Cricket Tales - भारत के टेस्ट क्रिकेटर का पहला पेंशन चैक सिर्फ 5000 रुपये का था पर बड़े काम आया

Updated: Mon, Sep 12 2022 09:23 IST
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Cricket Tales - आईपीएल मीडिया अधिकार करोड़ों में बिकने की खबर के सामने बीसीसीआई के पुराने क्रिकेटरों (पुरुष और महिला दोनों) और अंपायरों की मासिक पेंशन में बढ़ोतरी की खबर को वह चर्चा मिली ही नहीं, जो किसी और दिन मिलती। हालांकि प्रथम श्रेणी खिलाड़ियों (15,000 से 30,000 रुपये), टेस्ट खिलाड़ियों (पुरुष - 37,500 से 60,000 रुपये और 50,000 से 70,000 रुपये तथा महिला- 30,000 से 52,500 रुपये) और 2003 से पहले संन्यास लेने वाले वाले प्रथम श्रेणी क्रिकेटरों (22,500 से 45,000 रुपये) को अच्छी बढ़त दी पर मीडिया अधिकार की रकम के सामने ये गिनती फीकी ही तो नजर आएंगी !

अगर ये गिनती फीकी नजर आ रही हैं तब तो पेंशन स्कीम की शुरुआत पर मिली पेंशन की रकम सुन कर आप हैरान ही रह जाएंगे। आज किसी को याद भी नहीं होगा कि किन हालात में पेंशन स्कीम शुरू हुई, पहला चैक किस रकम का था और इसका स्वागत किस तरह से किया गया? बोर्ड भी क्रिकेटरों की भलाई चाहता था पर पैसा ही नहीं था तो पुराने क्रिकेटरों की मदद कहां से करते?

पैसा आना शुरू हुआ तो उसे बांटने के लिए दिल नहीं था। यहां तक कि जरूरतमंद खिलाड़ियों की भी मदद नहीं की बोर्ड ने। जब पुराने कप्तान जीएस रामचंद इलाज के लिए बोर्ड से मदद की 'भीख' मांग रहे थे तब बोर्ड ने सिर्फ 2 लाख रुपये दिए और उन्हें देने में भी इतनी देर कर दी कि कोई फायदा ही नहीं हुआ। कपिल देव ने अपने एक इंटरव्यू में टीम इंडिया के मैनेजर और पुराने क्रिकेटर चंदू बोर्डे की हालत बयान की थी- वे अपने डेली अलाउंस को लेने के लिए बोर्ड के ट्रेजरर का चार घंटे इंतजार करते रहे क्योंकि उनके पास घर जाने के लिए भी पैसे नहीं थे। मुंबई-पुणे हाईवे पर एक टेस्ट क्रिकेटर के भिखारी की हालत में घूमने की चर्चा करना भी अच्छा नहीं लगता। ऐसी ढेरों मिसाल हैं और चारों तरफ से एक ही आवाज थी कि बोर्ड पुराने क्रिकेटरों की मदद करे।

पैसा आया तो आखिरकार बोर्ड ने भी दिल खोला। पहली पेंशन स्कीम घोषित हुई रिटायर टेस्ट खिलाड़ियों और अंपायरों के लिए 28 अप्रैल 2004 को। इसे शुरू करने का श्रेय जगमोहन डालमिया को जाता है। विश्वास कीजिए तब पेंशन थी 5000 रुपये महीना। स्कीम उसी महीने से लागू हो गई और शर्त थी जब तक ज़िंदा तब तक पेंशन- न विधवा को और न नॉमिनी को। हर टेस्ट खिलाड़ी इस स्कीम में बराबर था- चाहे कितने टेस्ट खेले हों। सिर्फ वन डे खेले तब पेंशन स्कीम में नहीं थे। मोहम्मद अजहरुद्दीन 99 टेस्ट खेलने के बावजूद स्कीम में नहीं थे- तब वे ब्लैकलिस्ट थे मैच फिक्सिंग के आरोपों में। रकम कम थी फिर भी एक स्वागत योग्य कदम था और इसकी तारीफ़ हुई।

पहले पेंशन चैक देने पर, तारीफ बटोरने में बोर्ड ने कोई कंजूसी नहीं की और चैक 30 अप्रैल को पूरे देश में एक साथ बांटे- अलग अलग बड़े शहर में किए फंक्शन में। परदे के पीछे हर बड़े अधिकारी को आदेश था कि फंक्शन कामयाब होने चाहिए और ज्यादा से ज्यादा पुराने खिलाड़ी खुद आएं, अपने चैक को लेने। बोर्ड ने इसे अपने प्लेटिनम जुबली के तोहफे से जोड़ दिया। ये किसी से छिपा नहीं कि उस समय ये मुश्ताक अली, सलीम दुर्रानी और भगवत चंद्रशेखर जैसे क्रिकेटरों के लिए भी गजब की मदद थी।

मुंबई में फंक्शन वानखेड़े स्टेडियम के पीडी हॉल में था। ढेरों क्रिकेटर खुद आए अपने पहले चैक को लेने। इनमें अगर पॉली उमरीगर जैसे सीनियर थे तो 82 साल के माधव मंत्री भी। इन्हें तब 5000 रुपये की भी जितनी जरूरत थी- उतनी रवि शास्त्री को नहीं थी। इसीलिए वे तंज कसने से रुके नहीं- 'मैं यहां सबका साथ देने आया हूं, न कि इस चैक के लिए।' शास्त्री ने ही तब वहां कहा था कि 1975 से पहले के खिलाड़ियों की हालत देखते हुए बोर्ड को उनके लिए अलग से स्कीम बनानी चाहिए- क्या ही अच्छा हो बोर्ड उन्हें एक मुश्त रकम दे। बोर्ड ने कई साल बाद, आखिरकार इस बात को भी माना।

2004 में 5,000 रुपये के साथ मामूली शुरुआत से, बीसीसीआई ने अपनी पेंशन स्कीम को आने वाले सालों में कई तरह से बदला पर शुरुआत हमेशा ख़ास और यादगार होती है।

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