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‘तुम्हारे में दम है तो अपने बच्चों को खिला कर दिखाओ’- धोखे के बाद शुरू हुआ था 'मेकिंग ऑफ सरफराज खान' प्रोजेक्ट 

भारत के नए टेस्ट क्रिकेटर सरफराज खान (Sarfaraz Khan) की राजकोट में कामयाबी के बाद, चारों ओर उनके बारे में बहुत कुछ चर्चा में रहा। वैसे भी सरफराज और उनके अब्बा की मेहनत के बारे में बहुत कुछ लिखा जा

Charanpal Singh Sobti
By Charanpal Singh Sobti February 21, 2024 • 09:49 AM
‘तुम्हारे में दम है तो अपने बच्चों को खिला कर दिखाओ’- धोखे के बाद शुरू हुआ था 'मेकिंग ऑफ सरफराज खान'
‘तुम्हारे में दम है तो अपने बच्चों को खिला कर दिखाओ’- धोखे के बाद शुरू हुआ था 'मेकिंग ऑफ सरफराज खान' (Image Source: Google)
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ये इकबाल अब्दुल्ला और किसी का नहीं, उस पहले क्रिकेटर का नाम है जिसके साथ नौशाद खान ने किसी के ऊंचे दर्जे की क्रिकेट में खेलने का सपना देखा और उसे तैयार भी किया। इकबाल अब्दुल्ला में उन्हें टेलेंट नजर आई और गरीब बच्चों में से उन्हें निकाला और आजमगढ़ से मुंबई ले आए। यहां तक कि अपने 225 स्क्वायर फुट के कुर्ला घर में रखा- घर में और हर सुविधा दी, अपने बच्चे की तरह। खब्बू स्पिनर इकबाल फर्स्ट क्लास और लिस्ट ए क्रिकेट खेले, आईपीएल भी लेकिन इंटरनेशनल क्रिकेट तक न पहुंच पाए और 2007-08 में मुंबई के लिए शुरू हुआ फर्स्ट क्लास करियर 2022 में खत्म हुआ। मुंबई जैसी टीम के लिए खेल पाना भी कोई कम बात नहीं। फर्स्ट क्लास करियर रिकॉर्ड रहा- 71 मैच, 2641 रन, 3 शतक और 220 विकेट। 2008 में अंडर 19 वर्ल्ड कप विजेता टीम में थे और 13 की औसत से 10 विकेट लिए।

वैसे मुंबई के साथ करियर की शुरुआत के बाद मिजोरम, सिक्किम, केरल और उत्तराखंड के लिए भी खेले। 2007 में अपने सिर्फ 5वें टी20 में 5-10 की गेंदबाजी की थी हरियाणा के विरुद्ध और इसके बाद फर्स्ट क्लास क्रिकेट में डेब्यू किया। सबसे बेहतरीन सीज़न 2010-11 था- रणजी ट्रॉफी में 22.11 की औसत से 27 विकेट, 2011 आईपीएल में केकेआर के लिए 16 विकेट जिससे नाइट राइडर्स  ने एलिमिनेटर खेला लेकिन अगले रणजी सीज़न में आउट ऑफ फॉर्म थे और 6 मैच में 13 विकेट ही ले पाए। 2013-14 और 2015-16 में टीम के रणजी क्वार्टर फाइनल खेलने में वे भी चमके थे। आईपीएल में, नाइट राइडर्स के लिए 6 सीज़न खेले और राजस्थान रॉयल्स एवं आरसीबी के लिए भी। इंडिया ए और चैलेंजर ट्रॉफी में इंडिया ग्रीन के लिए भी खेले।  

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इकबाल के इस सफर से ये तो तय हो जाता है कि नौशाद खान की मेहनत/ट्रेनिंग में कोई कमी नहीं रही। गड़बड़ ये हुई कि क्रिकेट में जैसे-जैसे इकबाल का कद बढ़ा- वे नौशाद खान से दूर होते गए और यहां तक कि जिस घर में 7 साल तक रहे- उससे रिश्ता ही खत्म कर लिया। इकबाल ने तो उन्हें यहां तक कहा- 'मेरे में काबिलियत थी, मैं खेला। तुम्हारे में दम है तो अपने बच्चों को खिला कर दिखाओ तब मानूंगा।' 

नौशाद खान इतनी बड़ी बात सुन कर हैरान रह गए। साफ़ था कि जिस इकबाल को वे लाए, अपने घर में रखा, क्रिकेट ट्रेनिंग दी- उसी ने अपनी क्रिकेट में उनके किसी भी योगदान को मानने से इंकार कर दिया। उस दिन वास्तव में शुरू हुआ था 'मेकिंग ऑफ सरफराज खान' प्रोजेक्ट और राजकोट में उनकी ट्रेनिंग में तैयार सरफराज ने टेस्ट खेला। जो इकबाल ने कहा वह उसे भूल नहीं पाए और उन्हें चुभता रहा।

जो इकबाल ने कहा, वह वास्तव में नौशाद खान के लिए प्रेरणा बन गया। वे कहते हैं कि इसी किस्से की निराशा में वे शायर बन गए थे। मेहनत की और क्लास 4 की छोटी नौकरी के साथ, ट्रेन में गारमेंट्स भी बेचे। साथ में न सिर्फ सरफराज, छोटे मुशीर के साथ भी मेहनत की। संयोग देखिए- एक मुकाम ऐसा भी आया था जब सरफराज उसी आरसीबी ड्रेसिंग-रूम में थे जहां इकबाल भी थे। ये थी इकबाल को जवाब देने की पहली क़िस्त। 

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नौशाद कहते हैं- 'हम झुग्गी-झोपड़ियों में रहे, टॉयलेट के लिए लाइन में लगते थे जहां मेरे बेटों को थप्पड़ मार कर लोग आगे निकल जाते थे। इस तरह मैं जीरो था और क्रिकेट में कुछ हासिल न होता तो उसी जीरो में लौट जाता। यहां तक कि सरफराज ने भी कहा था- अब्बू, अगर कुछ हासिल न हुआ तो फिर से ट्रैक-पैंट बेचने के लिए लौट जाएंगे।'
 



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