जब टीम इंडिया 2007 टी-20 वर्ल्ड कप चैंपियन बनी तो कोच/ मैनेजर कौन था? नाम जानकर चौंक जाएंगे
एक बड़ा मजेदार मुद्दा है ये। सब जानते हैं कि 1983 में वर्ल्ड कप जीतने वाली टीम इंडिया के मैनेजर पीआर मानसिंह थे- आज तक जब भी उस टीम का सम्मान किया जाता है तो वे बराबर सम्मानित होते हैं।
![Charanpal Singh Sobti Charanpal Singh Sobti](https://img.cricketnmore.com/uploads/2021/12/Cricket.jpeg)
![Lalchand Rajput manager and coach Of India's 2007 T20 World Cup Winning Team Lalchand Rajput manager and coach Of India's 2007 T20 World Cup Winning Team](https://img.cricketnmore.com/uploads/2024/05/Lalchand-Rajput-coach-Of-Indias-2007-T20-World-Cup-Winning-Team-lg.jpg)
असल में 2007 में, शास्त्री को बांग्लादेश टूर की जो ड्यूटी दी वह कोई ख़ास चुनौती वाली नहीं थी- तब बांग्लादेश सीरीज को कोई ख़ास मुश्किल नहीं गिनते थे। इसकी तुलना में टीम की अपनी स्थिति ज्यादा गड़बड़ थी- वनडे वर्ल्ड कप में बुरी तरह से हार, कोच ग्रेग चैपल के साथ कई विवाद, टीम में गुटबाजी और इसका असर ये था कि टीम का मनोबल बुरी तरह गिरा हुआ था। ऐसे में टूर में शास्त्री का सबसे बड़ा योगदान ये था कि सही माहौल बनाया और कोई नया विवाद नहीं पनपने दिया। खुद उनकी अपनी छवि 'बोर्ड मैन' की थी- कमेंट्री में भी वे बीसीसीआई का ही गुणगान करते थे। किसी भी संकट के लिए, बीसीसीआई जिसे सबसे पहले कॉल कर सकते थे वह रवि शास्त्री थे। बांग्लादेश टूर तक ही आईपीएल की चर्चा शुरू हो चुकी थी और जिन 'समझदार' को ललित मोदी ने सबसे पहले आईपीएल गवर्निंग काउंसिल में लिया उनमें रवि शास्त्री का नाम था।
दूसरी तरफ, तब तक कपिल देव इंडियन क्रिकेट लीग (आईसीएल) को प्रमोट करने की वजह से बीसीसीआई की हिट लिस्ट में आ चुके थे। ऐसे में जल्दबाजी में बोर्ड ने कपिल देव को नेशनल क्रिकेट एकेडमी के चीफ के पद से हटा दिया। जल्दबाजी में एक ही नाम सूझा और रवि शास्त्री को सितंबर 2007 में इस एकेडमी का नया चीफ बना दिया। मजे की बात ये कि वे साथ-साथ टीवी पर एक 'बिजी' कमेंटेटर भी थे और उनके पास कतई फुर्सत नहीं थी। इस सारी गफलत में ये तो ध्यान ही नहीं रहा कि टी20 वर्ल्ड कप खेलने जाना है और तैयारी के नाम पर टीम के पास कोई कोच नहीं था।
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रवि शास्त्री की थाली में इतना सब कुछ परोस चुके थे कि और किसी ड्यूटी के लिए जगह ही नहीं थी। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि क्या माहौल था तब और टी20 के उस पहले ग्लोबल टूर्नामेंट को बीसीसीआई से कितना महत्व मिल रहा था। यहां से किसी नए अंतरिम कोच की तलाश शुरू हो गई। इस मुकाम पर शॉर्टलिस्ट हुए- लालचंद राजपूत। आज भले ही क्रिकेट पर लिखने वाले बड़े-बड़े पंडित जो लिखते रहें पर उस समय की बीसीसीआई की अपनी रिपोर्ट में उन्हें मैनेजर लिखा गया। मजे की बात ये कि तब तक डीडीसीए के सुनील देव को टूर के लिए मैनेजर बना चुके थे। इसीलिए सुनील देव को बाद में एडमिनिस्ट्रेटिव मैनेजर का नाम दिया और लालचंद राजपूत को मैनेजर।
बाद में जब बीसीसीआई को एहसास हुआ कि कोच के दौर में मैनेजर बनाने से बदनामी होगी तो लालचंद राजपूत को मैनेजर-कोच लिखना शुरू कर दिया और इसी को बाद में बिगाड़कर कोच बना दिया गया। सुनील देव एडमिनिस्ट्रेटिव मैनेजर ही बने रहे- ऐसी पोस्ट जो न तो इससे पहले थी और न इसके बाद कभी रही। ये सच है कि पोस्ट चाहे जो रही हो- लालचंद राजपूत को ड्यूटी कोच की ही दी और उनके साथ सपोर्ट स्टाफ में वेंकटेश प्रसाद और रॉबिन सिंह थे। ऑफिशियल तौर पर वे कभी टीम के चीफ कोच घोषित नहीं हुए और यही वजह है कि कई जगह कोच की लिस्ट में उनका नाम नहीं मिलता।
इतना बड़ा इवेंट और बोर्ड ने उन लालचंद राजपूत को टीम का कोच बनाया जिनके पास इतनी बड़ी ड्यूटी का कोई अनुभव नहीं था। वे खुद कहते हैं- 'हमने तब इतिहास रचा जब कोई भी हमसे जीतने की उम्मीद नहीं कर रहा था। यह पहला टी20 वर्ल्ड कप था और किसी को नहीं पता था कि यह है क्या?'
असल में तब बोर्ड को हो चुकी देरी की वजह से एक ऐसे नाम की तलाश थी जो कोच के तौर पर एक्टिव हो और जिसके पास ऐसी कोई ड्यूटी न हो कि दक्षिण अफ्रीका जाने की फुरसत ही न हो। इन फैक्टर पर राजपूत सही बैठे। अप्रैल 2007 में बैंगलोर में बीसीसीआई के एक कोचिंग क्लिनिक में हिस्सा लिया था। इसके बाद वे इंग्लैंड के विरुद्ध सीरीज के भारत की अंडर-19 टीम के कोच थे। ये जुलाई-अगस्त 2007 की बात है और राजपूत तब श्रीलंका टूर की तैयारी के लिए अंडर 19 टीम के साथ थे। तब कोई इंटरव्यू नहीं हुआ, किसी ने उनसे नहीं पूछा कि क्या कोच बनोगे? एक सुबह एन श्रीनिवासन ने फोन किया कि आपको प्रमोशन दे रहे हैं- टी20 वर्ल्ड कप टीम के मैनेजर/कोच की। उस समय उन्हें कोई इंकार करने की हिम्मत नहीं करता था और लालचंद राजपूत तो एक्टिव थे ही।
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जिस अंडर 19 टीम को वे तैयार कर रहे थे तब उसमें विराट कोहली, मनीष पांडे और रवींद्र जडेजा जैसे खिलाड़ी थे पर उन्हें तो उस टीम और उस चुनौती की ड्यूटी मिल गई जिसके बारे में कुछ मालूम नहीं था। लालचंद राजपूत ने इस टीम के साथ कोचिंग ड्यूटी कैसे शुरू की- ये अपने आप में एक अलग और ऐसी अनोखी स्टोरी है जिसे पढ़कर कोई भी कह देगा कि ऐसी तैयारी के साथ धोनी की टीम जीत कैसे गई?