूं क्योंकि काफी मुश्किलों के पलों का सामना किया है। मैं बहुत ही ज्यादा तनाव में था और आत्महत्या तक करने के विचार आते थे। मुझे याद है साल 2009 और 2011 यह नियमित तौर पर होता था और हर दिन मेरे अंदर ऐसे विचार आते थे।"

उथप्पा ने आगे कहा, "एक वक्त ऐसा भी था जब मैं क्रिकेट के बारे में सोचता ही नहीं था। यह मेरे दिमाग से काफी दूर हो गया था। मैं यह सोचता रहता था कि आज के दिन मैं कैसे बचूंगा और अगले दिन तक किस तरह जिंदा रहूंगा। मेरे जीवन में हो क्या रहा है और मैं किस रास्ते पर जा रहा हूं।"

विकेटकपर बल्लेबाज ने कहा, " क्रिकेट खेलते वक्त तो ऐसे ख्याल दिमाग से दूर रहते थे लेकिन जब मैच नहीं होता था ऑफ सीजन में तो बहुत ही ज्यादा मुश्किल हो जाता था। उन दिनों मैं बैठे बैठे सोचता था कि मैं तीन तक गिनती करूंगा और दौड़कर बालकॉनी से छलांग लगा दूंगा, लेकिन फिर कुछ था जो मुझे ऐसा करने से रोक लेता था।"
 


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