एक क्रिकेटर पूरे मैच के दौरान ग्राउंड पर और उसकी टीम की जीत- क्या किसी भारतीय क्रिकेटर के नाम है ये अद्भुत रिकॉर्ड?
Vijay Merchant: कुछ दिन पहले, इंग्लिश काउंटी चैंपियनशिप में ट्रेंट ब्रिज में, नॉटिंघमशायर-लेंकशायर मैच में, नॉटिंघमशायर की 9 विकेट से जीत में एक ऐसा प्रदर्शन देखने को मिला जो सालों में कभी दिखाता है कोई क्रिकेटर।...
वे पूरे मैच के दौरान ग्राउंड पर थे और कुल समय रहा- 23 घंटे और 45 मिनट। क्रिकेट एटलस में ये एक ऐसा रिकॉर्ड है जो बहुत कम ओपनर के नाम है- दो बार पारी शुरू कर आखिर तक आउट नहीं, दूसरी टीम की दो पारी में फील्डिंग और साथ में जीत। जब ऐसा अद्भुत रिकॉर्ड बनाने वाले और ओपनर ढूंढे गए तो एक नाम, एक भारतीय ओपनर का भी निकला- वे गजब के ओपनर थे पर उनके नाम पर ऐसे अनोखे रिकॉर्ड का कहीं जिक्र नहीं है। इस बार उन्हीं की बात करेंगे।
ये थे विजय मर्चेंट- वही जिन्होंने फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 71 का औसत दर्ज किया और सिर्फ डॉन ब्रैडमैन का रिकॉर्ड इससे बेहतर है। उनके समय में टेस्ट कम होते थे इसलिए 18 साल के करियर में सिर्फ 10 टेस्ट खेले (सभी इंग्लैंड के विरुद्ध) और रिकॉर्ड रहा- 10 टेस्ट में 47.72 औसत से 859 रन, रणजी ट्रॉफी में 98.75 औसत से 3639 रन और फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 71 की औसत से 13000+ रन। दो बार इंग्लैंड टूर पर गए (दोनों के बीच 10 साल का फर्क था), बेहतरीन बल्लेबाजी की, दोनों टूर में कुल 4000+ रन बनाए। जिस रिकॉर्ड की यहां बात कर रहे हैं वह उन्होंने इनमें से एक इंग्लैंड टूर में ही बनाया था। गजब के बल्लेबाज थे।
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पहला टूर 1936 का था- 51.32 औसत से 1745 रन बनाकर बल्लेबाजी में टूर टीम में टॉप पर थे। वैसे तो, रिकॉर्ड के नजरिए से भारत के लिए ये टूर कोई ख़ास कामयाब नहीं गिनते पर इसी में एक 3 दिन का मैच 15, 16, 17 जुलाई को एगबर्थ, लिवरपूल में लेंकशायर के विरुद्ध खेले थे जिसे भारत ने जीता- विजय मर्चेंट ने इसमें ओपनर के तौर पर दोनों पारी में 135* और 77* बनाए पर किसी ने भी इस प्रदर्शन को उस तरह का रिकॉर्ड बनाकर नहीं देखा जो अब सामने आया है।
भारत ने पहले बल्लेबाजी की और 271 रन बनाए- मर्चेंट ओपनर थे और 135* पर रहे यानि कि उनके सामने 9 विकेट गिरे और वे अपनी जगह जमे रहे। लेंकशायर की टीम जवाब में 234 रन बनाकर आउट हुई- इसमें मर्चेंट ने पूरी पारी में फील्डिंग की। इंडिया इलेवन ने दूसरी पारी में तो और भी ख़राब बल्लेबाजी की- सिर्फ 161 रन बनाए और मर्चेंट 77 बनाकर फिर से आखिर तक आउट नहीं हुए। मर्चेंट और वजीर अली (36) ने पहले विकेट के लिए 64 रन जोड़े पर वजीर आउट हुए तो विकेट लगातार गिरते गए और अगले 8 में से कोई भी बल्लेबाज दो गिनती वाला स्कोर नहीं बना पाया- नंबर 11 मोहम्मद निसार ने ये सिलसिला ख़त्म किया और मर्चेंट के साथ 10वें विकेट की 31 रन की पार्टनरशिप में से 22 रन बनाए।
उस मैच में कप्तान, सीके नायडू (6-46) ने गजब की गेंदबाजी की और कई दिग्गज क्रिकेटर वाली लेंकशायर टीम को दूसरी पारी में सिर्फ 114 रन पर आउट कर मैच 84 रन से जीत लिया। मर्चेंट ने दूसरी पारी में भी फील्डिंग की। इस तरह पूरे मैच के दौरान वे ग्राउंड में थे और साथ में उनकी टीम ने जीत दर्ज की। ये कितना अनोखा रिकॉर्ड है- इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अब तक सिर्फ 17 क्रिकेटर के नाम है ये और हसीब ने इस रिकॉर्ड का 17 साल का सूखा ख़त्म किया।
विजय मर्चेंट के लिए 1936 का ये टूर बेहद कामयाब रहा और इसका सबूत ये कि उन्हें उस इंग्लिश सीजन के प्रदर्शन के लिए विजडन ने 5 क्रिकेटर ऑफ़ द ईयर में से एक चुना। वे इतना बेहतरीन खेले थे उस टूर में उन्हें देखकर इंग्लैंड के दिग्गज बल्लेबाज सी.बी. फ्राई (26 टेस्ट, फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 30 हजार से ज्यादा रन) ने एक ऐसी बात कही थी जिसका आज भी सिर्फ क्रिकेट इतिहासकार ही नहीं, भारत की आजादी की लड़ाई पर लिखने वाले भी जिक्र करते हैं- क्यों ये एक अलग स्टोरी है। फ्राई ने मर्चेंट की बल्लेबाजी देखकर कहा था- 'उनके चेहरे पर सफ़ेद रंग पोतकर उन्हें अपनी टीम में ओपनर के तौर पर ऑस्ट्रेलिया ले चलते हैं।'
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और भी मजेदार बात ये है कि आज क्रिकेट पर लिखने वाले रिकॉर्ड देखकर विजय मर्चेंट को ओपनर लिख देते हैं (जिन 18 टेस्ट पारी में बल्लेबाजी की उनमें से 12 में ओपनर थे और अपने तीनों 100 ओपनर के रोल में ही बनाए)- वास्तव में मर्चेंट विशेषज्ञ ओपनर थे ही नहीं। इस 1936 टूर की जो टीम चुनी उसमें टेस्ट सीरीज के लिए मर्चेंट को ओपनर नहीं गिना था। ये टूर शुरू हुआ तो मर्चेंट ने जिन पहली 7 पारी में बल्लेबाजी की और 366 रन बनाए- उनमें से वे किसी में भी ओपनर नहीं थे। इसके बाद उनकी उंगली में चोट लग गई और वे लगभग 3 हफ्ते तक इंजर्ड की लिस्ट में रहे। इस बीच टीम के खलाड़ी फिरोज पालिया बिलकुल आउट ऑफ़ फॉर्म थे जबकि दत्ताराम हिंडलेकर चोटिल हो गए। ऐसे में जब मर्चेंट ने टीम में वापसी की तो उन्हें ओपनिंग के लिए कहा गया। इस तरह वे ऐसे पहले भारतीय क्रिकेटर थे जिन्होंने साबित किया कि कोई भी 'विशेषज्ञ ओपनर' के तौर पर पैदा नहीं होता- अपने टेलेंट, लगन और पक्के इरादे से ओपनर बल्लेबाज़ बनता है। विजय मर्चेंट ने तो 1936 में इंग्लैंड में पैर रखने तक कभी पारी की शुरुआत नहीं की थी ! टेस्ट क्रिकेट में नंबर 6 के तौर पर आए थे।